भगवान श्री कृष्ण का प्रिय माह अगहन, जानें इसके बारे में

Aghan, the beloved month of Shri Krishna started today, Learn about it
भगवान श्री कृष्ण का प्रिय माह अगहन, जानें इसके बारे में
भगवान श्री कृष्ण का प्रिय माह अगहन, जानें इसके बारे में

डिजिटल डेस्क। कार्तिक पूर्णिमा के साथ ही 12 नवंबर को कार्तिक माह खत्म हो गया है और हिंदू पंचांग का नौवां माह अगहन 13 नवबंर से शुरु हो गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष का महीना अत्यंत पवित्र होता है। इस महीने से ही सतयुग का आरंभ भी माना जाता है। इस माह को भगवान श्री कृष्ण का प्रिय भी माना गया है। श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि -सभी बारह महीनों में मार्गशीर्ष मैं स्वयं हूं। इस माह को मार्गशीर्ष भी कहा जाता है। आइए जानते हैं इस माह के बारे में...

नदियों में स्नान
इस माह में नदियों में स्नान का अपना महत्व है। इस माह में तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए। स्नान के समय इन मन्त्र का स्मरण करना चाहिये ॐ नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का स्मरण करना चाहिए। हिन्दू धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। पंचांग के अनुसार 27 नक्षत्र होते हैं जिसमें से एक है मृगशिरा नक्षत्र भी है|

मृगशिरा नक्षत्र
इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में होती है। इसी कारण इस मास को अगहन मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से जाना जाता है। भागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि सभी माह में मार्गशीर्ष स्वमं में ही हूँ। मार्गशीर्ष माह में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व दिया गया है।

1. सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारंभ किया गया था। 
2. इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की थी। इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होता है जो यह अत्यंत शुभ होता है। 
3. अगहन (मार्गशीर्ष) शुक्ल तिथि 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करते हैं जो बहुत शुभ होता है। प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक जातिस्मर पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुंच जाता है, जहां फिर से जगत में पुन: लौटने की आवश्यकता नहीं होती है।
4.  अगहन (मार्गशीर्ष) की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा के द्वारा सिंचित किया गया था। इस दिन माता, बहन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। इस मास में विभिन्न प्रकार के नृत्य-गीतादि का आयोजन कर उत्सव भी किया जाना चाहिए।
5. अगहन (मार्गशीर्ष) की पूर्णिमा को ही दत्तात्रेय जयन्ती मनाई जाती है। 
6. अगहन (मार्गशीर्ष) मास में इन 3 पवित्र पाठ की बहुत महिमा बताई गई है। 

1. विष्णुसहस्त्र नाम, 2. भगवत गीता और 3. गजेन्द्रमोक्ष। इन्हें अगहन मास के दिनो में 2-3 बार अवश्य पढ़ना चाहिए। 

7. इस मास में श्रीमद भागवत ग्रन्थ के प्रतिदिन दर्शन करने की विशेष महिमा है। स्कन्द पुराण में लिखा है- घर में यदि भागवत हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम अवश्य करना चाहिए। 
8. अगहन (मार्गशीर्ष) मास में अपने गुरु को, इष्ट को ॐ दामोदराय नमः मन्त्र कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के जितने भी अवरोध हैं समाप्त होते हैं। 
9. अगहन (मार्गशीर्ष) में शंख में पवित्र तीर्थ का जल भरें और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र:-"" त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करें। निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोस्तुते । "" जपते हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं।
10. अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप है|
 

Created On :   13 Nov 2019 3:38 AM GMT

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