मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023: ऊर्जानगरी सिंगरौली से आप को मिल सकती है सियासी ऊर्जा
- सिंगरौली में तीन विधानसभा सीट
- सिंगरौली में त्रिकोणीय मुकाबला
- जातीय समीकरण ही तय करते है जीत
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में हुए नगरीय निकाय चुनाव में सिंगरौली नगर निगम सीट पर महापौर का चुनाव जीतकर आम आदमी पार्टी ने सूबे की राजनीति में पैर जमाने शुरू कर दिए थे। सिंगरौली मेयर सीट पर बीजेपी से नाता तोड़कर आप पार्टी से उम्मीदवार बनकर आई रानी अग्रवाल ने दिग्गज पार्टियों के नेताओं को मात दी थी। आप के संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी जीत के एवज में रानी अग्रवाल को मध्यप्रदेश आप का प्रदेशाध्यक्ष घोषित किया। आप पार्टी रानी अग्रवाल के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरेगी। आज हम आपको सिंगरौली जिले की तीनों विधानसभा सीटों के चुनावी समीकरण और आप की चुनावी रणनीति के बारे में बताएंगे। सिंगरौली जिले में तीन विधानसभा सीट है, जिनमें देवसर सीट एससी के लिए आरक्षित वहीं चितरंगी सीट एसटी के लिए आरक्षित है, जबकि सिंगरौली सीट सामान्य है।
ऊर्जानगरी कही जानी वाली सिंगरौली सीट के आंकड़े निकाय चुनाव के बाद बदल गए हैं। यहां आप ने बीजेपी और कांग्रेस को टेंशन में डाल दिया है। आप की एंट्री से बीजेपी के लिए टास्क गंभीर हो गया है। 2018 के चुनाव में तीनों सीटों पर कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने बीजेपी अब सिंगरौली में आप के झाडू के सामने कमजोर होती हुई दिखाई दे रही है। 2018 में सिंगरौली, चितरंगी और देवसर वि सीट पर बीजेपी प्रत्याशियों की जीत हुई थी। मेयर चुनाव में झाड़ू ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों का सफाया कर दिया था। अब यहां दोनों प्रमुख दलों को चुनावी चिंता सताने लगी है।
आपको बता दें रानी अग्रवाल के महापौर बनते ही सिंगरौली में आप की चर्चा गली गली और चौराहों पर तेजी से होने लगी है। यहां बीजेपी की स्थिति फीकी पड़ती हुई दिखाई दे रही है। सिंगरौली जिले में आम आदमी पार्टी की रानी अग्रवाल के महापौर जीतने के साथ साथ आप पार्टी के कई पार्षद भी चुनाव जीते थे। मध्यप्रदेश की ऊर्जानगरी सिंगरौली धीरे धीरे आप का गढ़ बनती जा रही है।
रानी का राजनीतिक सफर
46 वर्षीय रानी अग्रवाल ने पंच सरपंच से महापौर तक का सफर तय किया है। 1976 में जन्मीं रानी बारहवीं तक पढ़ी है। राजनीतिक परिवार से नाता रखने वाली रानी बरगवां से सरपंच बनी, फिर जिला पंचायत सदस्य, महापौर फिर आप की प्रदेशाध्यक्ष बनी। मेयर रानी अग्रवाल का छोटा सा परिवार है, उनके पति वुड़ वर्क करते है, उनके दो बेटों है, एक बेटा उनका सीए है, दूसरा प्राइवेट जॉब करता है। दोनों की शादी हो चुकी है। हालांकि आपको बता दें आप की प्रदेशाध्यक्ष महापौर रानी ने 2018 में आप प्रत्याशी के तौर पर सिंगरौंली सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन उस समय उन्हें निराशा हाथ लगी थी। वो तीसरे नंबर पर रही थी। नगरीय चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर पूर्व बीजेपी नेत्री रानी अग्रवाल पर दांव खेला। मेयर के चुनावी मैदान में रानी अग्रवाल ने बीजेपी के प्रत्याशी चंद्र प्रताप विश्वकर्मा को हराया। कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर रही। जबकि बसपा चौथे नंबर पर रही।
आपको बता दें 2018 में बीजेपी से इस्तीफा देकर रानी ने आप का दामन थामा था। इस दौरान उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि उनकी चार पीढ़ियों ने बीजेपी की सेवा की, लेकिन बीजेपी में उनको सम्मान नहीं मिला।
सिंगरौली में आप की रणनीति
सिंगरौली की सीटों के चुनावी समीकरण की बात की जाए तो महापौर की जीत में जो समीकरण बने थे, आप पार्टी उन्हीं समीकरणों के सहारे सिंगरौली में स्थापित होने की कोशिश में हैं। आप के जीतने के पीछे सबसे बड़ा कारण वैश्य और ब्राह्मण मतदाताओं का बीजेपी से नाराज होना रहा। यहां बीएसपी प्रत्याशी को 12 हजार के करीब वोट मिले थे, जो दोनों प्रमुख दल बीजेपी और कांग्रेस के हारने का कारण बने थे। यहां ब्राह्मण, शाहू और दलित वोट हार जीत में निर्णायक भूमिका निभाते है।
सिंगरौली का सियासी इतिहास
सिंगरौली विधानसभा सीट पर 2018 में बीजेपी प्रत्याशी राम लालू वैश्य ने जीत हासिल की थी। सिंगरौली सीट पर दूसरे नंबर पर कांग्रेस, तीसरे नंबर पर आप पार्टी व चौथे नंबर पर बीएसपी रही थी। यहां चारों पाटियों में मुकाबला होता है। यहां जीत हार पार्टी की अपेक्षा प्रत्याशी चेहरा तय करता है। सिंगरौली सीट पर ज्यादातर बीजेपी की जीत होती आई है, यहां से 1998, 1993,1985, और 1980 में कांग्रेस की जीत हुई है, वहीं 2003 में समाजवादी पार्टी की भी जीत हो चुकी है। जबकि 2008, 2013, 2018 में बीजेपी उम्मीदवार की जीत हुई है। सिंगरौली बीजेपी का गढ़ रहा है, लेकिन रानी अग्रवाल के बीजेपी छोड़ने से यहां बीजेपी वोट बैंक में कमी देखने को मिली है।
सिंगरौली सीट के नतीजे
1977 में जेएनपी के नृपेंद्र सिंह
1980 में कांग्रेस के शांति शर्मा
1985 में कांग्रेस के रणविजय प्रताप सिंह
1990 में बीजेपी से राम चरित्रा
1993 में कांग्रेस के अजय सिंह
1998 में कांग्रेस के नरेंद्र प्रताप सिंह मुन्नू
2003 में बंशमणि प्रसाद वर्मा
2008 में बीजेपी के राम लल्लू वैश्य
2013 में बीजेपी के राम लल्लू वैश्य
2018 में बीजेपी के राम लालू वैश्य
जातीय समीकरण
सिंगरौली सीट पर जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां सबसे अधिक प्रभाव वोटों के बंटवारे से होता है। यदि सामान्य वोट बंटते है, तो यहां एससी, एसटी वोट निर्णायक भूमिका निभाते है। इस सीट पर सामान्य और ओबीसी प्रत्याशी चेहरों की लड़ाई अधिक नजर आती है। यहां ब्राह्मण वोट सबसे अहम होता है। जो जिस पार्टी के पक्ष में चला गया उसकी जीत पक्की हो जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में आप पार्टी ने त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया था। और बड़ी संख्या में वोट लेकर दूसरे नंबर पर रही थी। आप की स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
देवसर बीजेपी का गढ़
देवसर विधानसभा सीट एससी के लिए आरक्षित है, यहां बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। इस सीट पर जीजीपी भी अपनी मौजूदगी दर्ज करती है। देवसर में असुसूचित जाति, आदिवासी, क्षत्रिय और साहू वोट अधिक है। देवसर सीट पर 2003 से 2018 लगातार बीजेपी जीतती आ रही है। जबकि 1993,1990 और 1980 में बीजेपी कैंडिडेंट ने जीत हासिल की थी। 1998 और 1985 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। जबकि 1977 में जेएनपी ने चुनाव जीता था।
देवसर के विधायक
1977 में जेएनपी के ज्ञान सिंह
1980 में बीजेपी के ज्ञान सिंह
1985 में कांग्रेस के धनशाह
1990 में बीजेपी के ज्ञान सिंह
1993 में बीजेपी के ज्ञान सिंह
1998 में कांग्रेस की शकुंतला प्रधान
2003 में बीजेपी मीना सिंह
2008 में बीजेपी के रामचरित्र
2013 में बीजेपी के राजेंद्र मेश्राम
2018 में बीजेपी के सुभाष वर्मा
चितरंगी विधानसभा सीट का चुनाव
आपको बता दें 2002 के परिसीमन आयोग के आधार पर 2008 में चितरंगी विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। चितरंगी सीट पर 2008 से विधानसभा चुनाव होना स्टार्ट हुआ है। चितरंगी सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है। यहां दो बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। गठन के बाद से अभी तक इस सीट पर तीन बार चुनाव हुए है। 2023 का विधानसभा चुनाव चितरंगी सीट पर चौथा चुनाव होगा।
चितरंगी सीट पर बीजेपी कांग्रेस बारी बारी से चुनाव जीतती आई है। 2018 में चितरंगी सीट से बीजेपी के अमर सिंह ने जीत दर्ज की थी, वहीं 2013 में कांग्रेस की सरस्वती सिंह ने जीत कांग्रेस के हाथों में सौंपी, इससे पहले 2008 में बीजेपी के जगन्नाथ सिंह ने विजय हासिल की थी। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है, जबकि बीएसपी यहां त्रिकोणीय मुकाबला बनाती है