- Home
- /
- चुनाव
- /
- विधानसभा चुनाव
- /
- महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव
- /
- महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024
- /
- सीट शेयरिंग की रस्साकशी के बीच...
Nagpur News: सीट शेयरिंग की रस्साकशी के बीच नजरें सीएम की कुर्सी पर
- 3 दशक में कम विधायकों के बावजूद कई बने सीएम
- सबसे कम 40 विधायक लेकर एकनाथ शिंदे बने सीएम
- भाजपा ही ऐसी पार्टी है, जिसने विधायकों की संख्या के मामले में दो बार शतक पार किया
Nagpur News सुजन मसिद . महाराष्ट्र में होने जा रहे चुनाव को लेकर महायुति आैर महाविकास अघाड़ी में अभी भी सीट शेयरिंग का पेंच फंसा हुआ है। बड़े भाई की भूमिका में रहने के लिए पार्टियां पूरी ताकत लगा रही है। इसके पीछे का बड़ा कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी है। परंपरा के अनुसार गठबंधन में जिसकी सीटें ज्यादा होती है, आमतौर पर मुख्यमंत्री भी उसी पार्टी का होता है, लेकिन महाराष्ट्र में पिछले लगभग तीन दशक में यह परंपरा टूटती हुई दिखाई दे रही है। विरोधी गठबंधन को सत्ता में आने से रोकने के लिए पार्टियां कम विधायक वाली पार्टी को मुख्यमंत्री पद ऑफर कर रही है।
56 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री बने उद्धव : राज्य के इतिहास में सबसे कम विधायकों की संख्या के साथ 14वीं विधानसभा में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने। 2019 में भाजपा से अलग होने के बाद ठाकरे 56 विधायकों के बल पर मुख्यमंत्री बने, जबकि 2022 में उद्धव की पार्टी को तोड़कर शिंदे 40 विधायक लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। हालांकि इन वर्षों में भाजपा ही ऐसी पार्टी रही, जिसने 2014 और 2019 में विधायकों की संख्या का शतक जमाया। 2014 में तो उसकी सरकार बनी और देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2019 में उद्धव ठाकरे से युति टूट गई।
यूं बदली महाराष्ट्र की सियासत : महाराष्ट्र की राजनीति 14वीं विधानसभा के बाद ऐसी बदली, मानो किसी का एक दूसरे पर भरोसा नहीं रहा। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 105 विधायक थे। लेकिन शिवसेना महा विकास अघाड़ी के साथ चली गई और सबसे अधिक विधायकों वाली बीजेपी को विपक्ष में बैठना पड़ा। तब शिवसेना के पास 56 विधायक थे और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। जून 2022 में एकनाथ शिंदे के विद्रोह के कारण शिवसेना टूट गई और केवल 40 विधायकों के दम पर बीजेपी के समर्थन से शिंदे मुख्यमंत्री बने गए।
जब 73 विधायकों के साथ सीएम बने जोशी : कम विधायक संख्या के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की पंरपरा 1995 में मनोहर जोशी के मुख्यमंत्री बनने के साथ शुरू हुई। उस समय शिवसेना के पास 73 विधायक थे। शिवसेना-भाजपा युति को 138 सीटें मिली थी। कांग्रेस को 80 सीटें मिली।
2014 से बदली कहानी : वर्ष 1999 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस की विधायकों की संख्या 75 थी। गठबंधन में सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस के सीटों की संख्या 58 रही। विलासराव दूसरी बार 2004 में 68 विधायक लेकर मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस-एनसीपी को 140 सीटें और शिवसेना-भाजपा को 129 सीटें मिली, लेकिन एनसीपी को कांग्रेस से ज्यादा 71 सीटों पर जीत हासिल हुई। इसके बाद 2009 में अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री चुने गए। कांग्रेस के पास 82 विधायक थे। कांग्रेस-एनसीपी को 144 सीटों पर शानदार जीत मिली। वर्ष 2014 में कहानी बदल गई। भाजपा 122 सीटें लेकर सबसे 1995 के बाद शतक लगाने वाली पार्टी बनी। देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने। भाजपा 2019 में लगातार दूसरी बार विधायकों की संख्या में शतक पार कर गई।
Created On :   26 Oct 2024 6:26 PM IST