अगर बिना सोचे फैसले लेता, तो अब तक कुर्सी पर कैसे टिकता
कुलगुरु डॉ. सुभाष चौधरी बोले अगर बिना सोचे फैसले लेता, तो अब तक कुर्सी पर कैसे टिकता
डिजिटल डेस्क, नागपुर। परीक्षा के कामकाज के लिए एमकेसीएल की अवैध नियुक्ति, सीनेट की स्नातक सीटों के चुनाव आयोजित करने में हाई कोर्ट की फटकार और ऐसे अनेक विवादों में घिरे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय कुलगुरु डॉ. सुभाष चौधरी ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ी है। भास्कर से बातचीत में उन्होंने कई अहम विषयों पर बेबाकी से अपना पक्ष रखा। कुलगुरु ने कहा कि मैं जो भी फैसले लेता हूं, बहुत अध्ययन के बाद और सोच समझ कर लेता हूं। वरना इतने दिनों तक मैं कुर्सी पर नहीं टिक पाता। सीनेट चुनाव आयोजित करने में अपने अधिकारों के भी आगे जाने के कारण हाई कोर्ट से फटकार लगने के प्रश्न पर वे जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे विवि अधिनियम में जो अधिकार दिए गए, मैंने उसका उपयोग किया। नियमानुसार 30 नवंबर के पूर्व चुनाव कराने थे। इसलिए विशेषाधिकार का प्रयोग किया। लेकिन हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया, इसलिए कोर्ट के फैसले को स्वीकार करता हूं।
"एमकेसीएल' का फैसला मेरा नहीं : उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग के उप-सचिव अजीत बाविस्कर की जांच रिपोर्ट में डॉ. सुभाष चौधरी को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस पर डॉ. चौधरी ने उन्होंने सफाई दी कि एमकेसीएल को परीक्षा का काम सौंपने का फैसला उनके अकेले का नहीं था। यह प्रस्ताव व्यवस्थापन परिषद ने मंजूर किया। यह एमकेसीएल कंपनी कभी भी ब्लैकलिस्ट नहीं की गई। बाविस्कर समिति की रिपोर्ट पर उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट प्रधान सचिव को सौंपी गई है। इसमें कई बाते सही नहीं है। इसलिए प्रधान सचिव ने मुझे कुछ चुनिंदा मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा है, जो मैं उन्हें सौंप चुका हूं।
तो धवनकर पर एफआईआर करते : विवि के चर्चित धर्मेश धवनकर प्रकरण पर डॉ. चौधरी ने कहा कि फिलहाल धवनकर को सख्ती के अवकाश पर भेजकर सेवानिवृत्त न्यायाधीश से मामले की जांच की जा रही है। लेकिन इस मामले में पीड़ित प्राध्यापकों ने सीधे पुलिस में धवनकर के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं की, यह समझ के बाहर है। विवि अपने अधिकारों में रह कर मामले की जांच तो कर ही रही है। लेकिन चूंकि यह मामला दो पक्षों के आपस का है, विवि की इस में कहीं कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में प्राध्यापकों को पुलिस की शरण लेनी चाहिए थी।