भोपाल: आरएनटीयू के टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा नाटक “राजा की मोहर” देख दर्शक हुए मंत्रमुग्ध

आरएनटीयू के टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा नाटक “राजा की मोहर” देख दर्शक हुए मंत्रमुग्ध

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा प्रथम वर्ष के छात्रों द्वारा नाटक “राजा की मोहर” की लोकरंग मंच की मनमोहक प्रस्तुति से दर्शन मंत्रमुग्ध हुए। नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन लोकेन्द्र त्रिवेदी द्वारा की गई है। लेखक अजीत पुष्कल हैं। शहर में पहली बार 14 अभिनेताओं के 20-22 चरित्र और कई डबल और ट्रिपल रोल भी देखने को मिले।

कथासार

ये 1857 के पूर्व जनमानस में व्याप्त असंतोष से उपजी क्रांति कथा है।

ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 18 वी शताब्दी के मध्य तक सारे देश में कब्जा कर लिया था। किसानों पर कर दुगने कर दिये थे, जुलाहों से कपास छिनकर उनके करघे तोड़ कर अपनी मिलों में कपड़ा बनाने लगे थे। मछुआरों के विरोध करने पर, उनके जाल छीन अंग्रेज सिपाही नदियों तालाबों से निकली मछलियां लुट लेते और बेदर्दी से उन्हें पीटते, स्त्रियों की अस्मत तार तार कर उन्हें नरकीय यातना देते और राज्य के राजाओं को एय्याश बना पूरे राज्य के संसाधनों के मालिक बन गये। कहीं कोई सुनने वाला नहीं, राजकाज चलाने वाला अमला कम्पनी के अफसरों के चमचे बन गये थे।

बुन्देलखण्ड में पति की मृत्यु के बाद कंपनी ने रानी झांसी का अपमान कर उसे राजमहल से बाहर निकाल दिया। पूरे क्षेत्र में पहले से ईस्ट इंडिया कंपनी की इन ज्यादतियों से दबा आक्रोश लावा बन धधकने लगा। गांव गांव में नारी शक्ति ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। झलकारी बाई काना मुंदरा के अलावा भी कई स्त्रियां नेतृत्व करने आगे आ गई। ये कथा ऐसी ही गुमनाम वीरागंना एक धोबन मुलिया की संघर्ष गाथा हैं जो बुन्देलखण्ड में आज भी दंतकथा के रुप में जिन्दा है।

निर्देशकीय

घटना 1856 में बुंदेलखंड में अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों और देसी नमक हरामों के बीच पिसते निम्नवर्गीय समाज में बढ़ती छटपटा की है। इसमें चरवाहे, मछुआरे, धोबी, जुलाहे किसानों, सिपाहियों, हरबोलो तक समाज का हर वर्ग शामिल था पर इन सब पर अत्याचार को दिशा देने वाला कोई सामने नहीं आ रहा था। झांसी की रानी के अपमान को सारे बुन्देलखण्ड ने सारी स्त्री जाति का अपमान माना। गांव-गांव में स्त्री शक्ति नेतृत्व करने आगे आ गई थी। झलकारी बाई, काना, मुंदरा का नाम तो हम जानते हैं लेकिन मुलिया जैसी अनेक नारियां संगठन का काम कर रहीं थीं। इसी दंतकथा को हमारे समय के बेमिसाल नाटककार श्री अजित पुष्कल जी ने नाट्य आलेख के रुप में हमारे सामने रखा है।

आजादी के अमृतकाल में गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी को बहुमुल्य सम्मान देने की हसरत में टैगोर विश्वविद्यालय के नाट्य विभाग के प्रथम वर्ष के 14 छात्र-छात्राओं के साथ यह लोकनाट्य एक माह में गहन रिसर्च से तैयार किया गया है। मकसद हमारे छिपे इतिहास व संस्कृति परम्पराओं को आत्मसात करवाना है। इस कथा को कहने में यथाशक्ति हमने बुंदेलखंड के सामान्य जनों में प्रचलित हरबोल वीर आख्यान कथागायन परम्परा से अपनी प्रस्तुति को आकार दिया है। आल्हा सोहर ढिमराई लमटेरा संस्कार गीत आदि अभ्यास में गाये और कथा में प्रयोग के रूप में शामिल होते गये।

टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय प्रकृतिक वातावरण में काम करने का बेहतरीन अनुभव देता है जो इस प्रशिक्षण केन्द्र को विशिष्ट बनाता है

प्रथम वर्ष के इन नव रंगकर्मीयों को आप दर्शक मुक्त भाव से शुभाषीश दें ताकि ये अपने कलात्मक यात्रा में श्रेष्ठ काम कर सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा कर सके।

निर्देशक

लोकेन्द्र त्रिवेदी

मंच पर

मुलिया : पूर्वी रायकवार/साक्षी शुक्ला

किसान औरत : किरन साहू/रश्मि कुकरेती

मुंशी : अमित गुप्ता

सिपाही 1 : हैदर अली

सिपाही 2 : ऋषभ चतुर्वेदी

ज़मींदार : अमन जैन तक्षय

साहजी : प्रशांत कुमार (हर्षित)

डऊवा : मनोज कुमार यादव

चरवाहा 1/जुलाहा 1 : मार्क फर्नांडिस

चरवाहा 2/जुलाहा 2/करिंदा : उदयभान यादव

चरवाहा 3/जुलाहा 3/राजा : तरूण ठाकुर

कथावाचक/वैरागी : राजा चौधरी

कोरस : साक्षी शुक्ला,रश्मि कुकरेती, किरन साहू,राजा चौधरी

मंच से परे

वस्त्रविन्यास : रश्मि आचार्य,स्मिता नायर

वस्त्रविन्यास सहायक : रश्मि कुकरेती, किरन साहू, ऋषभ चतुर्वेदी,अमन जैन,साक्षी शुक्ला

प्रकाश परिकल्पना : तानाजी राव

प्रकाश सहायक : अमन जैन,मनोज

सेट : अमित गुप्ता,हैदर अली,प्रशांत कुमार

मंच सामग्री : तरुण ठाकुर,मार्क फर्नांडिस,उदयभान यादव

रूपसज्जा : समस्त प्रथम वर्ष के छात्र

पोस्टर एवं ब्रॉशर : अमन जैन,प्रियल

मंच व्यवस्थापक : राजा चौधरी

प्रबंधन एवं समन्वय : श्री विक्रांत भट्ट

संचालन : प्रशांत सोनी

आलेख : श्री अजित पुष्कल

संगीत व निर्देशन : श्री लोकेन्द्र त्रिवेदी

सह निर्देशन : श्री हर्षित शर्मा

वादन : श्री गगन सिंह बैंस (तालवाद्य)/वादन सहायक : तरुण ठाकुर

हारमोनियम : श्री सुंदरलाल मालवीय/मुख्य गायक : राजा चौधरी

गायनवृंद : राजर्षि राय चौधरी,निखिल बंसल,रजत ग्रोवर,अल्पना शर्मा

विशेष सहयोग : श्री मनोज नायर,श्री विनय उपाध्याय,श्री अविजित सोलंकी,श्री आनन्द पाण्डेय,श्री संतोष कौशिक,श्री शरद मिश्रा,श्री जीतमल

बायोडाटा

लोकेन्द्र त्रिवेदी 8 फरवरी 1956 में मध्यप्रदेश के शहर उज्जैन में जन्मे

मध्यप्रदेश नाटक लोक कला अकादमी से डिप्लोमा 1977

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से स्नातक 1981

फैलोशिप के अर्न्तगत पूना फिल्म संस्थान व रा.ना.वि. से अभिनेता के रूप में 1981-82 पोस्ट ग्रेजुएशन

10 वर्ष रा.ना.वि. रंग मंडल में अभिनेता के रूप में नियमित सदस्य रहे।

1998-99 में भारत सरकार से सीनियर फैलोशिप के तहत मध्य भारत की अत्यन्त पिछडी जनजातियों की अनुष्ठानिक नाट्य परम्पराओं का अध्ययन जिसमें, भील, भिलाला, राठवा, माडिया, मूरिया, गौन्ड, हो, कूडूक, मुन्डा जनजातियां शामिल थी अनुसंधान, अंकन, व रिसर्च व प्रदर्शनो पर कार्य।

युनेस्को विश्व धरोहर योजना के लिए, हिमाचल प्रदेश की लोकनाट्य शैली करियाला का अध्ययन, अंकन, अनुसंधान,व प्रशिक्षण शिविरों में नवीन तकनीक व कहानियो पर काम

लोकनाट्य करियाला शैली पर दो फिल्मों का निर्माण

90 वर्षो तक चले स्वाधीनता आन्दोलनों के नग्मओ का संगीत अंकन कर एक घंटे की फिल्म सुनो हिन्द के रहने नामक फिल्म का निर्माण व निर्देशन

लोकनाट्य शैलियों माच,नौटंकी, करियाला, भांडपाथेर, पहाडी रामलीला, ख्याल, स्वांग, भवाई, तमाशा, आल्हा उदल, पाला गायन, अंकिया भावना, तैय्यम जैसी अनेक पारम्परिक लोक शैलियों का अध्ययन व देश भर में घुम घुम कर प्रस्तुतिकरण व प्रर्दशन पर कार्य व निर्देशन ।

विश्वभर की अभिनय शैलीयो का अध्ययन व प्रशिक्षण पर कार्य यथार्थवादी अभिनय सिद्धांत, शेक्सपीयर, कामेदियादिलार्त, ग्रीक व रोमन,बेख्तीयन की थ्योरी आफ एलिनेशन आदि शैलियां शामिल हैं

भारतीय लोक परम्परा, लीला नाट्य व नाट्य शास्त्र पर गहन अनुसंधान कार्य

150 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन,

200 से ज्यादा नाटकों में संगीत निर्देशन

170 से भी ज्यादा पुरे विश्व में रंग प्रशिक्षण शिविर किये ।

हिन्दी भाषा की सभी रंगमंडलों के लिए नाट्य निर्देशन किया।

फांस, इंग्लैड़, जर्मनी, पौलेन्ड, तुर्की, बुलगारिया, हंगरी, हालैण्ड, रोम आदि की सांस्कृतिक यात्राएं की राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में विगत 23 वर्षों से अभिनेताओं के लिए ध्वनि एवं योग व शरीर विज्ञान पर नियमित कक्षाएं

देश के 26 जनवरी लोकनृत्य समारोह का निरन्तर 6 वर्षो तक निर्देशन परिकल्पन 1993-1997

शहीद भगतसिंह के 100 वे जन्मदिन वर्ष पर फिरोज शाह तुगलक किले के विशाल परिवेश में "गाथा भगतसिंह की" का मल्टीमीडिया शो 450 कलाकारों के साथ निर्देशन परिकल्पना किया जहां 50 हजार से अधिक दर्शकों के लिए लगातार 7 दिनों तक 7 प्रर्दशन किए

1857 की क्रांति के 150 वे स्मृति पर्व पर लालकिले के विशाल मैदान में "झांसी की रानी" डाँस-ड्रामे बहुमूल्य प्रर्दशन

मप्र सरकार के गणतंत्र दिवस लोक नाट्य समारोह मे अमृत मध्यप्रदेश- विराग - महाबली छत्रसाल व भील जनजाति के लोक देवता देव पिथौरा पर मल्टी-मडिया शो का लगातार 5 सालों तक निर्देशन परिकल्पन किया

नठसम्राट सम्मान 2014

बी वी कांरत लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड 2016

मध्यप्रदेश शिखर सम्मान 2017

जश्नें अदब सम्मान 2018

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भारत सरकार 2020

म प्र गौरव अलंकरण सम्मान प्रेसक्लब मप्र 2021

आल इंडिया आर्टिस्ट एसोशिएशन शिमला व्दारा 2023 का बलराज साहनी पुरुस्कार सम्मान

Created On :   16 Sept 2023 12:00 PM IST

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