Tokyo Olympic 2020: कौन हैं तलवारबाज भवानी देवी, जो ओलंपिक में हार कर भी भारत की जीत की उम्मीद बन गईं
Tokyo Olympic 2020: कौन हैं तलवारबाज भवानी देवी, जो ओलंपिक में हार कर भी भारत की जीत की उम्मीद बन गईं
- अपने पहले मैच में भवानी ने नादिया बेन अजीजी को 15-3 से हराया
- ब्रूनेट ने भवानी को 7-15 से मात दी
- भवानी ने ओलंपिक पदार्पण मुकाबला जीता
डिजिटल डेस्क, टोक्यो। भारतीय तलवारबाज भवानी देवी ने अपने ओलंपिक पदार्पण पर आत्मविश्वास भरी शुरुआत कर आसानी से पहला मैच अपने नाम कर लिया। लेकिन दूसरे मैच में चौथी वरीयता प्राप्त मैनन ब्रूनेट से हारकर वह टोक्यो ओलंपिक से बाहर हो गईं है।
रियो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाने वाली ब्रूनेट ने भवानी को 7-15 से मात दी।
ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज भवानी के लिए ब्रूनेट का सामना करना बिल्कुल भी आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने विश्वास बनाए रखा। इससे पहले भवानी ने ट्यूनीशिया की नादिया बेन अजीजी को 15-3 से हराकर दूसरे दौर में प्रवेश किया था।
भवानी देवी पहले पीरियड में 2-8 से पीछे हो गई थीं। ब्रूनेट ने दूसरे पीरियड की भी अच्छी शुरुआत की और स्कोर 11-02 ला दिया। भवानी ने इसके बाद लगातार चार अंक बनाए, लेकिन वह नौ मिनट 48 सेकेंड तक चले मुकाबले में ब्रूनेट को पहले 15 अंक तक पहुंचने से नहीं रोक पाईं। इस इवेंट में जो भी तलवारबाज पहले 15 अंक हासिल करता है उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है।
मैच के बाद भवानी देवी ने कहा, ‘यह मेरा पहला ओलंपिक है और ओलंपिक में भाग लेने वाली मैं देश की पहली तलवारबाज हूं । मैं यहां भारत का प्रतिनिधित्व करके और पहला मैच जीतकर खुश हूं।"
अपने पहले ओलंपिक मैच में भवानी ने अजीजी के खिलाफ शुरू से ही आक्रामक रवैया अपनाया, उन्होंने अजीजी के खुले ‘स्टांस’ का फायदा उठाकर तीन मिनट के पहले पीरियड में एक भी अंक नहीं गंवाया और 8-0 की मजबूत बढ़त बनाई।
नादिया ने दूसरे पीरियड में कुछ सुधार किया, लेकिन भारतीय खिलाड़ी ने अपनी बढ़त मजबूत करनी जारी रखी और छह मिनट 14 सेकेंड में मुकाबला अपने नाम किया।
सी.ए भवानी देवी ओलंपिक में भाग लेने वाली भारत की पहली तलवारबाज
भवानी देवी ने ओलंपिक में क्वालिफाइ कर इतिहास रच दिया था। ओलंपिक इतिहास में पहली बार भवानी ने फेंसिग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि उनका यह सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा हैं। पिछली साल ही उन्होंने कोरोना के कारण अपने पिता को खोया था और उनकी मां भी कोविड पॉजीटीव होने के कारण अस्पताल में भर्ती रहीं थीं। भवानी की तरह ही उनकी मां भी एक वॉरियर हैं, उन्होंने अपने बच्चे के सपने को पूरा करने के लिए अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे। उन्हीं गिरवी रखे गहनों की बदौलत भवानी का ओलंपिक तक का सफर पूरा हो सका। भवानी भले ही मेडल न जीत सकीं हों, पर ये साबित करने में कामयाब रहीं कि फेंसिंग में भारत की उम्मीदें धुंधली नहीं पड़ी हैं। पहले ही ओलंपिक में एक मैच जीत कर भवानी ने ये साबि कर दिया कि तलवारबाजी में अभी भारत के लिए बहुत सी संभावनाएं हैं।