इस मुहूर्त में करें पूजा, जानें विधि और व्रत का महत्व
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी का अत्यधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। वैसे तो पूरे वर्ष में कुल मिलाकर 24 एकादशी आती हैं। लेकिन इन सब में पुत्रदा एकादशी साल में दोबार पुत्रदा आती है। दूसरी पुत्रदा एकादशी पौष माह में पड़ती है। वहीं श्रावण मास की एकादशी 18 अगस्त, बुधवार को है।
पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति के इच्छुक या संतान है तो उसे सुमार्ग पर लाने के लिए अवश्य रखना चाहिए, जिससे कि उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सके। इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है कि पुत्रदा एकादशी की कथा को सुनने मात्र से अनेक यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं इस एकादशी की पर क्या करना चाहिए। आइए जानते हैं पूजा की विधि और मुहूर्त...
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मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 18 अगस्त, बुधवार तड़के 03:20 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 19 अगस्त, गुरुवार रात 01:05 बजे तक
पारण (व्रत तोड़ने का) समय: सुबह 06:32 बजे से रात 08:29 बजे तक
व्रत और पूजा विधि
- एकादशी से एक दिन पहले यानी कि दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।
- प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान कर शुद्ध और स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण कर श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
- शुद्धजल में गंगा जल डालकर स्नान करें और श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करें।
- कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें।
- भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध कर नए वस्त्र पहनाएं।
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- धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना तथा आरती करें और नैवेद्य फलों का लगाकर प्रसाद वितरण करें।
- श्रीहरि विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित किए जाते हैं।
- एकादशी की रात में भगवान का भजन-कीर्तन करें।
- दिनभर निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार करें।
- दूसरे दिन ब्राह्मणों या संत पुरुष को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य दें, उसके बाद भोजन करना चाहिए।
Created On :   14 Aug 2021 10:20 PM IST