Shraddh: श्राद्ध में नवमी तिथि का है खास महत्व, जानिए श्राद्ध करने की विधि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पितृ पक्ष में हर एक तिथि को किसी न किसी का श्राद्ध किया जाता है। लेकिन पितृ पक्ष की अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्व होता है। क्योंकि दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी तिथि को तो माता का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। वहीं कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को पंचांग के अनुसार नवमी श्राद्ध है। इस दिन विवाहित महिलाओं का श्राद्ध करने का विधान है। इस तिथि को मातृ नवमी और सौभाग्यवती श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, जो कि 11 सितंबर शुक्रवार को है।
मान्यता है कि पिृत पक्ष की नवमी तिथि को विवाहित महिलाओं का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और अपना आर्शीवाद प्रदान करती हैं। विवाहित महिला की मृत्यु किसी भी तिथि को क्यों न हुई हो, श्राद्ध की प्रक्रिया इस दिन पूर्ण की जा सकती है।
जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि नहीं पता, उसका इस दिन करें श्राद्ध
नवमीं तिथि पर ऐसे करें श्राद्ध
नवमी श्राद्ध पर घर की महिलाओं को व्रत रखना चाहिए।
प्रात: काल स्नान करने के बाद श्राद्ध की प्रक्रिया को आरंभ करना चाहिए।
इस दिन मन में किसी प्रकार की बुरी कामना नहीं करनी चाहिए।
मन को शुद्ध रखते हुए श्राद्ध कर्म को करना चाहिए।
नवमी श्राद्ध जीवन में धन, संपत्ति और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला माना गया है।
श्राद्ध करने के बाद दान भी करना चाहिए।
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श्राद्ध की तिथि चयन
- जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या दुर्घटना या आत्महत्या का मामला होता है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। अगर व्यक्ति की मृत्यु की तारीख याद न हो।
- इसी तरह तिथि याद न होने पर पिता का श्राद्ध अष्टमी एवं माता का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाना चाहिए।
- जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो तो उनका श्राद्ध पितृ अमावस्या के दिन किया जा सकता है। इस दिन श्राद्ध करने से भूले भटके श्राद्ध का कार्य भी संपन्न हो जाता है।
- सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाता है।
Created On :   10 Sept 2020 3:03 PM IST