व्रत: मंगल प्रदोष व्रत की ऐसे करें पूजा, मिलेगा संतान सुख

Mangal Pradosh fast: Worship in this way, children will get happiness
व्रत: मंगल प्रदोष व्रत की ऐसे करें पूजा, मिलेगा संतान सुख
व्रत: मंगल प्रदोष व्रत की ऐसे करें पूजा, मिलेगा संतान सुख

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत आता है, जो कि इस माह कल यानी कि 15 सितंबर, मंगलवार को है। मंगलवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। खास बात यह कि इस पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि पड़ रही है। यानि मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि दोनों एक साथ पड़ रही है। 

आपको बता दें कि दोनों तिथियां भगवान शिव को प्रिय हैं। इसलिए धार्मिक दृष्टि से यह संयोग बहुत ही शुभ होता है। कहा जाता है कि भौम प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान जी की भी कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि भौम प्रदोष व्रत रखने से मंगल ग्रह के प्रकोप से मुक्ति मिलती है।

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शुभ मुहूर्त 
पूजा का शुभ मुहूर्त: 15 सितंबर, शाम 06:26 से 
15 सितंबर, मंगलवार शाम 07:36 तक

प्रदोष व्रत की विधि
- प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान श्री भोलेनाथ का स्मरण करें। 
- पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार करें।
- अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाएं।
- आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग करें।

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- उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और भगवान शंकर की पूजा करें। 
- पूजन में भगवान शिव के मंत्र "ऊँ नम: शिवाय" का जाप करते हुए जल चढ़ाएं।  
- ऊँ नमःशिवाय" मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन करें।
- हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग करें और हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करें।
- इसके बाद शान्ति पाठ करें और अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन या अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।

संतान सुख
संतान की कामना हेतु प्रदोष व्रत के दिन पति-पत्नी दोनों प्रातः स्नान इत्यादि नित्य कर्म से निवृत होकर शिव, पार्वती और गणेश जी की एक साथ में आराधना कर किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक, पीपल की जड़ में जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहने का विधान है। प्रदोष काल में स्नान करके मौन रहना चाहिए, क्योंकि शिवकर्म सदैव मौन रहकर ही पूर्णता को प्राप्त करता है। इसमें भगवान सदाशिव का पंचामृतों से संध्या के समय अभिषेक किया जाता है।

Created On :   14 Sept 2020 4:54 PM IST

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