सिर्फ बहुमत नहीं, जनहित के आधार पर ही विधेयक को पारित करना चाहिए : कलराज मिश्र
राजस्थान सिर्फ बहुमत नहीं, जनहित के आधार पर ही विधेयक को पारित करना चाहिए : कलराज मिश्र
डिजिटल डेस्क, जयपुर। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने राजभवन पर विधेयकों को लटकाने के लगने वाले आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि सरकारों को सिर्फ बहुमत के आधार पर नहीं बल्कि जनहित के आधार पर ही विधेयक को पारित करना चाहिए।
राजस्थान विधान सभा में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि विधानसभा में कोई भी पारित विधेयक तब तक अधिनियम नहीं बन सकता जब तक कि राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति नहीं दें। बहुत बार यह आरोप लगता है कि राज्यपाल जानबूझकर विधेयक अटका रहे हैं या कि उसे पारित करने में देर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में इस बात को समझने की जरूरत है कि जो विधेयक राज्यपाल के पास भेजा जाए, उसको पूरी तरह से राज्यपाल को देखना होता है। उसके जनता पर होने वाले असर और वैधानिक प्रक्रियाओं के बारे में भी बहुत सूक्ष्मता से विचार करना होता है। जब तक कि जनहित में वैधानिक रूप में विधेयक पूरी तरह से संपूर्ण होकर नहीं पाया जाता है, तब कि उसे पारित करने का कोई औचित्य नहीं है।
राज्यपाल ने विधेयक पारित करते समय जनहित का ध्यान रखने की अपील करते हुए कहा कि उनका यह मानना है कि सदनों में जब कोई विधेयक पारित किया जाए तो बहुमत ही प्रमुख आधार नहीं रहे, उसका प्रमुख आधार स्वस्थ बहस और जनहित से जुड़ा औचित्य भी होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि राज्यपाल कोई व्यक्ति नहीं है, वह संवैधानिक संस्था है और उसे जब संवैधानिक आधार पर यह संतुष्टि हो जाती है कि अध्यादेश औचित्यपूर्ण है तभी वह उसे स्वीकृति प्रदान करता है। ऐसा नहीं होता है तो वह उसमें संशोधन कर फिर से भेजने के लिए कह सकता है, यही संवैधानिक व्यवस्था है। इसे समझने की जरूरत है।
पीठासीन अधिकारियों के सम्मलेन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए मिश्र ने सत्र आहूत करने के बाद सत्रावसान नहीं कर सीधे सत्र बुलाने की परिपाटी को लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए घातक बताते हुए विधान सभा के बैठकों की संख्या को बढ़ाने की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने विधायी कामकाज में स्टेट गर्वमेंट की भूमिका के अधिकाधिक रहने की वकालत करने के साथ यह भी कहा कि अगर सरकार के पास बिजनेस नहीं हो तो जनता की समस्या पर चर्चा की जा सकती है। प्राइवेट मेम्बर बिल को भी अधिकाधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए। विधायी कार्य यदि जल्दबाजी में निपटाए जाएंगे तो जो कानून बनेंगे, वह समुचित रूप में प्रभावी नहीं होगें। उनसे जुड़े वांछित संशोधनों पर भी कार्य नहीं हो सकेगा।उन्होंने सदस्यों से ज्यादा से ज्यादा विधान सभा और सदन में मौजूद रहकर विधायी कार्यों में भागीदारी की अपील भी की।
अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के समापन सत्र में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राजस्थान विधान सभा के अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी ने भी अपनी-अपनी बातें रखीं।
(आईएएनएस)
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