जानें इस व्रत के नियम, लाभ और कथा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है। हर माह में दो एकादशी पड़ती हैं और सभी का महत्व अलग होता है। वहीं चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष ये एकादशी 28 मार्च, सोमवार को पड़ रही है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि, पापों का प्रायश्चित करने के लिए पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है।
इस व्रत को नियमपूर्वक रखने से पापों का नाश तो होता ही है साथ ही धन और अरोग्य की प्राप्ति, हार्मोन की समस्या और मनोरोग भी ठीक होते हैं। इस एकादशी के महत्व को बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जो भी कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
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मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ: 27 मार्च, रविवार शाम 06:04 बजे से
एकादशी तिथि समापन: 28 मार्च, सोमवार शाम 04:15 बजे तक
व्रत को रखने के नियम
पापमोचिनी एकादशी के दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि कर एकादशी व्रत और पूजन का संकल्प लें।
सूर्य को अर्घ्य दें और केले के पौधे में जल डालें, भगवान विष्णु को पीले फूल अर्पित करें।
ध्यान रखें कि जिस जल से अर्घ्य दें उसमें रोली मिली होनी चाहिए।
श्रीमद्भगवदगीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें।
चाहें तो "ॐ हरये नमः" श्री हरि के इस मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
संध्याकाल में निर्धनों को अन्न का दान करें।
दिन भर जल और फल ग्रहण करके उपवास रखें।
सायंकाल पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें और उसके तने में पीला सूत लपेटते हुए सात बार वृक्ष की परिक्रमा करें।
दीपक जलाएं और सफ़ेद मिठाई अर्पित करें।
इन सभी नियमों का पालन कर व्रत रखेंगे तो निश्चित ही फल की प्राप्ति होगी।
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पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
प्रचलित कथा के अनुसार एक बार एक ऋषि कठोर तपस्या में लीन थे। उनकी तपस्या के प्रभाव से देवराज इन्द्र घबरा गए। ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए देवराज ने मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। मेधावी ऋषि अप्सरा के हाव-भाव को देखकर उस पर मंत्रमुग्ध हो गए। मेधावी ऋषि शिव भक्ति छोड़कर मंजुघोषा के साथ रहने लगे। कई साल गुजर जाने पर मंजुघोषा ने ऋषि से स्वर्ग वापस जाने की आज्ञा मांगी। तब ऋषि को भक्ति मार्ग से हटने का बोध हुआ और अपने आप पर ग्लानि होने लगी।
धर्म भ्रष्ट होने का कारण अप्सरा को मानकर ऋषि ने अप्सरा को पिशाचिनी हो जाने का श्राप दे दिया। अप्सरा इससे दुःखी हो गई और श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी। उसी समय देवर्षि नारद वहां आये और अप्सरा एवं ऋषि दोनों को पाप से मुक्ति के लिए पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। नारद द्वारा बताये गए विधि-विधान से दोनों ने पाप मोचिनी एकादशी का व्रत किया जिससे वह पाप मुक्त हो गए। शास्त्रों में बताया गया है कि एकादशी की इस कथा को पढ़ने और सुनने से ब्रह्महत्या, सोने की चोरी और सुरापान जैसे पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस व्रत को सर्वाधिक पुण्यदायी और फलदायी माना जाता है।
Created On :   26 March 2022 4:49 PM IST