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लोकसभा क्षेत्र: रामटेक के गढ़ पर कौन लहराएगा जीत का झंडा, कांग्रेस -शिवसेना दोनों आमने-सामने
- कभी कांग्रेस तो कभी शिवसेना ने पाई लगातार जीत
- दोनो पार्टियां आमने -सामने
- पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव का निर्वाचन क्षेत्र
डिजिटल डेस्क, नागपुर, रघुनाथसिंह लोधी। रामटेक नगर को भगवान राम के गढ़-मंदिर ने पहचान दी। रामटेक लोकसभा क्षेत्र की पहचान भी किसी न किसी राजनीतिक दल के गढ़ के रुप में बनती रही है। पहले यहां 12 बार कांग्रेस ने बाजी मारी। बाद में शिवसेना ने जीत का सिलसिला जारी रखा। कह सकते हैं कि यह क्षेत्र कांग्रेस व शिवसेना का गढ़ रहा है। इस बार भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस व शिवसेना के बीच ही होने के आसार है। कांग्रेस की ओर से महाविकास आघाडी ने श्याम बर्वे को उम्मीदवार बनाया है। शिवसेना शिंदे गुट की ओर से महायुति ने राजू पारवे को उम्मीदवारी दी है। खास बात है कि पारवे उम्मीदवारी तय होने तक उमरेड से कांग्रेस विधायक थे। देखना होगा कि इस बार रामटेक के गढ़ पर किस दल का जीत का झंडा होगा।
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव का निर्वाचन क्षेत्र
रामटेक की पहचान पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के निर्वाचन क्षेत्र के रुप में भी रही है। इस क्षेत्र से राव दो बार चुनाव जीते थे। रामटेक लोकसभा क्षेत्र क्रमांक 9 को राज्य में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बडे निर्वाचन क्षेत्रों में गिना जाता है। यह नागपुर जिले का दूसरा निर्वाचन क्षेत्र है। इसे नागपुर ग्रामीण भी कहा जाता है। रामटेक का वर्णन न केवल रामायण बल्कि महाकवि कालीदास के मेघदूतम में भी मिलता है। बौद्धकालीन आर्य नागार्जुन के वनस्पति शास्त्रीय कार्यों का जिक्र भी रामटेक में होता है। 2009 से यह क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
1998 तक कांग्रेस का दबदबा
इस क्षेत्र में 1998 तक कांग्रेस का दबदबा रहा है। 1957 में यह क्षेत्र अस्तित्व में आया। कांग्रेस के कृष्णराव देशमुख सांसद चुने गए। 1967 व 1971 में कांग्रेस के ही अमृत सोनार जीते। 1974 में सामाजिक उथलपुथल ने कांग्रेस को झटका दिया। निर्दलीय राम हेडाऊ चुनाव जीते। आपातकाल में देश में कांग्रेस पर संकट था लेकिन रामटेक में कांग्रेस और मजबूत हो गई। 1977 व 1980 में कांग्रेस के जतिराम बर्वे चुनाव जीते। आंध्रप्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे पी.वी नरसिम्हाराव का नागपुर से जुड़ाव था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। 1984 में नरसिम्हाराव रामटेक क्षेत्र से चुनाव जीतकर विदेशमंत्री बने थे। 1989 में भी वे इसी क्षेत्र से चुनाव जीते। रामटेक के गढ़ व किलों से नागपुर के भोसले राज परिवार का संबंध रहा है। 1991 में भोसले राज परिवार के तेजसिंह राव व 1998 में रानी चित्रलेखा भोसले ने चुनाव जीता। इस बीच 1996 में दत्ता मेघे ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीता था।
शिवसेना का गढ़
1999 में कांग्रेस उम्मीदवार को पराजित कर शिवसेना ने दमदार स्थिति पायी। शिवसेना के सुबोध मोहिते चुनाव जीतकर अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व की केंद्र सरकार में भारी उद्योग मंत्री बने थे। 2004 में मोहिते ने कांग्रेस के बड़े नेता श्रीकांत जिचकार को पराजित किया। लेकिन नारायण राणे की बगावत के बाद मोहिते, शिवसेना छोड़कर राणे के साथ चले गए। तब उपचुनाव में शिवसेना के प्रकाश जाधव जीते। बाल ठाकरे ने रामटेक के गढ़-मंदिर में भेंट देने के बाद भाषण में कहा था कि रामटेक शिवसेना का गढ़ है। 2009 में कांग्रेस ने वापसी की थी। सोनिया गांधी के करीबी मुकुल वासनिक ने चुनाव जीता था। लेकिन जिस शिवसेना के जिस कृपाल तुमाने को वासनिक ने पराजित किया था उसी तुमाने ने 2014 में वासनिक को पराजित कर दिया। 2019 में भी में तुमाने ने शिवसेना की जीत का सिलसिला कायम रखा।
विधानसभा क्षेत्र
रामटेक लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र रामटेक, सावनेर, काटोल, हिंगणा, उमरेड व कामठी शामिल है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, कांग्रेस के पूर्व मंत्री सुनील केदार, पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, पूर्व मंत्री राजेंद्र मुलक, पूर्व मंत्री रमेश बंग , पूर्व मंत्री सुलेखा कुंभारे चुनाव में प्रभावी भूमिका में रहते हैं।
मतदाता
कुल-20,46,335
पुरुष-10,43,609
महिला-10,02,780
मतदान केंद्र-2405
नाम वापसी के पहले उम्मीदवार – 35
खास बातें
अब तक इस क्षेत्र में भाजपा का उम्मीदवार नहीं रहा है। इस बार प्रदेश अध्यक्ष बावनकुले सहित अन्य नेताओं के प्रयासों के बाद भी भाजपा को उम्मीदवारी नहीं मिल पायी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कांग्रेस विधायक राजू पारवे को अपनी पार्टी में प्रवेश दिलाकर महायुति का उम्मीदवार बनवा दिया। पारवे ने उम्मीदवारी के लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से भी भेंट की थी। यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि पारवे भाजपा की ओर से ही महायुति के उम्मीदवार बने है। लेकिन भाजपा में ही एक बड़ा वर्ग पारवे को लेकर फिलहाल असंतुष्ट है। कांग्रेस की ओर से पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष रश्मि बर्वे को उम्मीदवार घोषित किया गया था। जिला परिषद में कांग्रेस की सत्ता के किंगमेकर सुनील केदार ने रश्मि की उम्मीदवारी के लिए जोर लगाया था। लेकिन रश्मि का नामांकन फार्म खारिज हो गया। उनके जाति प्रमाण पत्र को अवैध ठहराया गया। रश्मि के स्थान पर उनके पति श्याम बर्वे को कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित किया है। लेकिन श्याम बर्वे को लेकर कांग्रेस में ही मतभेद बताए जा रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि श्याम से अधिक अच्छी राजनीतिक छवि रश्मि की थी। रश्मि का जाति का मामला अचानक सामने लाने में कांग्रेस के ही दूसरे गुट का नाम चर्चा में है। पिछले चुनावों में बसपा व वंचित बहुजन आघाडी ने काफी वोट पाए थे। इस बार दोनों ने सामान्य कार्यकर्ताओं को उम्मीदवारी दी है। वंचित में उम्मीदवारी को लेकर ही दो गुट बन गए।
Created On :   29 March 2024 11:28 AM GMT