रैगांव में बागरी और वर्मा में कड़ा मुकाबला, बसपा की अनुपस्थिति से किसको होगा फायदा?

मध्यप्रदेश उपचुनाव रैगांव में बागरी और वर्मा में कड़ा मुकाबला, बसपा की अनुपस्थिति से किसको होगा फायदा?

Bhaskar Hindi
Update: 2021-10-25 09:11 GMT
रैगांव में बागरी और वर्मा में कड़ा मुकाबला, बसपा की अनुपस्थिति से किसको होगा फायदा?

डिजिटल डेस्क, सतना। मध्यप्रदेश की रैगांव विधानसभा सीट पर उपचुनाव  की जीत को लेकर बीजेपी और कांग्रेस में जुबानी जंग तेज है। भाजपा अपनी नाक बचाने की जुगाड़ में है वहीं कांग्रेस अपनी खोई हुई जीत की जमीन फिर वापस हासिल करना चाहती है। हालफिलहाल उपचुनाव में बसपा के न उतरने पर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस में मुख्य मुकाबला है। बीजेपी ने प्रतिमा बागरी को यहां से उम्मीदवार बनाया है। वहीं, कांग्रेस की तरफ से कल्पना वर्मा उम्मीदवार हैं। दोनों पार्टियों ने इस सीट पर पूरी ताकत झोंक दी है।
2013 में यहाँ से बीएसपी ने चुनाव जीतकर बीजेपी के विजयी रथ को रोका था। लेकिन इस बार हाथी के चुनावी मैदान में न होने से बीएसपी के वोट पर सेंध लगने की संभावना है। देखना ये होगा कि बीएसपी के हाथी को मिलने वाले मत किस पार्टी को जीत का स्वाद चखाएंगे। वैसे आमतौर बीएसपी के वोट को कांग्रेस का कटा हुआ वोट माना जाता है। अबकी बार बसपा के मैदान में ना होने से ये वोट कांग्रेस के खाते में जाएंगे या फिर प्रधानमंत्री की तमाम गरीब कल्याणकारी  योजनाओं के बलबूते बीजेपी इस वोट को अपने पक्ष में लाने में कितना सफल हो सकती है। ये उपचुनाव का परिणाम ही बताएगा।  


रैगांव सीट का इतिहास 
1977 से अस्तित्व में आई सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट पर अब तक 10 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। जिनमें से पांच बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है, तो दो बार इस सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है। जबकि एक बार बहुजन समाज पार्टी जीतने में कामयाब हो सकी। इसके अलावा दो बार अन्य दलों के प्रत्याशियों ने भी यहां जीत का स्वाद चखा है। इस लिहाज से रैगांव सीट पर बीजेपी की जीत का प्रतिशत 71 प्रतिशत रहा है तो कांग्रेस की जीत का मार्जिन 29 प्रतिशत रहा। यही वजह है कि रैगांव विधानसभा सीट बीजेपी की दबदबे वाली सीट मानी जाती है। इसलिए बीजेपी के लिए ये सीट नाक का सवाल बनी हुई है। बीजेपी ने यहां अपने दर्जनों मंत्रियों को चुनाव प्रचार में झोंक दिया है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई बार सभा कर चुके हैं। वहीं कांग्रेस ने भी अपने दलित औऱ ओबीसी नेताओं को इलाके की कमान सौंप दी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सिंह विधानसभा क्षेत्र में कई बार दौरा कर चुके हैं।

जातिगत समीकरण 
रैगांव सीट विंध्य अंचल में आती है। अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग के वोटर यहां प्रमुख भूमिका में होते हैं जबकि सवर्ण मतदाताओं पर भी सभी दलों की नजर रहती हैं। इस बार माना जा रहा है कि अब अनुसूचित जाति वर्ग के वोटर का रूझान बीजेपी की तरफ होने लगा है। प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि, अंत्योदय गरीब कल्याणकारी जैसी  तमाम योजनाओं के चलते दलित वोट बैंक का फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है। वहीं कांग्रेस बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और कोरोना में परेशान को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे है। हालांकि सीएम शिवराज सिंह के मान मनोव्वल के बाद भी  टिकिट ना मिलने से नाराज बागरी  परिवार की नाराजागी का नुकसान बीजेपी को यहाँ उठाना पड़ सकता है। यहाँ बीजेपी में आंतरिक कलह देखने को मिल रही है। बीजेपी को सहानुभूति का फायदा मिल सकता था लेकिन बीजेपी इससे वंचित रह गई। 
  
रैगांव उपचुनाव में अहम मुद्दे, और शिवराज की अनदेखी

ग्रामीण बाहुल्य रैगांव सीट पर विकासकार्यों की दरकार अभी बहुत है। स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, सड़कें और बरगी नहर का पानी रैगांव विधानसभा सीट के मुख्य मुद्दे हैं। रैगांव विधानसभा सीट में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। बेहतर इलाज के लिए विधानसभा क्षेत्र के लोगों को सतना या अन्य दूसरे शहरों में जाना पड़ता है। यहां रोजगार के संसाधनों की कमी है। शिक्षा का भी यही हाल है। इसके अलावा सड़क और पानी के मुद्दों को लेकर यहां के वोटरों में नाराजगी साफ देखने को मिल रही है।

रैगांव सीट पर भाजपा-बसपा की रही है लड़ाई
1993 में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए प्रदेश में सरकार बनाई थी लेकिन उस चुनाव में भाजपा ने पहली बार रैगांव सीट पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी के दिवगंत नेता जुगल किशोर बागरी ने 1993 में बीएसपी के रामबहरी को हराया था। तब से इस सीट पर बीजेपी की जीत का सिलसिला 2008 तक जारी रहा। जुगल किशोर बागरी लगातार चार विधानसभा चुनाव जीते लेकिन 2013 में बीजेपी ने प्रत्याशी बदल दिया और जुगल किशोर बागरी की जगह पुष्पराज बागरी को टिकट दिया। हालांकि भाजपा का यह दांव उल्टा पड़ा और उस चुनाव में बसपा ने बीजेपी की जीत पर ब्रेक लगा दिया। इसके बाद 2018 में बीजेपी ने फिर से जुगल किशोर बागरी पर दांव लगाया और पार्टी ने जीत दर्ज की। बसपा के आने से कांग्रेस ने यहां करीब 35 साल से जीत का स्वाद नहीं चखा। अब की बार बसपा की अनुपस्थिति कांग्रेस के लिए जीत के लिए भाग्यशाली हो सकती है।

विश्लेषक की राय

रैगांव विधानसभा सीट के चुनावी माहौल पर ज्यादा जानकारी के लिए भास्कर हिंदी संवाददाता आनंद जोनवार ने वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय से बात की उनका मानना है कि रैगांव सीट पर स्थानीय राजनीति समीकरण अहम भूमिका में है। यहां बीजेपी में बागरी परिवार की अंतर्कलह देखने को मिल सकती है। बीजेपी नेताओं की नाराजगी दूर करने में विफल साबित हो रही है। इसके उलट कांग्रेस अपने स्थानीय नेताओं में सामंजस्य और समन्वय बनाने में कामयाब होती दिखाई दे रही है। बसपा के चुनावी मैदान में न होने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि बीएसपी वोट बैंक की ज्यादा संभावना कांग्रेस में जाने की होती है।

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