किसी भी दल की हो सरकार, मप्र के इन परिवारों के रसूख पर नहीं पड़ता कोई फर्क, कोई बीजेपी तो कोई थाम लेता है कांग्रेस का हाथ, सिंधिया ही नहीं ये परिवार भी नहीं किसी से कम

दोनों हाथ में सियासी लड्डू किसी भी दल की हो सरकार, मप्र के इन परिवारों के रसूख पर नहीं पड़ता कोई फर्क, कोई बीजेपी तो कोई थाम लेता है कांग्रेस का हाथ, सिंधिया ही नहीं ये परिवार भी नहीं किसी से कम

Bhaskar Hindi
Update: 2023-04-24 07:58 GMT
किसी भी दल की हो सरकार, मप्र के इन परिवारों के रसूख पर नहीं पड़ता कोई फर्क, कोई बीजेपी तो कोई थाम लेता है कांग्रेस का हाथ, सिंधिया ही नहीं ये परिवार भी नहीं किसी से कम

डिजिटल डेस्क, भोपाल। राजनीति, संभावनाओं का खेल माना जाता है। लेकिन कुछ नेताओं द्वारा इस खेल को इतनी साफगोई से खेला जाता है जिससे उसके विरोधी भी चित्त हो जाते हैं। राजनीति के धुरंधर कहते हैं कि, अगर एक बार नेताओं को सत्ता का लालच लग जाए तो वो विपक्ष में बैठना नापसंद करते हैं क्योंकि उन्हें अपना रूतबा और रसूख जो आम जनता के बीच देखना होता है।

दरअसल, हम ये सब बातें इसलिए कह रहे हैं क्योंकि देश की राजनीति में कुछ ऐसे परिवार हैं, किसी पार्टी की भी सत्ता हो राज तो उनका ही हमेशा से चलता है। ये तमाम सारी बातें मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव को देखते हुए याद आई हैं। आपको बता दें कि, इसी साल के अंत में एमपी के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसमें कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी सरकार बनाने की दावेदारी पेश कर रही हैं। इनकी दावेदारी को देखते हुए दोनों पार्टियों के कुछ नेताओं की बात करनी इसलिए जरूरी हो जाती है क्योंकि सरकार किसी की भी बने लेकिन फायदा इनके पूरे परिवार को ही होगा। तो आइए कुछ ऐसे ही चर्चित नेताओं के बारे में जानते हैं जिनकी कांग्रेस और भाजपा दोनों में अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है और कांग्रेस की सरकार बने या बीजेपी की इनका रसूख कायम रहता है। 

यादवेंद्र सिंह यादव

मध्यप्रदेश की राजनीतिक में काफी सक्रिय रहने वाले यादवेंद्र सिंह यादव ने हाल ही में भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थामा है। कांग्रेस में शामिल होने के बाद अटकलें तेज हैं कि भाजपा में मौजूद इनके कई मित्र यादव के साथ आ सकते हैं। दरअसल, यादव परिवार का रसूख अशोक नगर जिले की मुंगावली विधानसभा सीट पर बहुत है। इस विधानसभा सीट से यादवेंद्र सिंह के पिता देशराज सिंह यादव 3 बार विधायक रह चुके हैं। वहीं इनके भाई अजय यादव अब भी भाजपा में शामिल हैं और अहम ओहदे पर विराजमान हैं। अजय सिंह यादव शिवराज सरकार में पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के उपाध्यक्ष हैं। जिन्हें सरकार में मंत्री का दर्जा प्राप्त है। यादवेंद्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होने से पहले पूरा परिवार भाजपाई ही था लेकिन अब परिवार का एक खेमा कांग्रेस के साथ तो दूसरा भाजपा के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद कर रहा है। यादवेंद्र के पिता देश राज सिंह अभी भी बीजेपी की ओर से अशोक नगर जिले के पंचायत सदस्य हैं।

सतीश सिंह सिकरवार

 

सतीश सिंह सिकरवार बीजेपी के कद्दावर नेता गजराज सिंह के बेटे हैं जो भाजपा से कई बार विधायक रह चुके हैं। गजराज को ग्वालियर-चबंल का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। करीब दो साल पहले भाजपा का संग छोड़ कांग्रेस का हाथ सतीश सिंह सिकरवार ने थाम लिया था। मध्य प्रदेश में दो साल पहले हुए उपचुनाव के दौरान बीजेपी छोड़ कांग्रेस में जाकर चुनाव लड़ा और उन्हें सफलता भी मिली। उनकी जीत से खुश होकर कांग्रेस ने उनकी पत्नी शोभा सिंह को निकाय चुनाव में खड़ा किया और जीतने के बाद ग्वालियर से महापौर निर्वाचित कर दिया था। इन तमाम घटनाक्रम की गाज उनके भाई सत्यपाल सिंह सिकरवार उर्फ नीटू पर गिरी और भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। हालांकि, इन तमाम चुनौतियों के बीत सतीश सिंह सिकरवार के रसूख में कोई कमी नहीं आई और वो खुद कांग्रेस पार्टी की ओर से विधायक हैं। वहीं उनके पिता गजराज सिंह अभी भी भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं। यह कहना गलत नहीं होगा की इतना उठा पटक के बीच सिंह परिवार का दबदबा कांग्रेस-भाजपा दोनों पार्टियों में कायम है।

राकेश सिंह चतुर्वेदी

राकेश सिंह चतुर्वेदी कभी बीजेपी के साथ हुआ करते थे लेकिन अभी फिलहाल वो कांग्रेस के साथ हैं। राजनैतिक तौर पर चतुर्वेदी परिवार का नाम खूब है। इनकी गिनती जनाधार वाले नेताओं में की जाती है। कांग्रेस में राकेश तो उनके भाई मुकेश सिंह चतुर्वेदी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं। जिनका पार्टी में कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो मौजूदा समय में प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष हैं। राकेश सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनका संबंध पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से काफी बेहतर है और दोनों नेता एक दूसरे से काफी अंदरूनी मामले साझा करते हैं। सूत्रों की मानें तो, अगर कांग्रेस की सरकार इस बार प्रदेश में बनती है तो उन्हें अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।

सिंधिया परिवार

इस लिस्ट में सबसे पहले तो नाम सिंधिया परिवार का आता है। हालांकि, साल 2020 में कांग्रेस छोड़ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया था। इनका परिवार भी कांग्रेस और बीजेपी खेमे में बंटा रहा था। इनके पिता माधवराव सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे जबकि उनकी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ और भाजपा की शीर्ष नेता रहीं। लेकिन कुछ परिस्थितियां बदलने के बाद साल 2020 के मार्च के महीने में कांग्रेस का हाथ छोड़ अपने दलबल के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए थे। इनके शामिल होने से पहले भाजपा के साथ सिंधिया खानदान की दो बेटियां यानी ज्योतिरादित्या सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा में ही थीं। अब इनके आ जाने के बाद पूरा परिवार भगवा के रंग में रंग चुका है।

सत्ता में रहना नेताओं को खूब पंसद

दरअसल, आगामी चुनाव को देखते हुए अब भी प्रदेश के सियासत में इधर से उधर नेता भाग रहे हैं ताकि किसी भी तरह टिकट मिल जाए। खैर हमने जाना कैसे प्रदेश की राजनीति में सत्ता का रसूख नेताओं के सिर चढ़ कर बोलता है। चाहें वो कांग्रेस की सरकार हो या बीजेपी की, इन नेताओं का परिवार हमेशा सत्ता के अधीन ही रहना पसंद करता है। भले वो सत्ता में न रहें लेकिन परिवार का एक ऐसा सदस्य जरूर रहता है तो सत्ताधारी पार्टी से सीधे तौर पर जुड़ा रहता है।

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