जनसंघ और बीजेपी के गढ़ पर दिग्विजय सिंह का दबदबा, राजगढ़ में चलता है जातियों का जादू
- राजगढ़ में पांच विधानसभा सीट
- बीजेपी और संघ ने बढ़ाई सक्रियता
- ओबीसी बाहुल्य इलाका
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में राजनीतिक दलों से चुनावी बिसात बिझाना शुरू कर दिया है। आज हम आपको राजगढ़ जिले की विधानसभा सीटों और उनसे चुनावी फैक्टर के बारे में बताएंगे। राजगढ़ जिले में 5 विधानसभा सीट नरसिंहगढ़, ब्यावरा,राजगढ़,खिलचीपुर, सारंगपुर सीट आती है। राजगढ़ पर पूर्व सीएम व कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का दबदबा है। राजगढ़ की 81 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। यहां बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की समस्या हमेशा बनी रहती है। जातियों की बात की जाए तो यहां ओबीसी वर्ग का मतदाता सबसे अधिक है। इनकी तादाद 56 प्रतिशत, वहीं एससी की 18 फीसदी, मुस्लिम 5 फीसदी और सामान्य मतदाता 4 फीसदी है। ज्यादातर सीटों पर सौंधिया और दांगी निर्णायक भूमिका में होते हैं।
राजगढ़ विधानसभा सीट
राजगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला देखने को मिलता है। यहां किसानों और एससी एसटी की दुर्दशा का मुद्दा चुनाव में बना रहता है। राजगढ़ पर पूर्व सीएम व कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का दबदबा है। राजगढ़ की 81 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। यहां बिजली, पानी की समस्या बनी रहती है, सीट पर सौंधिया और दांगी समाज के मतदाता चुनाव में अहम भूमिका निभाते है। कभी जनसंघ और बीजेपी के प्रभाव में रहने वाले राजगढ़ दिग्विजय सिंह के संपर्क में आने के बाद कांग्रेस के प्रभावी जिले के रूप में माना जाने लगा। अब इलाके में दिग्विजय के बढ़ते वर्चस्व को देखकर आरएसएस और बीजेपी की फिर से सक्रियता बढ़ी है।
2018 में कांग्रेस के बापू सिंह तंवर
2013 में बीजेपी के अमर सिंह यादव
2008 में कांग्रेस के हेमराज कल्पोनी
2003 में बीजेपी के मोहन शर्मा
1998 में बीजेपी के हेमचंद यादव
1993 में बीजेपी के रघुनंदन शर्मा
1990 में कांग्रेस के मोतीलाल वोरा
1985 में कांग्रेस के मोतीलाल वोरा
1980 में बीजेपी के जमनालाल
1977 में जेएनपी से जमनालाल
नरसिंहगढ़ विधानसभा सीट
मालवा का कश्मीर कहे जाने वाले नरसिंहगढ़ में बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या है। जातियों की बात की जाए तो यहां सबसे अधिक वोट अनुसूचित जनजाति के है।
2018 में बीजेपी के राज्यवर्धन सिंह
2013 में कांग्रेस के गिरीश भंडारी
2008 में बीजेपी के मोहन शर्मा
2003 में राज्यवर्धन सिंह
1998 में कांग्रेस के रविंद्र चौबे
1993 में कांग्रेस के रविंद्र चौबे
1990 में कांग्रेस के रविंद्र चौबे
1985 में कांग्रेस के रविंज्र चौबे
1980 में कांग्रेस की देवी चौबे
1977 में जेएनपी के प्रदीप कुमार चौबे
ब्यावरा विधानसभा सीट
ब्यावरा में जातीगत फेक्टर खूब चलता है , यहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही जाति के आधार पर प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारती है। समान जाति के प्रत्याशी होने से हार जीत का अंतर भी मामूली होता है। चुनाव में जाति का चेहरा और उसका असर ब्यावरा विधानसभा सीट पर साफ देखाई देता है। यहां दांगी और सौंधिया समाज बाहुल्य संख्या में होते है। ब्यावरा में बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस चुनाव जीतती आई है।
2020 उपचुनाव में कांग्रेस के अम्ल्याहत दांगी
2018 में कांग्रेस के गोवर्धन सिंह
2013 में बीजेपी के नारायण सिंह पवार
2008 में कांग्रेस के पुरूषोत्तम दांगी
2003 में बीजेपी के बद्रीलाल यादव
1998 में कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू
1993 में बीजेपी के बद्रीलाल
1990 में निर्दलीय दत्ताराव राव
1985 में कांग्रेस के जगेश्वर साहू
1980 में बीजेपी के दत्तात्रि माधवराव जगताप
1977 में जेएनपी के दत्तात्रे माधवराव
खिलचीपुर विधानसभा सीट
खिची राजाओं के हाथ में यहां की बागडोर होने के कारण इसका नाम खिलचीपुर पड़ा। यहां खिची राजाओं का एक महल भी है। हर चुनाव में पानी, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे हावी होते है।
2018 में कांग्रेस के प्रियव्रंत सिंह
2013 में बीजेपी के कुंवर हजारीलाल दांगी
2008 में कांग्रेस के प्रियव्रत सिंह
2003 में कांग्रेस के प्रियव्रत सिंह
1998 में कांग्रेस के बदरूद्दीन कुर्रेशी
1993 में बीजेपी के प्रेमप्रकाश पांडे
1990 में पूरन सिंह पंवार
1985 में रवि आर्य
1980 में कांग्रेस के कन्हैयालाल खूबन सिंह
1977 में जेएनपी के नारायण सिंह पंवार
सारंगपुर विधानसभा सीट
सारंगपुर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, सारंगपुर बीजेपी का मजबूत किला है। 1957 में अस्तित्व में आई सारंगपुर सीट पर अब तक के चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ तीन चुनावों में ही जीत मिली है।
2018 में बीजेपी से कुंवर कोठार
2013 में बीजेपी के कुंवर कोठार
2008 में बीजेपी के गौतम टेटवाल
2003 में बीजेपी के अमर सिंह कोठार
1998 में कांग्रेस के कृष्ण मोहन मालवीय
1993 में बीजेपी के अमर सिंह कोठार
1990 में बीजेपी के अमर सिंह कोठार
1985 में कांग्रेस के हजारीलाल
1980 में बीजेपी के अमर सिंह कोठार
1977 में निर्दलीय अमर सिंह मोतीलाल