क्षेत्रीय भाषाओं के विवाद पर गरम सियासत, अब दिल्ली तक पहुंची गूंज
झारखंड क्षेत्रीय भाषाओं के विवाद पर गरम सियासत, अब दिल्ली तक पहुंची गूंज
डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड में क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर उठे विवाद पर जमकर सियासत हो रही है और अब इसकी गूंज अब दिल्ली तक पहुंच गयी है। भारतीय जनता पार्टी और आजसू पार्टी के एक शिष्टमंडल ने बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की और उनसे इस मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगायी।
राष्ट्रपति को सौंपे गये ज्ञापन में कहा गया है कि झारखंड सरकार ने जिला स्तर की नियुक्ति परीक्षाओं के लिए क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में भोजपुरी, मगही, मैथिली और अंगिका को भी शामिल किया है। यह झारखंड के मूल निवासियों के हितों और अधिकारों का अतिक्रमण है। राष्ट्रपति से मांग की गयी है कि वह राज्य सरकार को निर्देशित करें कि इन भाषाओं को झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से बाहर किया जाये।
राष्ट्रपति से मिलने वाले शिष्टमंडल में भाजपा के सांसद विद्युत वरण महतो, बंगाल के पुरुलिया क्षेत्र के भाजपा सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो, आजसू पार्टी के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी और इसी पार्टी के विधायक डॉ लंबोदर महतो शामिल रहे। शिष्टमंडल ने राष्ट्रपति से कहा कि झारखंड में मूल रूप से नौ जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाएं हैं। जिला स्तर की नियुक्ति परीक्षा में सिर्फ इन्हीं भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा की सूची में रखा जाना चाहिए। झारखंड के मूल निवासी इन्हीं भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं।
भोजपुरी, मगही, मैथिली और अंगिका जैसी भाषाएं बोलने वाले लोग बाहर से आये हैं और राज्य सरकार द्वारा किये गये प्रावधान के लाभ उठाकर जिला स्तर की नियुक्तियों में भी इन्हीं का वर्चस्व हो जायेगा। इससे झारखंड की क्षेत्रीय भाषाएं बोलने वाले मूल निवासियों को प्राथमिकता देने का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा। राष्ट्रपति को सौंपे गये ज्ञापन में इस मुद्दे को लेकर लोगों द्वारा किये जा रहे आंदोलन की भी जानकारी दी गयी है। कहा गया है कि राज्य सरकार के निर्णय से लोगों में असंतोष है।
बता दें कि झारखंड सरकार ने बीते 23 दिसंबर 2021 को एक नोटिफिकेशन के जरिए झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली जाने वाली जिलास्तरीय नियुक्ति परीक्षाओं के लिए जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की सूची जारी की थी। इसमें बोकारो और धनबाद जिले की क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में भोजपुरी और मगही को भी शामिल किया गया है। सबसे ज्यादा विवाद इसी को लेकर है। इसपर कई स्थानीय संगठन आंदोलन कर रहे हैं। इन जिलों के अलावा रांची में भी प्रदर्शन हुए हैं। और अब इस मुद्दे पर भाजपा-आजसू के शिष्टमंडल की राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद राज्य के सियासी हलकों में हलचल बढ़ गयी है।
भाजपा सहित कांग्रेस और झामुमो में भी क्षेत्रीय भाषाओं की सूची को लेकर परस्पर मतभेद है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भोजपुरी, मगही, मैथिली आदि को बाहरी भाषाएं बता चुके हैं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से जिलास्तरीय नियुक्ति परीक्षाओं के लिए धनबाद, बोकारो जैसे जिलों में इन्हें क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में अधिसूचित किया गया है। इसपर हेमंत सोरेन सरकार के मंत्री जगन्नाथ महतो सहित झामुमो के कई विधायकों ने विरोध जताया है।
दूसरी तरफ इसी सरकार के मंत्री मिथिलेश ठाकुर पलामू, गढ़वा जैसे जिलों में भोजपुरी, मगही आदि को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में रखने की हिमायत कर रहे हैं। सरकार को समर्थन दे रहे कांग्रेस के विधायकों की भी अलग-अलग राय है। अब भाजपा में भी इसे लेकर सांसदों-विधायकों के अपने-अपने स्टैंड हैं। ऐसे में भाषाई विवाद पर झारखंड की सियासत में टकराव लगातार तेज होता दिख रहा है।
(आईएएनएस)