भोपाल: रामायण और रामचरित मानस ज्ञान विज्ञान के विपुल भंडार है - मनोज श्रीवास्तव

रामायण और रामचरित मानस ज्ञान विज्ञान के विपुल भंडार है - मनोज श्रीवास्तव
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में रामायण में ज्ञान विज्ञान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
  • हम सनातन को भी सही रूप में नहीं समझ पा रहे हैं, जबकि इन सभी में ज्ञान–विज्ञान पूर्ण रूप से समाहित है - प्रो.रजनीकांत
  • यदि आप अपने शास्त्रों को पढ़ रहे हैं, अपने देवी-देवताओं के बारे में पढ़ रहे हैं तो आप प्रतिगामी काम कर रहे हैं - मनोज श्रीवास्तव

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भगवान श्रीराम सर्वत्र विराजमान हैं, वे महायोग हैं, वे घट–घट वासी हैं, वे गुणातीत हैं, वे महाभाग हैं। भगवान श्रीराम अप्रमेय हैं। 'रामायण' और 'रामचरित मानस' ज्ञान–विज्ञान के विपुल भंडार हैं। युवा पीढ़ी को इनका गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना चाहिए। उक्त उद्गार वरिष्ठ साहित्यकार, विचारक एवं मध्यप्रदेश के पूर्व अपर मुख्यसचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने 'रामायण में ज्ञान विज्ञान' विषय पर विज्ञान संचार केन्द्र और संस्कृत, प्राच्य भाषा एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। यह संगोष्ठी कोर रिसर्च एण्ड इनोवेशन ग्रुप, आईसेक्ट ग्रुप ऑफ युनिवर्सिटीज के सहयोग से आयोजित की गई।

मनोज श्रीवास्तव ने आगे कहा कि हमारे यहाँ भारतीय अध्यात्म और शास्त्रों को ज्ञान और विज्ञान के प्रतिरोध में खड़ा किया गया है। यदि आप अपने शास्त्रों को पढ़ रहे हैं, अपने देवी-देवताओं के बारे में पढ़ रहे हैं तो आप प्रतिगामी काम कर रहे हैं। जबकि भारतीय परंपरा ज्ञान और विज्ञान को हमेशा से बल देनेवाली परंपरा रही हैं। हम हमेशा से ज्ञान और विज्ञान को सम्मान देते आये हैं।

इस अवसर पर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.रजनीकांत जी ने राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि राम मर्यादा पुरुषोत्तम है। मेरी दृष्टि में मर्यादा पुरषोत्तम का अर्थ होता है– 'मर्यादा पुरुष उत्तम'। वर्तमान में अधिकांश ने मर्यादा और उत्तम को त्याग दिया है और पुरुष तो हम बचे ही नहीं हैं। हम सनातन को भी सही रूप में नहीं समझ पा रहे हैं, जबकि इन सभी में ज्ञान–विज्ञान पूर्ण रूप से समाहित है।

डॉ. वी. के. वर्मा, कुलाधिपति, डॉ. सी.वी. रमन विश्वविद्यालय, वैशाली (बिहार) ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि रामायण काल हमारा स्वर्णिम अतीत है। रामायण में हमें अपने वैभवशाली गौरवमयी अतीत को तलाशने के लिए इसके सभी पहलुओं पर अनवरत शोध अध्ययन करना चाहिए। यह शोध अध्ययन हमें अपनी जड़ों से जोड़ें रखने का महत्वपूर्ण कार्य करेंगे। हमें अपनी जड़ों को पहचानना बहुत जरूरी है। जड़ों के बल पर ही विशाल वृक्ष सैकड़ों हजारों वर्षों तक धरती की मिट्टी, पानी, पर्यावरण को थामे कई पीढ़ियों को सुकून भरी ठंडी छाँव देते रहते हैं।

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ. संगीता जौहरी, प्रतिकुलपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा किया गया।प्रथम सत्र का आभार डॉ. प्रबल राय, संयोजक, विज्ञान संचार केन्द्र द्वारा व्यक्त किया गया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में 'चौपाइयों और दोहों के बीच से झाँकता विज्ञान' पर प्रो. विजय कान्त वर्मा, 'रामायण तथा रामचरित मानस में नीति और नैतिकता' पर सुश्री पूजा पाण्डेय, डॉ. संजय दुबे, डॉ. सावित्री सिंह परिहार, 'रामचरित मानस में दर्शन और आध्यात्मिकता' पर डॉ. मौसमी परिहार, 'पुष्पक विमान: रामायण में वर्णित उड़ने वाला यन्त्र' पर सुश्री प्रीति सिंह, 'रामायण: आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व का व्यापक अन्वेषण' पर श्री दिनेश रामचंदानी, श्री योगेन्द्र राठौर, श्री दिनेश कुमार सोनी, 'अस्त्र और शस्त्र': राम–रावण युध्द में अद्वितीय युद्ध साधन' पर श्री स्वप्निल सिंह, श्री दिनेश कुमार सोनी, ' वाल्मीकि रामायण में वनस्पति विविधता' पर श्री शैलेन्द्र कुमार, डॉ. सावित्री सिंह परिहार, 'नाव और जलपोत: एक ऐतिहासिक अध्ययन' पर श्री दिनेश रामचंदानी, श्री योगेन्द्र राठौर, श्री दिनेश कुमार सोनी, 'शतरंज और पतंग: प्राचीन खेलों का सफर' विषय पर डॉ. प्रबल रॉय, श्री दिनेश कुमार सोनी ने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

इस संगोष्ठी का संयोजन डॉ. प्रबल रॉय, संयोजक, विज्ञान संचार केन्द्र एवं डॉ. सावित्री सिंह परिहार, संयोजक, संस्कृत, प्राच्य भाषा एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र द्वारा किया गया।इस अवसर बड़ी संख्या में शोधकर्ताओं, विभिन्न विभागों के आचार्यों, सह-आचार्यों, केन्द्र समन्वयकों, और विद्यार्थियों ने रचनात्मक भागीदारी की।

Created On :   30 Jan 2024 6:10 PM IST

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