भाजपा का वादा : ज्ञानवापी आगे जाकर एजेंडे का बड़ा हिस्सा बनेगा

उत्तरप्रदेश भाजपा का वादा : ज्ञानवापी आगे जाकर एजेंडे का बड़ा हिस्सा बनेगा

Bhaskar Hindi
Update: 2022-09-17 09:32 GMT
भाजपा का वादा : ज्ञानवापी आगे जाकर एजेंडे का बड़ा हिस्सा बनेगा
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ज्ञानवापी मामले पर वाराणसी की अदालत का फैसला आते ही इसके पक्ष और विपक्ष में कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ-साथ भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने जिस अंदाज में इस फैसले पर खुशी जताई, महादेव का नारा लगाया उससे तो यह साफ-साफ नजर आने लगा कि यह मसला भाजपा के लिए कितना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

हालांकि आधिकारिक रूप से ज्ञानवापी मसला भाजपा के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं है, लेकिन यह याद रखना भी जरूरी है कि भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले वाराणसी से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर सांसद चुनकर आते हैं। वाराणसी का काशी विश्वनाथ कॉरिडोर सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक है भविष्य के लिहाज से ज्ञानवापी एक बड़ा राजनीतिक एजेंडा बन सकता है।

अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य जोर-शोर से जारी है और ज्ञानवापी को लेकर आए वाराणसी की अदालत के इस फैसले के विरोध में आई प्रतिक्रियाओं से यह साफ है कि यह मामला यहां थमने वाला नहीं है तो क्या ज्ञानवापी भी राम मंदिर की तरह भाजपा का राजनीतिक एजेंडा बन सकता है?

आईएएनएस से बात करते हुए भाजपा के एक बड़े नेता ने कहा कि काशी और मथुरा का विकास हमारी सरकार के एजेंडे में है और हम जोर-शोर से इस काम में लगे हुए हैं, लेकिन जहां तक आंदोलन और राजनीतिक एजेंडे का सवाल है - अयोध्या, काशी और मथुरा विश्व हिंदू परिषद का एजेंडा रहा है।

भाजपा ने 1989 के पालमपुर अधिवेशन में सिर्फ रामजन्मभूमि आंदोलन का खुलकर समर्थन करने का फैसला किया था। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि काशी और मथुरा दोनों मामले अदालत में है और सबको अदालत के फैसले का सम्मान करना चाहिए।

जाहिर तौर पर सरकार या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के स्तर से वाराणसी के अदालत के फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन भारत सरकार के मंत्रियों, भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों एवं विभिन्न राज्यों के मंत्रियों सहित भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया से यह साफ हो गया है कि ज्ञानवापी का मसला भी भाजपा का भले ही न सही लेकिन भाजपा नेताओं के सार्वजनिक कार्यक्रमों का हिस्सा जरूर बनने जा रहा है।

सोशल मीडिया पर आए भाजपा नेताओं के बयान और इसके विरोध में असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं के बयान से यह भी साफ हो रहा है कि ज्ञानवापी के बहाने आस्था की राजनीति की एक और कहानी लिखी जा रही है। इस बार भी एक तरफ भाजपा है, जिसे इसका सबसे बड़ा राजनीतिक लाभ मिल सकता है, लेकिन इस बार विरोध करने वाले राजनीतिक दलों की संख्या नगण्य है।

दरअसल, 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद देश की राजनीति का केंद्रबिंदु पूरी तरह से बदल गया है। अब देश की राजनीति बहुसंख्यकवाद यानी हिंदुत्व के इर्द-गिर्द ज्यादा घूम रही है इसलिए अयोध्या आंदोलन के समय जिस तरह से विरोध के राजनीतिक स्वर सुनाई दे रहे थे, जिस तरह से लालू यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे कई नेता धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भाजपा के खिलाफ विरोध का झंडा बुलंद किए नजर आते थे, उस तरह के विरोध के स्वर इस बार कम सुनाई पड़ रहे हैं।

ओवैसी इसका विरोध कर मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक रूप से अपने साथ जोड़ने का प्रयास जरूर कर रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में अभी उनकी राजनीतिक जमीन बहुत कमजोर है। ऐसे में यह तय है कि ज्ञानवापी मसला राजनीति का मुद्दा बने या न बने, दोनों ही सूरतों में इसका राजनीतिक लाभ फिलहाल तो भाजपा को ही होता नजर आ रहा है।

 

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