भीष्म जयंती : पांडवों को स्वयं बताया था अपनी मृत्यु का राज

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। माघ मास की नवमीं महाभारत की सबसे महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन का संबंध गंगापुत्र भीष्म से है। इस दिन उनका अवतरण माना जाता है। भीष्म पितामह को देवव्रत नाम से भी जाना जाता है। ये कौरवों और पांडवों के परम आरदरणीय और प्रिय थे। न्याय का सदैेव साथ देने वाले और अपने वचन के पक्के भीष्म पितामह ने अपनी एक प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया। उनकी इसी प्रतिज्ञा को भीष्म या भीषण प्रतिज्ञा कहा जाता है। इस वर्ष भीष्म जयंती 10 जनवरी 2018 बुधवार अर्थात आज मनायी जा रही है।
एक मात्र थी ये भूल
भीष्म पितामह ने अपने जीवन में एक गलती की, वह था द्रोपदी के चीरहरण के वक्त मौन धारण करना, उन्होंने इसे अपना सिंहासन के प्रति कर्तव्य समझा किंतु भगवान कृष्ण ने उन्हें इस गलती का आभास कराते हुए बताया कि अन्याय होते देखते रहना और कर्तव्य की आड़ में मौन रहना अपराध है। इस एक पल को उनकी सबसे बड़़ी भूल कहा जाता है।
58 दिन बाद त्यागे थे प्राण
पितामह भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। अर्थात वे अपने प्राण अपनी इच्छा के अनुसार त्याग सकते थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महाभारत के युद्ध में बाण लगने के 58 दिन बाद भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे। यह दिन भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाता है। यह दिन उन्होंने स्वयं ही निर्धारित किया था। आध्यात्म के अनुसार हर मनुष्य के पास इच्छामृत्यु की शक्ति है, किंतु मोह के जाल में फंसकर वह इसे भुला देता है।
शिखंडी पर नही चलाए बाण
भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु का राज स्वयं ही पांडवों को बताया था। जिसके बाद शिखंडी को आगे करके उन पर बाण चलाए गए। शिखंडी के सामने आते ही पितामह ने बाण नही चलाए, इस प्रकार भीष्म पितामह पर पांडवों ने उनके ही बताए मार्ग से विजय प्राप्त की।
Created On :   10 Jan 2018 6:22 AM IST