मन की बात: पीएम मोदी ने कहा चार महीने बाद आज फिर परिवारजन के बीच हूं

  • 11 विदेशी भाषाओं में होता है मन की बात का ब्रॉडकॉस्ट
  • 2014 में पहला मन की बात एपिसोड प्रसारित हुआ था
  • मन की बात कार्यक्रम का 111वां एपिसोड

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-30 05:53 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 वें लोकसभा चुनाव की जीत के बाद आज रविवार को पहली बार 'मन की बात' कर रहे हैं। पीएम मोदी के मन की बात कार्यक्रम का  ये 111वां एपिसोड है। प्राेग्राम की शुरुआत में पीएम मोदी ने कहा कि चार महीने बाद आज फिर परिवारजन के बीच हूं। इससे पहले फरवरी में प्रोग्राम हुआ था। तब प्रधानमंत्री ने कहा था कि राजनीतिक मर्यादा का पालन करते हुए लोकसभा चुनाव के इन दिनों में तीन महीने ‘मन की बात’ का प्रसारण नहीं होगा। पीएम ने कहा था कि मन की बात रुक रहा है, देश की उपलब्धियां नहीं रुक रहीं।

आपको बता दें मन की बात को 22 भारतीय भाषाओं और 29 बोलियों के अलावा 11 विदेशी भाषाओं में भी ब्रॉडकॉस्ट किया जाता है। इनमें फ्रेंच, चीनी, इंडोनेशियाई, तिब्बती, बर्मी, बलूची, अरबी, पश्तू, फारसी, दारी और स्वाहिली शामिल हैं। मन की बात की ब्रॉडकास्टिंग आकाशवाणी के 500 से अधिक ब्रॉडकास्टिंग सेंटर द्वारा किया जाता है।

मन की बात का पहला एपिसोड 3 अक्‍टूबर 2014 को प्रसारित हुआ था। पहले एपिसोड की समय सीमा 14 मिनट थी। जून 2015 में इसे बढ़ाकर 30 मिनट कर दिया गया था। 30 अप्रैल 2023 को मन की बात का 100वां एपिसोड प्रसारित हुआ था।

एक पेड़ मां के नाम' अभियान

प्रधानमंत्री मोदी ने चार महीने के लंबे अंतराल के बाद मन की बात' कार्यक्रम के 111वें एपिसोड में 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान की तारीफ की और कहा कि इस अभियान से धरती मां की भी रक्षा होगी। पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता है 'मां' का। उन्होंने कहा, "हम सबके जीवन में 'मां' का दर्जा सबसे ऊंचा होता है। मां, हर दुख सहकर भी अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है। हर मां, अपने बच्चे पर हर स्नेह लुटाती है। जन्मदात्री मां का यह प्यार हम सब पर एक कर्ज की तरह होता है, जिसे कोई चुका नहीं सकता।"

उन्होंने कहा कि हम मां को कुछ दे तो सकते नहीं, लेकिन और कुछ कर सकते हैं क्या? इसी सोच से इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है, इस अभियान का नाम 'एक पेड़ मां के नाम' है। पीएम ने कहा, "मैंने भी एक पेड़ अपनी मां के नाम लगाया है। मैंने सभी देशवासियों से, दुनिया के सभी देशों के लोगों से ये अपील की है कि अपनी मां के साथ मिलकर, या उनके नाम पर एक पेड़ जरूर लगाएं। और मुझे ये देखकर बहुत खुशी है कि मां की स्मृति में या उनके सम्मान में पेड़ लगाने का अभियान तेजी से आगे बढ़ रहा है।

उन्होंने कहा कि हर कोई अपनी मां के लिए पेड़ लगा रहा है, चाहे वह अमीर हो या गरीब, कामकाजी महिला हो या गृहिणी। इस अभियान ने सबको मां के प्रति अपना स्नेह जताने का समान अवसर दिया है। वो अपनी तस्वीरों को प्लांट फोर मदर और एक पेड़ मां के नाम के साथ शेयर करके दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं। पीएम मोदी ने आगे कहा कि इस अभियान का एक और लाभ होगा। धरती भी मां के समान हमारा ख्याल रखती है। धरती मां ही हम सबके जीवन का आधार है, इसलिए हमारा भी कर्तव्य है कि हम धरती मां का भी ख्याल रखें। मां के नाम पेड़ लगाने के अभियान से अपनी मां का सम्मान तो होगा ही होगा, धरती मां की भी रक्षा होगी। उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में भारत में सबके प्रयास से वन क्षेत्र का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। अमृत महोत्सव के दौरान, देशभर में 60 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर भी बनाए गए हैं। अब हमें ऐसे ही मां के नाम पर पेड़ लगाने के अभियान को गति देनी है।

प्रधानमंत्री आज मनाये जा रहे हूल दिवस की चर्चा की और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में संथाल जनजाति के भाइयों सिद्धो-कान्हू के बलिदान को याद किया। प्रधानमंत्री ने कहा आज 30 जून का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे आदिवासी भाई-बहन इस दिन को 'हूल दिवस' के रूप में मनाते हैं। यह दिन वीर सिद्धो-कान्हू के अदम्य साहस से जुड़ा है, जिन्होंने विदेशी शासकों के अत्याचारों का डटकर विरोध किया था। वीर सिद्धो-कान्हू ने हजारों संथाल साथियों को एकजुट किया और अंग्रेजों से पूरी ताकत से मुकाबला किया। क्या आप जानते हैं कि यह कब हुआ था? यह 1855 में हुआ था, यानि 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से दो वर्ष पहले की बात है। तब झारखंड के संथाल परगना में हमारे आदिवासी भाई-बहनों ने विदेशी शासकों के खिलाफ हथियार उठाए थे।

पीएम ने कहा कि हमारे संथाली भाई-बहनों पर अंग्रेजों ने बहुत सारे अत्याचार किए थे, उन पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए थे। इस संघर्ष में अद्भुत वीरता दिखाते हुए वीर सिद्धो और कान्हू शहीद हो गए। प्रधानमंत्री ने कहा झारखंड की भूमि के इन अमर सपूतों का बलिदान आज भी देशवासियों को प्रेरित करता है। कार्यक्रम में संथाली भाषा में दोनों भाइयों के बलिदान को समर्पित एक गीत का अंश सुनाया गया।

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