ग्वालियर चंबल में बसपा हाथी की चाल तय करेगी बीजेपी कांग्रेस का हाल, जानिए ग्वालियर की विधानसभा सीटों का चुनावी गणित

  • सिंधिया- तोमर का असर
  • बसपा v/s बरैया का वर्चस्व
  • कांग्रेस की चुनावी तैयारी

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-16 04:32 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ग्वालियर चंबल संभाग में कुल आठ जिले आते है, जिनमें से पांच जिले ग्वालियर, शिवपुरी, दतिया, गुना, अशोकनगर ग्वालियर में व मुरैना, भिंड और श्योपुर तीन जिले चंबल संभाग के अंतर्गत आते है।  प्रशासनिक और राजस्व नजरिए से भले ही इन संभागों में अलग अलग जिले आते हो,लेकिन राजनीतिक पृष्ठभूमि इन सभी जिलों में एक सी है। ज्यादातर इलाके पर सिंधिया परिवार का दबदबा है। ग्वालियर-चंबल की राजनीति पर प्रदेश के साथ साथ दिल्ली की नजर रहती है। यहां से प्रदेश की सरकारें बनती और बिगड़ती रहती है। मध्यप्रदेश की सियासत में इस अंचल को पॉवर सेंटर का दर्जा हासिल है। यहां जिस पार्टी की जीत होती है वहीं सत्ता की कुर्सी पर बैठती है। इसलिए इस इलाके की पॉलिटिक्स पॉवर का अंदाजा कांग्रेस, बीजेपी और बसपा के बड़े बड़े नेताओं को है।

सिंधिया का असर

ग्वालियर चंबल अंचल में कुल 34 विधानसभा सीट आती है। अंबाह, गोहद, डबरा,भांडेर, करैरा, गुना, अशोक नगर विधानसभा सीट दलित वर्ग के लिए आरक्षित है। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी बीएसपी और कांग्रेस अपने अपने किले को मजबूत करने में जुटी हुई है। बीजेपी के वीडी शर्मा और बीएसपी के इंजी रमाकांत पिप्पल दोनों पार्टियों के प्रदेशाध्यक्ष इसी इलाके से आते है। जिसका लाभ इन दोनों दलों को मिलने की आशंका है। हालांकि आपको बता दें 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां की 34 सीटों से 28 सीटें जीती थी। और कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन सिंधिया गुट के दल बदलने से कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई। और बीजेपी की शिवराज सरकार  फिर से सत्ता में वापस आ गई। इन चुनावी नतीजों के अनुसार बीजेपी को यहां काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आ जाने से ग्वालियर चंबल में फिर से बीजेपी की स्थिति ठीक ठाक हुई है। ऐसा कह पाना मुश्किल है, हालांकि ये आगामी चुनावों के नतीजे बताएंगे।

कांग्रेस- बीजेपी की बाधा बसपा का बोलबाला

ग्वालियर-चंबल इलाके में बीजेपी कांग्रेस के साथ साथ बहुजन समाज पार्टी का भी बोलबाला है। बीएसपी का हाथी यहां कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना देता है। इलाके में बीएसपी का वर्चस्व बरकरार है। हालांकि हाथी जीत की सीढ़ी नहीं चढ़ पाता है।  बसपा प्रदेश प्रभारी व राज्यसभा सांसद  इंजी रामजी गौतम के नेतृत्व में बसपा कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत किया है। सांसद गौतम ने यहां कई रैलियां, जनसभा,साइकिल और पदयात्रा कर हाथी में नई जान फूंकी है। इस बार के चुनाव से पहले बीएसपी प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद के हाथों में मध्यप्रदेश की कमान सौंपी है। जिससे युवा नेताओं का रूझान बीएसपी की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।

कांग्रेस अपने पुराने आंकड़ों को दोहराने के लिए पूरी ताकत के साथ ग्वालियर चंबल किले को फतेह करने में जुटी हुई है। नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की यहां बेहतर जीत हुई थी। ग्वालियर में 50 साल बाद कांग्रेस ने बीजेपी से मेयर सीट छींनी।। इस चुनावी इलाके में दलित वोटरों की काफी संख्या है, इसे देखते हुए कांग्रेस ने यहां दलित नेता फूल सिंह बरैया को कमान सौंपी हुई है। कांग्रेस की तरफ से इलाके में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, विपक्ष के नेता डॉ गोविंद सिंह और रामनिवास रावत नेता यहां से प्रमुख नेता है। कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं के कारण बीजेपी का स्थानीय गणित बिगड़ने की सुर्खियां समाचारों में खूब सुनाई दी। जिसका खामियाजा बीजेपी को नगरीय निकायों के नतीजों में देखने को मिला।  पार्टी में अब भी पुराने और नए कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय नहीं बैठ पा रहा है। बीजेपी की ओर से ग्वालियर चंबल में कई दिग्गज नेता है। जिनमें नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रमुख चेहरें है। सत्ता और सगंठन स्तर पर बीजेपी में इस इलाके से  दलित और ओबीसी चेहरें की कमी है। जो चुनावी नतीजों में साफ दिखाई देती है।

हम यहां सिर्फ ग्वालियर जिले की विधानसभा सीटों की चर्चा करेंगे। ग्वालियर जिले में कुल 6 विधानसभा सीट है। जिनमें ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, डबरा (अ.जा.) शामिल है।

ग्वालियर विधानसभा सीट 

ग्वालियर विधानसभा सीट से 2020 में हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी से प्रद्युमन सिंह तोमर चुनाव जीते, इससे पहले 2008 और 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में भी प्रद्युमन सिंह इस सीट से विधायक रह चुके थे। ।1998, 2003 में नरेंद्र सिंह तोमर यहां से विधायक थे। 2013 में जयभान सिंह पवैया इस सीट से बीजेपी से विधायक रहे थे।

ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा सीट

ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा सीट से 2018 में भारतीय जनता पार्टी से भारत सिंह कुशवाह ने बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी साहब सिंह को 2 हजार वोटों के अंतर से हराया था। इस सीट पर बीएसपी की मजबूत स्थिति है। 2013 के चुनाव में भी भारत सिंह कुशवाह यहां से विधायक बने थे। वहीं 2008 में बीएसपी के मदन कुशवाह ने बीजेपी प्रत्याशी को मात दी थी।

ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट

ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट से 2020 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस से डॉ. सतीश सिकरवार ने भारतीय जनता पार्टी के मुन्ना लाल गोयल को मात दी थी। इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर मुन्नालाल गोयल ने बीजेपी के डॉ सतीश सिकरवार को हराया था। उपचुनाव ने दोनों नेताओं ने पाला बदल लिया था। उससे पहले 2003,2008,2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस सीट से दर्ज हासिल की थी। 2003 और 2008 में अनूप मिश्रा यहां से विधायक रहे थे, वहीं 2013 में माया सिंह इस सीट से विधायक रह चुकी है।

ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट

2018 में ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पांडे ने बीजेपी के नारायण सिंह कुशवाह को हराया था। इससे पहले 2003,2008 और 2013 में नारायण सिंह कुशवाह यहां से तीन बार लगातार विधायक रह चुके है।

भीतरवार विधानसभा सीट

2018 में भीतरवार विधानसभा सीट से कांग्रेस के लखन सिंह यादव ने बीजेपी के अनूप मिश्रा को 12 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। 2008, 2013 और 2018 से यहां से लखन सिंह यादव लगातार तीन बार से विधायक है। बीएसपी का हाथी भीतरवार सीट के चुनावी समीकरण में दमखम तो दिखाता है, लेकिन जीत के मुकाम तक नहीं पहुंच पाता। हाथी यहां त्रिकोणीय मुकाबला पैदा करता है।

डबरा 

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित डबरा विधानसभा सीट से 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस के सुरेश राजे ने बीजेपी की इमरती देवी को 7 हजार से अधिक वोटों के मार्जिन से मात दी थी। इससे पहले कांग्रेस में रहते हुए इमरती देवी ने तीन बार 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। इस सीट पर भी बहुजन समाज पार्टी का काफी अच्छा दबदबा है। जो चुनाव में त्रिकोणीय स्थिति पैदा करता है।

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