मुश्किलों में नए CM: सरकार चलाना मोहन यादव के लिए नहीं होगा आसान, विरासत में मिला है इतना खाली खजाना, इन चुनौतियों का भी करना होगा सामना!
सरकार चलाने में मोहन यादव को करना मुश्किलों का सामना
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाकाल नगरी उज्जैन से आने वाले मोहन यादव अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। लेकिन उनके लिए एमपी संभालना इतना भी आसान नहीं होगा। लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें राज्य की वित्तीय, राजनीतिक और प्रशासनिक जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि उन्हें आने वाले समय में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
मंत्रिमंडल विस्तार
तीन बार के विधायक मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर है। उनकी पहली प्राथमिकता यह होगी कि मंत्रिमंडल में 163 सीटों पर बड़ी जीत दिलाने वाले विधायकों में से किन-किन को मंत्री पद सौंपा जाए। प्रदेश में बीजेपी की ओर से मोहन यादव से ज्यादा वरिष्ठ नेता चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। इनमें चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय जैसे नाम शामिल हैं। ऐसे में मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि दिग्गज नेताओं को बिना नाराज किए उनके राजनीतिक कद के हिसाब से उन्हें जिम्मेदारी देना होगा। ताकि कोई नेता नाराज न हो जाए।
चुनावी वादे बनेंगे परेशानी?
इस बार के चुनाव में बीजेपी ने मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी करने के लिए एक के बाद एक कई वादे किए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई लाड़ली बहना योजना ने पार्टी को भारी बहुमत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस योजना के तहत प्रदेश की 1.25 करोड़ महिलाओं को प्रतिमाह 1,250 रुपए उनके अकाउंट में दिए जा रहे हैं। ऐसा करने से एमपी सरकार को एक साल में लगभग 15,000 करोड रुपए से ज्यादा का आर्थिक बोझ उठाना पड़ेगा। बीजेपी के चुनावी वादे के मुताबिक अगर इस योजना के तहत राज्य की महिलाओं को हर माह 3000 रुपये दिए जाते हैं तो फिर यह राशि (1 हजार के हिसाब से) करीब 3 गुना बढ़ जाएगी। ऐसे में राज्य सरकार पर सालाना 45,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। नए वित्तीय वर्ष के अनुमान के मुताबिक, इस साल एमपी सरकार पर 3.85 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो जाएगा। जिसे प्रति व्यक्ति के रूप में देखा जाए तो ये 41 हजार रुपए होगा। अगर लाडली बहना योजना लगातार इसी क्रम में चलती रही तो मध्य प्रदेश सरकार पर और भी कर्ज बढ़ेगा।
चुनाव के दौरान बीजेपी ने वादा किया था कि प्रदेश में रसोई गैस सिलेंडर पर भी सब्सिडी दी जाएगी। जिसके चलते प्रदेश को अब एक हजार करोड़ रुपए की जरूरत और होगी। ऐसे में कर्ज में डुबते हुए मध्य प्रदेश सरकार को इन वादों को पूरा करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
लोकसभा से पहले मोहन सरकार की मुश्किलें
सरकार की मुश्किलें तब बढ़ेंगी जब वो बोनस के साथ एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मुल्य) के तहत धान या गेहूं को खरीदना शुरू करेगी। बीजेपी ने चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में गेहूं को 2,700 रुपए प्रति क्विंटल और धान को 3,100 रुपए प्रति क्विंटल खरीदने की घोषणा की है। हालांकि, बीजेपी ने घोषणापत्र में ये नहीं कहा था कि एमएसपी की ये दरें कब लागू होंगी। लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव से पहले मोहन सरकार को हर हाल में ये घोषणा लागू करना होगा। क्योंकि, मध्य प्रदेश में आधी से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है। ऐसे में बीजेपी अपने वादे से मुकरती है तो उन्हें इसका खामियाजा लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। खास बात यह है कि बीजेपी ने अपने घोषणापत्र का प्रचार 'मोदी की गारंटी' के रूप में किया है। ऐसे में वादे से मुकरना सीधे तौर पर मोदी के नाम को नुकसान पहुंचाने के समान होगा।
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार राज्य में 2,700 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद करती है तो आगामी सीजन में राज्य सरकार को 10 से 13 मिलियन मीट्रिक टन के बीच गेहूं की खरीद करनी होगी। ऐसे में एमएसपी के हिसाब से राज्य सरकार को 4,250 मीट्रिक टन बोनस के रूप में अधिक खर्च करना होगा। जिसकी लागत सरकार को ही उठानी होगी और कर्ज सीधे तौर पर राज्य पर बढ़ेगा।
शपथ ग्रहण से पहले जब डॉ. मोहन यादव से यह सवाल किया गया कि क्या वे पहले से चली आ रही कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखेंगे? इस पर मोहन यादव ने कहा कि वे सभी योजनाओं की जांच करेंगे। यदि योजना अच्छी लगी तो वे उस पर विचार करेंगे।