विद्युत, सडक़ एवं पेयजल से वंचित मटेवरा आदिवासी बस्ती के ग्रामीण
सलेहा विद्युत, सडक़ एवं पेयजल से वंचित मटेवरा आदिवासी बस्ती के ग्रामीण
सलेहा नि.प्र.। बुनियादी सुविधायें लोगो को मिले इसके लिए सरकार द्वारा विकास कार्याे तथा महत्वकांक्षी योजनाओं पर भारी भरकम राशि हर साल खर्च की जा रही है परंतु इन योजना और विकास कार्याे का लाभ समाज के सबसे कमजोर लोगो तक पहँुचाने को लेकर स्थितियां अभी तक कमजोर बनी हुई है। समाज के सबसे कमजोर वंचित समुदाय के लोग जिन बस्तियों ओैर मजरो टोलो में निवास करते है उन तक विकास कार्य तथा योजनायें नही पहँुच रही है गुनौर जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत धरवारा स्थित मटेवरा आदिवासी बस्ती की हालत विकास तथा शासन की योजनाओं की पहँुच के मामले में दयनीय स्थिति के रूप में देखी जा सकती है बस्ती में रहने वाले सीधा-साधा आदिवासी समाज बुनियादी आवश्यकताओं के अभाव में परेशानियों का सामना करना पड रहा है।
मटेवरा स्थित आदिवासी बस्ती में सडक़,बिजली,पानी का संकट बना हुआ है बच्चों के लिए आंगनबाडी भवन एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाये भी उपलब्ध नही कराई गई है। यहां के निवासियों द्वारा बताया कि ५०-६० वर्ष से वहां रह रहे है गांव में बिजली के जलते बल्ब को नही देख सके है। गांव से मुख्य सडक़ मार्ग पहिया तक लगभग ०३ किलोमीटर की दूरी है जहां तक पहँुचने के लिए रास्ता नही बना हेै। खेतों की मेढों की पगड्डी से सडक़ मार्ग पिपरिया तक पहँुचते है जहां से अपनी दैनिक जरूरतो ेमे लगने वाले सामान अथवा दूसरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पटना तमोली व सलेहा आते -जाते है। बस्ती की जनसंख्या लगभग ४०० के आसपास है बस्ती से ८५ प्रतिशत परिवार आदिवासी है फिर भी न तो यहां अटल ज्योति जल रही है और न ही राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के जरिये बिजली पहुंचती है। दिखाने के लिए ही गांव में एक बिजली का पोल भी नही लगा हुआ है। सुदूर सडक़ योजना के माध्यम से जहां खेतों तक पहँुचने के लिए रास्ता बनाने की बात की हो रही है वहीं गांव से सडक़ तक जाने तक का ०३ किलोमीटर का रास्ता भी नही बनाया जा रहा है स्थानीय लोगो ने बताया कि रास्ते के लिए स्थानीय किसान अपनी निजी भूमि भी स्वेैच्छिक रूप से देने के लिए तैयार है परंतु कोई सुनने वाला नही है। गांव के लोगों को जल सकंट का सामना करना पडता है पिछले साल पूर्व वर्ष में एक हैण्डपंप लगाया था पानी के कम होने के चलते पानी नही निकलता।
जिसकी जानकारी देने के बावजूद भी हैण्डपंप को बनाने को लेकर कोई नही पहँुचता। जल जीवन मिशन कार्यक्रम के तहत जहां सभी के लिए नल से जल की बात की जा रही है वहीं आदिवासी बस्ती केे लोगों का पेयजल सकंट का हल करने के लिए कोई योजना नही बनाई गई है पूरा गांव किसी तरह उपेक्षित है उसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि विधानसभा तथा लोकसभा के चुनाव में मतदान करने के लिए यहां के लोगों को १५ किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत कुलगवां मडैयन स्थित पोलिंग बूथ बिल्हा पैदल जाना पडता है। स्वास्थ्य और पोषण जैसी शासन की सेवाऐं ग्रामीणो को नही मिल पाती कारण है कि गांव में आंगनबाडी केन्द्र तक नही खोला गया है आंगनबाडी केन्द्र स्वास्थ्य कार्यकर्ता की सेवा नही होने से बच्चों में कुपोषण जैसी गंभीर जैसी समस्या देखी जा सकती है। मानवीय आवश्कताओं के सूचांक के मामलों में आदिवासी बाहुल्य बस्ती की इस दयनीय स्थिति के लिए ग्राम पंचायत के रहनुमाओं के भेदभावपूर्ण नीति एवं उदासीनता इसकी बडी वजह बनी हुई है। साथ ही साथ जिम्मेदार जनप्रतिनिधि वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बस्ती के लोगो की समस्या के समाधान को लेकर दूर-दूर तक गंभीर नजर नही आ रहे है।
इनका कहना है
ग्राम पंचायत में सचिव के पद पर इसी वर्ष मेरी पदस्थापना हुई है। आदिवासी बस्ती की समस्याओं और आवश्यकताओं के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी दे दी गई है जैसे निर्देश होगे उसके तहत कार्य कराया जायेगा।
बाल्मीकि राठौर
सचिव, ग्राम पंचायत धरवारा
बस्ती की स्थिति काफी खराब है विकास के लिए प्रयास कर रह हॅूँ जिससे लोगों को सडक़,पानी बिजली सहित जरूरी सुविधायें मिल सकें।
मल्लू आदिवासी
सरपंच, ग्राम पंचायत धरवारा