कौन से हैं वो नियम जिनका हवाला देकर संसद की कार्यवाही से हटाए गए राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण के अंश, ये शब्द भी संसद में कहने की नहीं है छूट

क्यों हटा राहुल गांधी का भाषण? कौन से हैं वो नियम जिनका हवाला देकर संसद की कार्यवाही से हटाए गए राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण के अंश, ये शब्द भी संसद में कहने की नहीं है छूट

Bhaskar Hindi
Update: 2023-02-09 09:54 GMT
कौन से हैं वो नियम जिनका हवाला देकर संसद की कार्यवाही से हटाए गए राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण के अंश, ये शब्द भी संसद में कहने की नहीं है छूट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 7 फरवरी को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला। लेकिन, अब उनके भाषण के कुछ अंश को स्पीकर के आदेश पर संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। इसे संसदीय बोलचाल की भाषा में 'एक्सपंज' कहा जाता है। राहुल गांधी के भाषण के जिस अंश को संसदीय प्रक्रिया के तहत हटाया गया है, उस अंश में राहुल गांधी अडानी मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साध रहे थे। मालूम हो कि अपने भाषण के दौरान राहुल गांधी ने सरकार पर अडानी का नाम लेते हुए कई आरोप लगाए थे। 

इधर 8 फरवरी को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा राज्य सभा में दिए भाषण को संसदीय प्रक्रिया के रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। ऐसे में लोगों के जहन में एक सवाल तेजी से उठ रहा है कि राहुल गांधी के संसद में दिए गए भाषण के अंश रिकॉर्ड से क्यों हटाए जा रहे हैं और आखिर इसके पीछे की वजह क्या है?  

जानें भाषण के रिकॉर्ड को क्यों हटाया गया?

संविधान का अनुच्छेद 105(2) कहता है कि यदि सदन में कोई सांसद के द्वारा कही गई बात किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है तो उसे रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है। आसान भाषा में कहे तो सदन में कही गई किसी भी बात को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता हो तो उसे रिकॉर्ड में नहीं रखा जाता। इसका मतलब ये नहीं है कि सदन में कोई भी सांसद किसी को कुछ भी बोल सकता है। बता दें कि सांसदों का भाषण सदन के नियमों के अनुशासन और स्पीकर के नियंत्रण में होता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो स्पीकर सुनिश्चित करते हैं कि सांसद सदन के अंदर अपमानजनक या असंसदीय भाषा का इस्तेमाल न करें। 

लोकसभा में 'प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के रूल 380' के मुताबिक, यदि स्पीकर को लगता है कि कोई भी सांसद अपने भाषण के दौरान मानहानि लायक या असंसदीय है या जिसे सार्वजनिक करना ठीक नहीं होगा। तो, अध्यक्ष विवेकाधिकार का इस्तेमाल करते हुए भाषण के उस अंश को रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दे सकता है और फिर ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया जाता है। रूल 381 के तहत, सांसद के जिस भाषण को हटाया जाता है, उसे मार्क किया जाता है और कार्यवाही में एक फुटनोट डाला जाता है। जिसमें यह लिखा होता है कि 'स्पीकर के आदेश पर इसे हटाया गया' है। 

जाने कौन-कौन से हैं असंसदीय शब्द?

सदन की कार्यवाही के दौरान सांसदों के लिए कुछ नियम और स्टैंडर्ड तय किए गए हैं। इसमें कुछ शब्दों या फ्रेज का इस्तेमाल करना सदन में अनुचित नहीं है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जिन शब्दों को असंसदीय भाषा की श्रेणी में रखा गया है। उनमें शकुनि, तानाशाही, जयचंद, विनाश पुरुष, खालिस्तानी और खून से खेती जैसे कई शब्द शामिल हैं।  ऐसे में कई सांसद यदि अपने भाषण को दौरान इन शब्दों का इस्तेमाल करता है तो उसे सदन के रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है। 

राहुल के भाषण के ये हिस्से हटाए गए

मंगलवार को राहुल गांधी ने अपने भाषण के दौरान कहा था, 'अडानीजी और नरेंद्र मोदी जी, धन्यवाद।' भाषण के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि, "हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री जी के साथ अडानी का क्या रिश्ता है और कैसा रिश्ता है?" राहुल गांधी ने कहा था कि फोटो देख लीजिए "ये फोटो तो पब्लिक में है।" राहुल गांधी के भाषण के इस अंश को अब हटा दिया गया है। 

सदन के रिकॉर्ड से हटा दिए गए हैं ये शब्द 

गौरतलब है कि, पिछले साल जुलाई माह में सदन में कुछ भाषा संबंधी शब्दों की एक नई सूची जारी की गई थी। जानकारी के मुताबिक इसमें 62 ऐसे शब्द शामिल किए गए थे, जिन्हें असंसदीय करार दिया गया था। ऐसे में कोई भी सांसद इस शब्द का यूज कर करता है तो उनके भाषा को रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा। इस लिस्ट में 'जुमलाजीवी', 'बाल बुद्धि', 'अशेम्ड (शर्मिंदा)', 'हिपोक्रेसी (पाखंड)' और 'इनकंपीटेंट (अक्षम)' 'अब्यूज्ड (दुर्व्यवहार)', 'बिट्रेड (विश्वासघात)', 'भ्रष्ट', 'ड्रामा (नाटक)', 'कोविड स्प्रेडर' (कोरोना फैलाने वाला) और 'स्नूपगेट (जासूसी के संबंध में फोन पर हुई बातचीत को टेप करना)', ये सभी शब्द असंसदीय भाषा के अंतर्गत आते हैं।  साथ ही सदन में  'मर्डर (हत्या)', 'नेग्लिजेंस (लापरवाही),  'सेक्सुअल असॉल्ट (यौन हमला)'  उपयोग में नहीं लाए जा सकते हैं।

असंसदीय शब्दों की शुरुआत कब हुई?

सदन से असंसदीय शब्दों की शुरुआत लगभग 418 साल पुरानी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इसकी शुरुआत ब्रिटेन से हुई थी। इंडियन एक्प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार,  इंग्लिश, हिंदी और अन्य भाषाओं में ऐसे हजारों शब्द हैं, जो असंसदीय हैं। भारत में पहली बार असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी साल 1954 में जारी की गई थी। फिर साल 1986, साल 1992, साल 1999, साल 2004, साल 2009 और 2010 में जारी किया गया। लेकिन साल 2010 के बाद इसे लगातार जारी किया जाने लगा।  

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