ये पहली बार नहीं है, बीजेपी को धोखा देने का पुराना है नीतीश कुमार का इतिहास, जानिए कब कब मारी पलटी
नीतीश का 'धोखा'! ये पहली बार नहीं है, बीजेपी को धोखा देने का पुराना है नीतीश कुमार का इतिहास, जानिए कब कब मारी पलटी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में सियासी सूनामी आने के बाद बिहार में भी उसका असर दिखने लगा है। बीते 24 घंटे में बिहार की सियासत में ऐसी हलचल मची कि बड़े-बड़े राजनीतिक खिलाड़ी देखते रह गए। जेडीयू ने एनडीए से अपना नाता तोड़कर आरजेडी के साथ बिहार की सियासी नैय्या पार लगाने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। मंगलवार को नीतीश कुमार के आवास पर हुई बैठक में बड़ा फैसला लिया गया है। अब बिहार में जेडीयू और आरजेडी की गठबंधन वाली सरकार बनना तय है।
सियासी अखाड़े में पटखनी देने में माहिर बीजेपी इस बार दांव हार गई। बताया जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार बीजेपी नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। आरसीपी सिंह से बीजेपी नेतृत्व की नजदीकी से नीतीश काफी खफा थे और आरसीपी सिंह की चाल को नीतीश भांप गए। नीतीश बिहार में आरसीपी सिंह को दूसरा एकनाथ शिंदे नहीं बनने देना चाह रहे थे। ऐसे में नीतीश कुमार की नजदीकी आरजेडी के साथ बढ़ी और बिहार में नई सरकार बनाने का फैसला लिया। लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब नीतीश कुमार ने बीजेपी या एनडीए गठबंधन को धोखा दिया हो। इससे पहले भी नीतीश कई बार सारे वादों को ताक पर रख कर इस गठबंधन से बेवफाई कर चुके हैं। बेशक हर बार कारण अलग अलग रहे हैं। आइए जानते है कि नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ कब कब बेवफाई की है।
साल 2013 में बीजेपी से अलग हुए नीतीश
गौरतलब है कि जेडीयू और बीजेपी के बीच सबसे पहले गठबंधन साल 1998 में हुआ था। लेकिन बिहार की राजनीति में कई बार सियासी उठापटक का मौका आया जिस दौरान नीतीश कुमार ने पाला बदल दिया। बताया जाता है कि साल 2013 में नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी को पीएम चेहरा बनाया जाना रास नहीं आया और वो बगावत पर उतर आए।
2014 लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए 16 जून 2013 को बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया तो नीतीश काफी खफा हो गए और उन्होंने बीजेपी के साथ अपने 17 साल के रिश्ते को कुर्बान कर दिया और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना ली। माना जाता है कि तभी से नीतीश कुमार ने भले ही बीच-बीच में बीजेपी से गठबंधन किए लेकिन मनमुटाव खत्म नहीं हुआ।
2015 में बनी महागठबंधन की सरकार
नीतीश कुमार ने बीजेपी से खफा होने के बाद बिहार के राजनीतिक चाणक्य माने जाने वाले लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा और इसका फायदा भी लिया महागठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई। इस चुनाव में जेडीयू और आरजेडी ने 101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और 80 सीटों पर शानदार जीत हासिल की। जेडीयू ने कुल मिलाकर 71 सीटों पर अपना परचम लहराया। इस तरह नीतीश कुमार गठबंधन के नेता बने और 5वीं बार बिहार के सीएम को तौर पर शपथ ग्रहण की।
2017 में फिर ली करवट
नीतीश कुमार बिहार के ऐसे नेता हैं, जिनके ऊपर आरोप लगता रहा है कि ये पलटू राम हैं। सियासी फायदा उठाने के लिए कभी भी राजनीतिक करवट ले सकते हैं। कुछ ऐसा ही साल 2017 में देखने को मिला और नीतीश कुमार का अनबन हो गई।
नीतीश ने 26 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे और उनसे इस्तीफे की मांग की जा रही थी। बाद में नीतीश ने कहा था कि ऐसे माहौल में काम करना मुश्किल हो गया था। नीतीश ने फिर बीजेपी व अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई और 27 जुलाई को बिहार के सीएम बने।
दो साल के भीतर फिर बिछड़े नीतीश
नीतीश के नेतृत्व में एनडीए ने फिर से साल 2020 में विधानसभा चुनाव लड़ा। बीजेपी ने उन्हें 43 सीट मिलने के बाद भी सीएम की कुर्सी पर बैठाया। लेकिन महज दो साल के भीतर ही दोनों के बीच मतभेद उभकर सामने आ गया और नीतीश एक बार फिर से बीजेपी से नाता तोड़ आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं। नीतीश ने ऐसा पाला बदला कि बीजेपी क्या पार्टी के ही बड़े नेताओं को कुछ मालूम नहीं हुआ। हालांकि, बिहार को एक बार फिर से नीतीश के नेतृत्व में नई सरकार मिलने जा रही है। मतलब इंजन वही है केवल डिब्बे बदलने का खेला चल रहा है।
नीतीश की राय इन मुद्दों पर अलग रही
गौरतलब है कि वर्ष 1990 से एक-दूसरे का दामन थामने वाली बीजेपी और जेडीयू का आपसी मतभेद कई मुद्दों पर रहा। जेडीयू हाल ही में बीजेपी की अग्निपथ योजना का समर्थन नहीं किया। नीतीश जातिगण जनगणना को लेकर पीएम मोदी से मिल चुके फिर उनको पॉजिटिव रिजल्ट नहीं दिखा। जनसंख्या कानून व लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध को लेकर भी इन सभी की अलग राय रही।
हालांकि, जेडीयू ने राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया। इसके अलावा नीतीश कुमार कई कार्यक्रमों से अनुपस्थिति रहे। हाल ही में नीति आयोग की बैठक में उनकी गैरहाजिरी ने सियासत में सवाल छोड़ा और लोग कयास लगाना शुरू कर दिए थे कि नीतीश और एनडीए के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालांकि कुछ ऐसे ही हुआ और नीतीश की बगावत ने बीजेपी को बड़ा झटका दिया।