लोहड़ी 2021: जानें इस त्योहार का महत्व और पूजा की विधि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति से एक दिन पहले की रात को लोहड़ी का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सर्दियों की समाप्ति का प्रतीक माना जाता है। लोहड़ी उत्तर भारत और खासकर पंजाब का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार है, जो 13 जनवरी को मनाया जाएगा। पंजाब के आलावा लोहड़ी का त्यौहार हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि जगहों पर मनाया जाता है।
इस दिन दुल्ला भट्टी की कहानी का काफी महत्व है। इस दिन सभी अपने घरों और चौराहों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं। आग का घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हुए रेवड़ी, मूंगफली खाते हैं, लेकिन क्या जानते हैं कि लोहड़ी क्यों जलाई जाती है और इस दिन दुल्ला भट्टी की कहानी का क्या महत्व है, आइए जानते हैं...
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कैसे मनाते हैं लोहड़ी
बैसाखी त्यौहार की तरह लोहड़ी का सबंध भी पंजाब के गांव, फसल और मौसम से है। इस दिन से मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। इससे पहले रबी की फसल काटकर घर में रख ली जाती है। खेतों में सरसों के फूल लहराते दिखाई देते हैं। लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं। इस दौरान रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।
लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गजक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होते हैं। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं। पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। प्राय: घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। इस दिन बड़े प्रेम से बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है।
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दुल्ला भट्टी की कहानी
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी के त्यौहार में दुल्ला भट्टी की जो कहानी सुनाई जाती है। उसमें, पंजाब में एक दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स था जो गरीब लोगों का मदद करता था। जिसने मुश्किल समय में दो बहनों सुंदरी और मुंदरी की मदद की। जिनको उसके चाचा ने जमीदारों को सौप दिया था। दुल्ला ने दोनों बहनों को जमीदारों के शिकंजे से छुड़वा कर उसी रात आग जला कर उनकी शादी करवा दी और शगुन में एक सेर शक्कर उनकी झोली में डालकर दोनों बहनों की विदाई की। कहा जाता है कि उसी दिन से, इसी घटना के कारण लोग लोहड़ी का त्यौहार मनाने लगे। इसी कारण आज भी लोग दुल्ला भट्टी को याद कर प्रसिद्ध लोक गीत सुंदर मुंदरिए गाते हैं। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि यह आग पूस की आखिरी रात और माघ की पहली सुबह की कड़क ठंड को कम करने के लिए जलाई जाती है।
Created On :   12 Jan 2021 5:24 PM IST