सियासी उठापटक: 1982 से लेकर अब तक रिसॉर्ट पॉलिटिक्स ने कई राज्यों में गिराई है सरकार, जानें इतिहास
- 1982 में पहली बार रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का नाम आया था सामने
- 2019 के बाद रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के चलते तीन राज्यों में गिरी है सरकार
- कांग्रेस नेता ने पहली बार लोगों को बताया था रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के बारे में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में समय के साथ बहुत बदलाव हुए हैं। जिसे आम बोलचाल की भाषा में पॉलिटिक्ल ट्रेंड्स भी कहा जाता है। दलबदल, विचारधारा, राष्ट्रवाद, कॉर्पोरेट, अपराधीकरण, महिलाओं की भागीदारी, पूंजी प्रवाह, परिवारवाद का उदय, आदि पॉलिटिक्ल ट्रेंड्स का हिस्सा है। इन्हीं में एक रिसॉर्ट पॉलिटिक्स भी है। झारखंड में जब हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी हुई, उसके बाद रिसॉर्ट पॉलिटिक्स एक बार फिर चर्चा में आना शुरू हो गया। बता दें कि, 'ऑपरेशन लोटस' के खतरे को देखते हुए कांग्रेस और जेएमएम ने अपने करीब 35 विधायकों को हैदराबाद शिफ्ट कर दिया था। ये ऐसा पहली बार नहीं है जब इसका इस्तेमाल हुआ है। आज हम आपको भारतीय राजनीति में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के बारे में बताएंगे।
रिसॉर्ट पॉलिटिक्स कब आया?
भारत में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का पहला मामला 1982 में सामने आया था। इस समय हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए थे। हालांकि, किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। सरकार बनाने के लिए चौधरी देवीलाल ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया। कुल 90 विधानसभा सीटों में से इनेलो ( इंडियन नेशनल लोकदल ) और बीजेपी गठबंधन के पास 48 सीटें थीं।
इसी बीच इनेलो को लगा कि उनके विधायकों पर किसी की नजर है और पार्टी टूट सकती है। इस डर से उन्होंने 48 विधायकों को दिल्ली के एक होटल में शिफ्ट कर दिया। मगर उनके विधायक होटल से भाग गए और गठबधंन की सरकार नहीं बन सकी। कांग्रेस ने उस समय 36 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल थी। इसके बाद राज्य में कांग्रेस ने जीत का जश्न मनाया और भजन लाल मुख्यमंत्री बनाए गए। बता दें कि, चौधरी देवीलाल इंडियन नेशनल लोकदल के संस्थापक थे।
रिसॉर्ट पॉलिटिक्स चलन में कब आया
'रिसॉर्ट' मतलब बड़े होटल जहां लोग छुट्टियां मनाने जाते हैं। देश में अधिकांश रिसॉर्ट दिल्ली, मुंबई, बेंगलरु में हैं। कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का बड़ा सेंटर माना जाता है। इसके बारे में पहली बार मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने बताया था।
कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने एक सम्मेलन में खुलकर इसके बारे में बताया था। उनके मुताबिक रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के दौरान विधायकों को सभी तरह की सुविधाएं दी जाती हैं। इस दौरान विधायकों के मोबाइल फोन ले लिए जाते हैं। साथ ही, विधायकों की निगरानी के लिए लोग तैनात किए जाते हैं। विधायकों की सुरक्षा के लिए दो लेवल पर घेराबंदी होती है। पहले स्तर पर राज्य की पुलिस सुरक्षा करती है। दूसरे स्तर पर निजी कर्मियों को लगाया जाता है। इसका सबसे अधिक इस्तेमाल झारखंड में हुआ है। 2005 में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल लगभग 4 बार हुआ था।
रिसॉर्ट पॉलिटिक्स ने बचाई सरकार
1983 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत होती है और मुख्यमंत्री कामकृष्ण हेगड़े को बनाया जाता है। लेकिन कुछ दिनों बाद पता चलता है कि उनके 80 विधायकों पर कांग्रेस की नजर है। कुछ समय बाद राजभवन से उन्हें बहुमत साबित करने को कहा जाता है। हेगड़े अपने 80 विधायकों को बचाने के लिए सबसे पहले उन्हें बेंगलुरु के रिसॉर्ट में शिफ्ट कर देते हैं। बाद में उठापटक का खेल भी होता है मगर उनकी सरकार बच जाती है।
कल्याण सिंह ने बचाई सरकार
कल्याण सिंह की सरकार को 1998 में रातोंरात भंग करके यूपी के राजपाल जगंदबिका पाल को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। इसके बाद बीजेपी अपने विधायकों को बचाने में लग जाती है। इसके लिए बीजेपी विधायकों को एक रिसॉर्ट में शिफ्ट करती है। जिसकी भनक किसी को नहीं थी। विधायकों के गायब होने से जगंदबिका पाल कुछ कर नहीं पाते हैं और सरकार फिर कल्याण सिंह की बन जाती है।
गहलोत के सामने सचिन पायलट बैकफुट पर
वर्ष 2020 में सचिन पायलट अशोक गहलोत से बगावत करते हैं। जिससे गहलोत अपने 101 विधायकों को उदयपुर के एक रिसॉर्ट में बंद करवा देते हैं। गहलोत का यह दांव काम करता है और पायलट बैकफुट पर चले जाते हैं। इस दांव को कांग्रेस की बाड़ेबंदी नाम से जाना जाता है।
विलासराव ने बचाई सरकार
साल 2002 के दौरान महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार थी। लेकिन अंदर ही अंदर टूट की खबर फैल रही थी। गठबंधन यह आरोप लगा रहा था कि बीजेपी गेम करने वाली है। यह गेम होता उसके पहले ही विलासराव देशमुख ने अपना दांव चल दिया। उन्होंने अपने विधायकों को पहले इंदौर बाद में मैसूर भेज दिया। विलासराव की इस चाल ने कांग्रेस की सरकार को बचा दिया।
उस समय विलासराव देशमुख महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। राव 18 अक्टूबर 1999 से 18 जनवरी 2003 तक मुख्यमंत्री रहे। 2004 से 2008 तक दोबारा वह महाराष्ट्र सरकार में मुख्यमंत्री बने रहे। विलासराव पुणे विश्वविद्यालय से विज्ञान और ऑर्ट्स दोनों में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की थी।
भास्कर राव का दाव फेल
1984 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एनटी रामाराव थे। जब भास्कर राव अमेरिका सर्जरी करवाने गए तो उन्हीं के पार्टी के नेता ने अपने मुख्यमंत्री के खिलाफ बगवात करके सरकार गिरा दी और खुद मुख्यमंत्री बन गए। जब इस बात का पता एनटी रामाराव को लगा तब विमर्श के बाद उन्होंने रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के दांव को खेला। जो सफल रहा।
हेमंत सोरेन को लग गई सुगबुगाहट की भनक
झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने की कोशिश 2022 से ही की जा रही थी। मगर इस सुगबुगाहट की भनक हेमंत सोरेन को लग गई। हेमंत सोरेन के साथ महागठबंधन के सभी नेता रायपुर के एक रिसॉर्ट में रुके रहे। जब हालात शांत हुए उसके बाद हेमंत ने विश्वासमत पेश किया और सरकार बच गई।
जब गिरी रिसॉर्ट पॉलिटिक्स से सरकार
साल 1995 में आंध्र प्रदेश में एनटीआर की सरकार थी। मगर चंद्रबाबू नायडू ने किया एनटीआर को बैकफुट कर दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक टीडीपी के सभी विधायकों को नायडू ने एकजुट किया और उसे एक होटल में ठहराया। कुछ समय बाद विधायक दल की मीटिंग होती है। जिसमें एनटीआर को समर्थन नहीं मिलता है। इससे एनटीआर बैकफुट पर चली गई और नायडू ने सरकार बना लिया।
2019 के बाद तीन राज्यों में गिरी सरकार
2019 में भी कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार गिराने में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स ने बड़ी भूमिका निभाई थी। कांग्रेस विधायक रमेश जर्किहोली के नेतृत्व में 18 पार्टी विधायकों को महाराष्ट्र के एक होटल में लाया गया। जिसके बाद खेल हुआ और राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गई।
इसके बाद साल 2020 में ऑपरेशन लोटस के तहत मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार को गिरा दिया गया। तब ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने साथ 27 विधायकों को बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में लेकर चले गए। बाद में कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ गया और राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गई।
उस समय सिंधिया कांग्रेस में थे और बीजेपी को बहुमत के लिए कुछ विधायकों की ही आवश्कता थी। सिंधिया के उन 27 विधायकों को बीजेपी ने अपना लिया था और फिर प्रदेश में भाजपा सरकार की वापसी हो गई। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की कमान संभाली।
कर्नाटक, मध्य प्रदेश में सरकार गिराने के बाद राजस्थान में भी सचिन पायलट की कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने की अटकलें तेज थीं। लेकिन अशोक गहलोत के सामने सचिन पायलट का सियासी दांव विफल रहा।
साल 2022 में इस रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के चलते महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई। तब एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी के कई विधायकों को अपने साथ असम लेकर चले गए थे। इसके बाद उन्होंने बीजेपी के साथ शामिल होकर राज्य में बीजेपी-शिंदे गुट की सरकार बना ली।