कलाओं के घर देवास की सियासी लड़ाई में हर वर्ग के वोटर्स का बराबर रसूख

  • 5 विधानसभा सीट, सोनकच्छ,हाटपिपल्या,खातेगांव,बागली और देवास
  • सोनकच्छ अनुसूचित जाति और बागली अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित
  • हाटपिपल्या,खातेगांव और देवास सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-12 10:50 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के उज्जैन संभाग में देवास, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर, आगर मालवा, उज्जैन जिले शामिल है। 14 जून 2008 को उज्जैन संभाग बना। मध्यप्रदेश में चुनावी मौसम शुरू हो गया है, इसे देखते हुए आज हम उज्जैन संभाग के देवास जिले की राजनीति, वहां की विधानसभा सीटों का समीकरण, मुद्दें और स्थानीय समस्याओं के बारे में बताएंगे। यहां की तीन सीटों पर बीजेपी औऱ दो सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।

देवास जिले में पांच विधानसभा सीट, सोनकच्छ,हाटपिपल्या,खातेगांव,बागली और देवास आती है। जिले की पांच विधानसभा सीटों में से सोनकच्छ अनुसूचित जाति और बागली अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, जबकि तीन विधानसभा सीट देवास, हाटपिपल्या, खातेगांव सामान्य के लिए सुरक्षित है।

देवास जिला कई वजहों से प्रसिद्ध है, देवास पवन चक्कियों के लिए प्रसिद्ध है, मध्य प्रदेश की सबसे ज्यादा पवनचक्की देवास में है। देवास में बैंक प्रिंटिंग प्रेस नोट का कारखाना भी है। देवास को कलाओं के घर से भी जाना जाता है। देवास को मध्यप्रदेश का प्रथम बायोडीजल जिला घोषित किया गया है।

बागली विधानसभा सीट

2008 से बागली सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए रिजर्व है। सीट पर आदिवासी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, यहां 60 फीसदी वोट एसटी वर्ग के है। बागली को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। पूर्व सीएम कैलाश जोशी यहां से 9 बार चुनाव जीते थे। प्रदेश की प्रसिद्ध काली सिंध नदी का उद्गम भी देवास के बागली गांव से होता है। पूर्व सीएमव बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश जोशी का बागली में एक तरफा दबदबा था, उनके देहांत के बात बीजेपी सरकार में उनके बेटे दीपक जोशी भी मंत्री रहे। हाल ही में बीजेपी में उपेक्षा का दंश झेल रहे दीपक जोशी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।

1962 में भारतीय जनसंघ से कैलाश चंद्र जोशी

1967 में भारतीय जनसंघ से कैलाश चंद्र जोशी

1972 में भारतीय जनसंघ से कैलाश चंद्र जोशी

1977 जनता पार्टी से कैलाश चंद्र जोशी

1980 में भारतीय जनता पार्टी से कैलाश चंद्र जोशी,

1985 में भारतीय जनता पार्टी से कैलाश चंद्र जोशी

1990 में भारतीय जनता पार्टी से कैलाश चंद्र जोशी

1993 में भारतीय जनता पार्टी से कैलाश चंद्र जोशी

1998 कांग्रेस से श्याम होलानी

2003 में भारतीय जनता पार्टी से दीपक जोशी

2008 में भारतीय जनता पार्टी से चंपालाल देवड़ा

2013 में भारतीय जनता पार्टी से चंपालाल देवड़ा

2018 में भारतीय जनता पार्टी से पहाड़ सिंह कन्नोजे

सोनकच्छ विधानसभा सीट

सोनकच्छ सीट अनुसूचित जाति के आरक्षित है। 40 फीसदी से ज्यादा वोट एससी वर्ग का है। दूसरे नंबर पर 30 फीसदी वोटर्स ठाकुर समुदाय का है। एससी और ठाकुर वर्ग ही जीत में अहम भूमिका निभाता है।1998 , 2003, 2008 में लगातार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, 2013 के चुनाव में कांग्रेस यहां मात खा गई थी। 2008 में कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन सिंह वर्मा यहां से चुनाव जीते थे। सज्जन सिंह वर्मा यहां मजबूत स्थिति में है।

1957 में जेएस से भागीरथ सिंह

1962 में जेएस से भागीरथ सिंह

1967 में जेएस से खूबचंद

1972 में कांग्रेस से बापूलाल किशनलाल

1977 में जनता पार्टी से देवीलाल रायकवाल बुलचंद

1980 में कांग्रेस से बापूलाल किशन लाल मालवीय

1985 में कांग्रेस से सज्जन सिंह वर्मा

1990 बीजेपी से कैलाश

1993 बीजेपी से सुरेंदर वर्मा

1998 में कांग्रेस से सज्जन सिंह वर्मा

2003 में कांग्रेस से सज्जन सिंह वर्मा

2008 में कांग्रेस से सज्जन सिंह वर्मा

2013 में बीजेपी से राजेंद्र वर्मा

2018 में कांग्रेस से सज्जन सिंह वर्मा

देवास विधानसभा सीट

देवास के चुनावी इतिहास की बात की जाए तो आपको बता दें देवास विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई थी। 1962 तक यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य सीट हो गई। कभी कांग्रेस का गढ़ रही देवास सीट पर बीजेपी का दबदबा है। तीन दशक से अधिक समय से देवास सीट पर बीजेपी का कब्जा है। बीजेपी 1990 से यहां जीत दर्ज कर रही है। 1985 में आखिरी बार कांग्रेस को यहां जीत मिली थी।

आपको बता दें 1990 से 2013 तक इस सीट पर एक ही उम्मीदवार बीजेपी के स्वर्गीय तुकोजीराव पंवार का कब्जा रहा है। उनके निधन के बाद 2015 के उपचुनाव में उनकी पत्नी गायत्री राजे पवार बीजेपी प्रत्याशी के रूप में जीत मिली। गायत्री राजे ही वर्तमान में विधायक है। सीट पर ब्राह्मण, राजपूत, मुस्लिम वोटों की संख्या अधिक है। खाती समाज भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका में होता है।

1957 में कांग्रेस से अनंत पटवर्धन

1962 में कांग्रेस से बापूलाल

1967 में कांग्रेस से हेतसिंह

1972 में कांग्रेस से धीरसिंह मोहनसिंह

1977 में जनता पार्टी से शंकर कन्नुंगो

1980 में कांग्रेस से चन्द्र प्रभाष शेखर

1985 में कांग्रेस से चंद्र प्रभाष शेखर

1990 में बीजेपी से तुकोजी राव पवार

1993 में बीजेपी से तुकोजी राव पवार

1998 में बीजेपी से तुकोजी राव पवार

2003 में बीजेपी से तुकोजी राव पवार

2008 में बीजेपी से तुकोजी राव पवार

2013 में बीजेपी से तुकोजी राव पवार

2015 का उपचुनाव में बीजेपी से गायत्री राजे पवार

2018 में बीजेपी से गायत्री राजे पवार

हाटपिपल्या विधानसभा सीट

हाटपिपल्या विधानसभा सीट 1977 में गठित हुई थी। भीतरघात यहां के चुनाव में हमेशा देखेने को मिलता है। सामान्य सीट हाटपिपल्या में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है। हाटपिपल्या सीट पर दलित वोटरों की संख्या 50 हजार के करीब है। खाती और मुस्लिम समुदायों के साथ साथ राजपूत, पाटीदार, सैंधव समाज के लोग चुनावी में अहम भूमिका में होते है।

1977 में जनता पार्टी से तेज सिंह सेंधव

1980 में बीजेपी से तेज सिंह सेंधव

1985 में कांग्रेस से राजेंद्र सिंह बघेल

1990 में बीजेपी से तेज सिंह सेंधव

1993 में कांग्रेस से राजेंद्र सिंह बघेल

1998 में बीजेपी से तेज सिंह सेंधव

2003 में कांग्रेस से राजेंद्र सिंह बघेल

2008 में बीजेपी से दीपक जोशी

2013 में बीजेपी से दीपक जोशी

2018 में कांग्रेस से मनोज चौधरी

2020 उपचुनाव में बीजेपी से मनोज चौधरी

खातेगांव विधानसभा सीट

स्वास्थ्य सुविधा बेहाल है।शिक्षा और पेय जल खस्ताहाल में है। अवैध उत्खनन यहां का प्रमुख चुनावी मुद्दा है। रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। खातेगांव के नाम पर सीट का नाम है, लेकिन ज्यादातर विधायक कन्नौद गांव से बने हुए है. आखिरी बार खाते गांव से 1993 में कमला अग्रवाल को भाजपा ने प्रत्याशी घोषित किया था, जो चुनाव हार गई। उसके बाद दोनों ही दलों ने कभी खाते गांव से टिकट नहीं दिया है। कांग्रेस के कैलाश कुंडल,राजकुमीर कुंडल, भाजपा के बृजमोहन धूत,आशीष शर्मा ये सभी कन्नौद से है, इनके अतिरिक्त नारायण चौधरी,श्याप होलानीस ओम पटेल,अन्य सीटों से आकर चुनावी मैदान में उतरे है। चुनाव में जाति का ही जादू चलता है।

1972 में कांग्रेस से मंजुलाबाई वागले

1977 में जेएनपी से किंकर नर्मदा प्रसाद गोविंदराम

1980 में बीजेपी से किंकर नर्मदा प्रसाद

1985 में बीजेपी से गणपत पटेल

1990 में बीजेपी से गोविंद

1993 में कांग्रेस से कैलाश पप्पू कुंडल

1998 में बीजेपी से बृजमोहन

2003 में बीजेपी से बृजमोहन

2008 में बीजेपी से बृजमोहन

2013 में बीजेपी से आशीष गोविंद शर्मा

2018 में बीजेपी से आशीष गोविंद शर्मा

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