श्राद्ध: जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि नहीं पता, उसका इस दिन करें श्राद्ध

Shraddh: The person whose death date is not known, Shraddh him on this day
श्राद्ध: जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि नहीं पता, उसका इस दिन करें श्राद्ध
श्राद्ध: जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि नहीं पता, उसका इस दिन करें श्राद्ध

डिजिटल डेस्क, भोपाल। पितृपक्ष यानी पितरों की पूजा का पक्ष। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के समान ही पितरों को महत्व दिया गया है। गरुड़ पुराण और कठोपनिषद् के अनुसार पितृगण देवताओं के समान ही वरदान और शाप देने की क्षमता रखते हैं। इनकी प्रसन्नता से परिवार की उन्नति होती और नाराजगी से परिवार निरंतर परेशानियों में रहता है। शास्त्रों में मनुष्यों पर उत्पन्न होते ही तीन ऋण बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषिऋण और पितृऋण। श्राद्ध के द्वारा पितृऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है। 

लेकिन क्या करें जिसकी मृत्यु तिथि का ज्ञान न हो उसका श्राद्ध किस दिन करें। यह सवाल कई लोगोंं के मन में आता है। क्योंकि मृतक का श्राद्ध मृत्यु होने वाले दिन करना चाहिए। दाह संस्कार वाले दिन श्राद्ध नहीं। तो यहां बता दें कि ऐसे पितरों का श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। वहीं अग्नि में जलकर विष खाकर दुर्घटना में या पानी में डूबकर, शस्त्र आदि से मृत्यु वालों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है। चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो।

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कृष्ण पक्ष पितरों के लिए पर्व
आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है। आश्विन कृष्ण पक्ष में सभी लोगों को प्रतिदिन अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना चाहिए इससे पितर संतृप्त होकर हमें दीर्घायु आरोग्यता पुत्र-पौत्रादि यश, स्वर्ग पुष्टि, बल, लक्ष्मी, स्थान, वाहन, सब प्रकार की स्मृद्धि सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष का वरदान देते हैं। इसलिए इन दिनों पितरों को संतुष्ट अवश्य करना चाहिए। इससे बरसों से आपसे कुपित आपके पितृ जल्द ही मान जाते हैं।

श्राद्ध पक्ष के विधि-विधान और महत्व का पुराणों में वर्णन मिलता है। भगवान राम सहित इंद्रदेव ने भी अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसके लिए इंद्र नर्मदा के तट पर आए थे। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि श्राद्ध पक्ष का युगों से महत्व है।

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सांकल्पिक विधि से श्राद्ध
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मृत्यु तिथि को फिर चाहे मृत्यु किसी भी मास या पक्ष में हुई हो। जल, तिल, चावल, जौ और कुश का पिण्ड बनाकर या केवल सांकल्पिक विधि से उनका श्राद्ध करना गौ ग्रास निकालना तथा उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता ही पितृ ऋण से मुक्त करा देती है। प्रत्येक मनुष्य के लिए ये कर्म अपने पूर्वजों के लिए करना उत्तम बताया गया है। 

Created On :   5 Sept 2020 10:28 AM IST

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