पश्चिम बंगाल में सीबीआई अनुब्रत मंडल के सीए से फिर कर सकती है पूछताछ
मवेशी तस्करी मामला पश्चिम बंगाल में सीबीआई अनुब्रत मंडल के सीए से फिर कर सकती है पूछताछ
- मामले का कानूनी पहलू
डिजिटल डेस्क, कोलकाता। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) पश्चिम बंगाल में करोड़ों रुपये के मवेशी तस्करी घोटाले के सिलसिले में तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता अनुब्रत मंडल के चार्टर्ड अकाउंट मनीष कोठारी से फिर पूछताछ कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो यह तीसरी बार होगा, जब कोठारी से मामले में केंद्रीय एजेंसी पूछताछ करेगी।
सीबीआई सूत्रों ने कहा कि अनुब्रत मंडल की बेटी सुकन्या से पिछले सप्ताह फंड से जुड़े सवाल-जवाब के बाद कोठारी से पूछताछ करना महत्वपूर्ण हो गया है। लगभग सभी सवालों के जवाब में, सुकन्या मंडल ने कहा कि कोठारी को संपत्ति और जमीन की खरीद से संबंधित सभी विवरणों की जानकारी थी।
सूत्रों के मुताबिक, जांच एजेंसी ने उनके नाम पर संपत्ति और जमीन के संबंध में कुछ सवाल पूछे। सवाल यह थे कि क्या उन्होंने उन दस्तावेजों को अच्छी तरह से पढ़ने के बाद संपत्ति या भूमि खरीद दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे या फिर अपने पिता के निर्देशानुसार उन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे?
इसके अलावा, क्या वह कभी अपने नाम पर संपत्ति या जमीन के पंजीकरण के समय रजिस्ट्री कार्यालयों में गई थी या उन्होंने ऐसा करने के लिए किसी को पावर ऑफ अटॉर्नी दी थी? क्या उन्होंने कभी अपने पिता से इन संपत्तियों को लेकर सवाल किया?
एक और सवाल जो सीबीआई अधिकारियों को हैरान कर रहा है, वह यह है कि सुकन्या मंडल, जो रिकॉर्ड के अनुसार बीरभूम जिले के बोलपुर में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल में एक शिक्षिका हैं, ने अपने नाम दो निजी लिमिटेड कंपनियों एएनएम एग्रोकेम फूड्स प्राइवेट लिमिटेड और नीर डेवलपर प्राइवेट लिमिटेड में निदेशक के रूप में, साथ ही एक निजी चावल मिल भोले ब्योम राइस मिल में सह-मालिक के रूप में अपना नाम कैसे पंजीकृत कराया।
सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा, एक सरकारी कर्मचारी के रूप में,लाभ कमाने के उद्देश्य से किसी भी संस्था के साथ उनका जुड़ाव गलत है। इस मामले में कानूनी पहलू बताते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट के वकील और सेवा नियमों के विशेषज्ञ ज्योति प्रकाश खान ने कहा कि पश्चिम बंगाल सेवा नियमों के तहत, एक सरकारी कर्मचारी को किसी भी लाभ का हिस्सा बनने की अनुमति नहीं है।
उन्होंने कहा, असाधारण मामलों में, जैसे किताब लिखने के लिए या फिर शिक्षण संस्थान में गेस्ट लेक्चर आदि के लिए संबंधित सरकारी कर्मचारी को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होती है। खान ने कहा, किताब या गेस्ट लेक्चर फीस से अर्जित रॉयल्टी का एक प्रतिशत राज्य सरकार के खजाने में जमा किया जाता है।
आईएएनएस
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