चाचा-भतीजे की एकजुटता ने मैनपुरी में लाई रंग, आगामी 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बढ़ सकती है मुश्किल
हम साथ-साथ हैं चाचा-भतीजे की एकजुटता ने मैनपुरी में लाई रंग, आगामी 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बढ़ सकती है मुश्किल
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी उपचुनाव में बंपर जीत दर्ज करने के बाद डिंपल यादव ने दिल्ली की सियासत में एंट्री कर ली है। यह सीट समाजवादी संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से खाली हुई थी। मैनपुरी सपा का गढ़ माना जाता है। जिसका फायदा साफतौर पर डिंपल यादव को मिला और उपचुनाव में फिर से सपा का दबदबा बनाए रखने में कामयाब रही। साथ ही 2.80 लाख वोटों के बड़ी अंतर से जीत दर्ज कीं। इस बार चाचा शिवपाल यादव व भतीजे अखिलेश यादव पूरे चुनाव में साथ-साथ दिखे और मुलायम की विरासत को बरकरार रखने में कामयाब रहे। साथ ही बीजेपी को अपने सियासी गढ़ में सेंध लगाने पर मजबूर कर दिया।
मैनपुरी नतीजे के बाद से चाचा-भतीजे की एकता का असर दिखने लगा है। यूपी की सियासत में इस बात खूब चर्चा भी हो रही है। नतीजे से गदगद शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी प्रसपा का सपा में विलय कर लिया और साल 2017 में बगावती सुर अपनाने वाले अखिलेश ने चाचा शिवपाल के पैर छुए और सपा का झंडा देकर पार्टी में वापसी भी कराई। ऐसे में यूपी की राजनीति में नई बहस छिड़ गई है कि अगर 2024 लोकसभा चुनाव में चाचा-भतीजे एकजुट हुए फिर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
अखिलेश को मिली नई ताकत?
बड़े भाई मुलायम सिंह के निधन के बाद से चाचा शिवपाल के ऊपर समाजवादी पार्टी को मजबूत करने की बड़ी जिम्मेदारी आ गई। अखिलेश यादव को भी लगने लगा कि मैनपुरी उपचुनाव में बिना चाचा की मदद से विजय पाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि बीजेपी आपसी परिवार में फूट का राजनीतिक मुद्दा बनाकर फायदा उठा सकती है। लेकिन अखिलेश की राजनीतिक चतुराई यहां काम आई चाचा शिवपाल यादव को मिलाया तथा मंच पर उनके पैर भी छुए। जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। हालांकि, बहु डिंपल यादव को उपचुनाव में जिताने के लिए चाचा शिवपाल में चुनावी प्रचार में खूब पसीने बहाए और बहू डिंपल को अप्रत्याशित जीत दिलाकर संसद भेजने में अहम भूमिका निभाई। वैसे चाचा-भतीजे के बीच आपसी विवाद की वजह ने दो बार विधानसभा चुनाव में सपा को नुकसान उठाना पड़ा है।
अगर ये एकजुटता पहले से दिखते तो चुनाव में परिणाम कुछ और हो सकते थे। माना जा रहा है कि अखिलेश व चाच की जोड़ी साथ-साथ होने से इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, फर्रूखाबाद, कन्नौज व औरेया जैसे इलाकों में फायदा होगा। इस इलाकों में शिवपाल सिंह की वोटरों के बीच अच्छी पैठ है। वह सपा के लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इस वजह से लोगों की बीच उनकी अच्छी पकड़ है। पार्टी में साथ आने के बाद सपा कार्यकर्ता भी काफी खुश नजर आ रहे हैं।
जहां परिवार में आपसी कलह की वजह से अखिलेश कमजोर दिख रहे थे तो वहीं शिवपाल यादव के आने से अखिलेश को नई ऊर्जा मिल गई है और सपा फिर से मजबूती की तरफ बढ़ सकती है। मौजूदा वक्त में अखिलेश यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, अब शिवपाल यादव ने उनके नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है। अखिलेश ने डैमेज कंट्रोल कर यूपी की सियासत में भूचाल ला दी है। सपा की फूट की वजह रही है कि बीजेपी इटावा, कन्नौज व अन्य जगहों पर मजबूत हुई है, जहां पर सपा पहले से चुनाव जीतती रही है।
चाचा को मिल रहा भरपूर सम्मान
पत्नी डिंपल यादव की जीत से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव काफी खुश नजर आ रहे हैं। साथ ही चुनाव में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले चाचा शिवपाल यादव को हर जगह सम्मान देते नजर आ रहे हैं। मैनपुरी उपचुनाव में कई जगहों पर चुनाव प्रचार के दौरान चाचा के पैर को छूते नजर आए हैं। ऐसे में जनता के बीच काफी सकारात्मक संदेश भी गया है। सैफई परिवार एक बार फिर एकजुट हो गया लेकिन बीजेपी की इससे मुश्किल बढ़ सकती है क्योंकि शिवपाल भी सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं और जनता के बीच उनकी पैठ अच्छी रही है। ऐसे में आपसी मतभेद के कारण बीजेपी को जो सियासी माइलेज मिलता रहा है। उस पर जरूर रोक लग सकती है। सियासी जानकारों की माने तो चाचा-भतीजे की जोड़ी 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सियासी समीकरण बिगाड़ सकते हैं।