निकाय चुनाव बीच में छोड़ कर्नाटक पहुंची सपा और बसपा

निकाय चुनाव का पहला चरण संपन्न होने के बाद दूसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार ने गति पकड़ रखी है

Bhaskar Hindi
Update: 2023-05-06 07:59 GMT
Mayawati - Akhilesh Yadav-Jayant Singh Chaudhary.(photo:Facebook)
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव का पहला चरण संपन्न होने के बाद दूसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार ने गति पकड़ रखी है। जहां एक ओर सत्तारूढ़ दल भाजपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है। वहीं विपक्षी दल सपा और बसपा के बड़े नेता इसे छोड़ कर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में फोकस कर रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो निकाय चुनावों के बीच प्रदेश की सियासत के दो बड़े चेहरे बसपा मुखिया मायावती और सपा मुखिया अखिलेश यादव कर्नाटक दौरे पर हैं। अपने तीन दिवसीय दौरे में अखिलेश यादव पांच रैलियों को संबोधित करेंगे। जबकि मायावती एक रैली को संबोधित करने के साथ पार्टी के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर चुनाव का फीडबैक ले चुकी हैं। बसपा पंजाब को छोड़कर देश में कहीं भी किसी भी विरोधी पार्टी से गठबंधन न करने की नीति के तहत कर्नाटक में भी अकेले ही चुनाव लड़ रही है।

जानकारों की मानें तो कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा के एक प्रत्याशी को जीत हासिल हुई थी, जबकि समाजवादी पार्टी का खाता नहीं खुला था। सपा ने 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे मगर सभी सीटों पर पार्टी को शिकस्त झेलनी पड़ी थी। वहीं बसपा ने जेडीएस गठबंधन के साथ 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। ऐसे में सबकी निगाहें इस बात पर लगी हैं कि दोनों नेता आखिर किस दल को सियासी नुकसान पहुंचाएंगे। जबकि यूपी में निकाय चुनाव चल रहा है। ऐसे में दोनों दलों की गंभीरता पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं, जबकि दोनों दलों का कर्नाटक में कोई जनाधार नहीं है। निकाय चुनाव के बीच दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं के कर्नाटक दौरे पर हैरानी भी जताई जा रही है। बसपा मुखिया मायावती ने निकाय चुनाव में इस अपनी पार्टी के लिए एक भी सभा नहीं की है। बसपा ने सभी जिलों में मेयर और सभासद पदों के लिए अपने प्रत्याशी उतारे हैं। फिर भी मायावती प्रचार करने के लिए घर से बाहर नहीं निकलीं।

दूसरी ओर सपा मुखिया अखिलेश यादव भी ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे हैं। उन्होंने गोरखपुर, देवरिया, संतकबीर नगर, साहरनपुर में प्रचार के लिए गए। जबकि इन दोनों नेताओं की अपेक्षा भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के निकाय चुनावों में पूरी ताकत झोंक रखी है। उन्होंने तकरीबन तीन दर्जन जनसभाएं कर डाली। इसके अलावा उनके दोनों उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक भी लगातार चुनाव में पसीना बहाते नजर आ रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी पब्लिक मीटिंग के साथ कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं। महामंत्री संगठन धर्मपाल ने लगभग हर कमिश्नरी पहुंच कर जिले के पदाधिकारियों से बैठक और लौटकर वार रूम में फीडबैक का काम बहुत तेज कर रहे हैं।

राजनीतिक जानकर बताते हैं कि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की ओर से योगी की भारी मांग की जा रही है मगर वह यूपी को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। सपा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। सपा अध्यक्ष उनके समर्थन में ही जनसभा करने यहां पहुंच रहे हैं। हालांकि सपा का यहां कोई खास जनाधार नहीं है। अखिलेश यादव ने कर्नाटक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की है। ऐसे में वो अक्सर कर्नाटक से अपना लगाव भी दिखाते रहे हैं। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डाक्टर आशुतोष वर्मा ने बताया कि निकाय चुनाव सपा बड़ी गंभीरता से लड़ रही है। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष ने निकाय चुनाव के पहले चरण में पूर्वांचल के कुछ जिले और पश्चिम में दौरे कर चुके हैं। इसके आलावा राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव, रामगोपाल और प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल अलग अलग दौरे कर प्रचार की कमान संभाले हैं। वहीं कर्नाटक चुनाव में हमारी पार्टी की उम्मीदवार अच्छी प्रतिस्पर्धा के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए उनकी डिमांड पर राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपना दौरा लगाया है। उनके पक्ष में जनसभा भी करेंगे।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल कहते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां निकाय चुनाव में हार जीत से उनकी राजनीतिक रणनीति में कोई फर्क नहीं पड़ता है। सपा बसपा का मानना है कि इन चुनावों में हार जीत से कोई ऐसा प्रत्याशी निकल के नहीं आया जो बड़ी भूमिका में हो। सपा बसपा निकाय चुनाव को उतना महत्व नहीं देती जितना भाजपा देती है। इसलिए भाजपा को इसका फायदा भी मिलता है। सपा और बसपा इस चुनाव को बहुत गंभीरता से नहीं लेती है। क्योंकि उन्हें लगता है कि इस चुनाव में बहुत मेहनत करने से कोई ज्यादा लाभ नहीं होता। जबकि भाजपा लाभ हो या हानि हो वह हर चुनाव को चुनौती के तौर पर लेती है। देखा जाय तो दोनो दलों का कर्नाटक में कोई जनाधार नहीं है।

एक अन्य वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र रावत कहते हैं कि जितने भी क्षेत्रीय दल हैं, उनके फोकस में लोकसभा चुनाव है। वह निकाय चुनाव को गंभीरता से नहीं लेते हैं। यह पार्टियां सभी सीटों पर उम्मीदवार को उतार कर अपने जनाधार को दिखाने का प्रयास करते हैं। यह दल इन चुनावों में अपनी बहुत ज्यादा ऊर्जा नहीं बर्बाद करते हैं। अगर प्रत्याशी नहीं उतारते तो कार्यकर्ताओं का मोराल डाउन होता है और कॉडर छिटकने का डर भी बना रहता है। इन पार्टियों का पूरा ध्यान 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। इसके आलावा यह गठबंधन की संभावना भी देख रहे होंगे। अगर कांग्रेस को देखें तो उनका भी कोई बड़ा नेता इस चुनाव के प्रचार में नहीं दिखा है। जबकि भाजपा का हर कार्यकर्ता हमेशा चुनावी मोड में रहता है।एनएस)

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