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25 मरीजों को खोनी पड़ी अपनी आंखों की रोशनी
डिजिटल डेस्क, रीवा। संजय गांधी अस्पताल में बीते एक वर्ष में आने वाले 25 मरीजों को अपनी आंख की रोशनी से हाथ धोना पड़ा है। बताया गया है कि ये वे मरीज हैं कि जिन्हें मोतियाबिंद था। लेकिन इन मरीजों ने समय पर मोतियाबिंद का आपरेशन नहीं कराया। जब वह अस्पताल पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की माने तो मोतियाबिंद का आपरेशन बहुत ही सरल और सहज होता है। लेकिन अगर समय पर इस बीमारी का ईलाज न कराया जाय तो मोतियाबिंद की बीमारी काला मोतिया में बदल जाती है। अगर मरीज को काला मोतिया हो गया है, और वह फिर भी अस्पताल नहीं आता तो उसके आंख की रोशनी जाने का खतरा हमेशा ही बना रहता है।
क्यों करते हैं देरी
विंध्य क्षेत्र में मोतियाबिंद से पीडि़त अधिकतर मरीज ठंडी के मौसम में ही मोतियाबिंद आपरेशन कराना चाहते हैं। देखने में आया है कि ऐसा करते हुए मोतियाबिंद से पीडि़त मरीज कई साल निकाल देते हैं। अंत में स्थिति यह बनती है कि मोतियाबिंद बिगड़ कर काला मोतिया में बदल जाता है।
मोतियाबिंद और काला मोतिया में अंतर
बताया गया है कि मोतियाबिंद से पीडि़त मरीज को आंख में ज्यादा परेशानी नहीं होती। लेकिन अगर मोतियाबिंद की बीमारी काला मोतिया में बदल जाती है तो मरीज को काफी परेशानी होती है। काला मोतियाबिंद में आंख की रोशनी मंद पडऩे लगती है। आंख में जलन, गडऩ के साथ ही वह हर समय लाल रहती है।
दूसरे आंख में भी पड़ता है असर
बताया गया है कि काला मोतिया से पीडि़त मरीज की अगर एक आंख प्रभावित है तो उसका असर दूसरी आंख पर भी हेाता है। काला मोतिया में आंख की नस कमजोर हो जाती है। समय पर आपरेशन न होने पर मरीज की दोनो आंख की रोशनी चली जाती है।
एक साल के अंतराल में तकरीबन २५ मरीजों को अपनी आंख की रोशनी खोनी पड़ी है। समय पर मोतियाबिंद का आपरेशन न कराने के कारण ऐसा हुआ है। मोतियाबिंद से परेशान मरीजों को चाहिए कि वह समय पर आपरेशन करा ले। मोतियाबिंद का समय पर आपरेशन न किया जाय तो वह काला मोतिया में बदल जाता है। काला मोतिया में आंख की रोशनी बहुत ही मंद पड़ जाती है। जिसे वापस लाना मुश्किल होता है। ""
Created On :   22 April 2022 4:55 PM IST