बंगाल के नए राज्यपाल ने ममता के साथ संघर्ष विराम की जगाई उम्मीद

पश्चिम बंगाल सियासत बंगाल के नए राज्यपाल ने ममता के साथ संघर्ष विराम की जगाई उम्मीद

Bhaskar Hindi
Update: 2022-11-27 10:00 GMT
बंगाल के नए राज्यपाल ने ममता के साथ संघर्ष विराम की जगाई उम्मीद

डिजिटल डेस्क, कोलकाता। राज्य के नवनियुक्त राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के पदग्रहण के साथ ही राजनीतिक गलियारे में यह सवाल होने लगा है कि क्या गवर्नर हाउस-राज्य सचिवालय के झगड़े का दोहराव होगा, जैसा कि जगदीप धनखड़ के समय हुआ था? या दोनों संस्थानों के बीच जारी संघर्ष का अंत होगा।

इस संबंध में आईएएनएस ने कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों और विश्लेषकों से बात की, जिन्होंने आने वाले दिनों में राज्यपाल-मुख्यमंत्री के संबंधों की दिशा में विभिन्न संभावनाओं की ओर इशारा किया। अब तक राज्यपाल और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने युद्धविराम का ही संकेत दिया हैं। खुद से परामर्श किए बिना नए राज्यपाल के चयन से नाखुश ममता बनर्जी ने शिष्टाचार को निभाने में कोई कमी नहीं की है। उन्होंने बोस का उनकी पसंदीदा मिठाइयां देकर उनका स्वागत किया। 23 नवंबर को बोस के शपथ ग्रहण समारोह का माहौल भी अच्छा संकेत देता है।

बोस ने भी अपनी ओर से अच्छी पहल की है। नए राज्यपाल के रूप में पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद उन्होंने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर लंबे समय से लंबित विधेयक को मंजूरी दे दी। उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा कि एक राज्यपाल के रूप में मुख्यमंत्री के साथ उनके संबंध राजनीतिक होने की तुलना में प्रकृति में अधिक प्रशासनिक होंगे। उनकी इस टिप्पणी से यह अहसास हुआ कि एक अनुभवी पूर्व नौकरशाह होने के नाते बोस जगदीप धनखड़ के नक्शेकदम पर चलने के बजाय राज्य की प्रशासनिक मशीनरी के साथ उनके संबंध सचिवीय कोण से अधिक होंगे।

अनुभवी राजनीतिक विश्लेषक और केंद्र-राज्य संबंधों के मामलों के विशेषज्ञ अमल सरकार के अनुसार कल के दिन उतने अच्छे नहीं होंगे, जितने आज दिख रहे हैं। सरकार को लगता है कि बोस की यह टिप्पणी कि मुख्यमंत्री के साथ उनके संबंध राजनीतिक होने के बजाय प्रकृति में अधिक प्रशासनिक होंगे, स्पष्ट रूप से अच्छे लग सकते हैं, लेकिन लंबे समय में टिकाऊ नहीं होंगे।

सरकार ने कहा, आपको यह याद रखना होगा कि ममता बनर्जी पूरी तरह से राजनीतिक व्यक्ति हैं और उनके राजनीतिक विचार या महत्वाकांक्षाएं उनके नेतृत्व वाली राज्य सरकार की नीतियों में दिखाई देंगी। दूसरी ओर बोस प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की पसंद हैं। इसका मुख्य काम केंद्र सरकार के हितों की रक्षा करना या केंद्र में सत्ताधारी दल अधिक अनुकूल होना होगा। इसलिए जब भी राजनीतिक हितों का टकराव होगा राज्यपाल-मुख्यमंत्री के मतभेद और खींचतान फिर से सामने आ जाएगा।

हालांकि उनकी निजी राय है कि कुछ समय के लिए शांति कायम रहेगी, जिसका कारण राजनीतिक है। मेरी राय में प्रधान मंत्री ने जानबूझकर बोस को उनके प्रशासनिक कौशल के कारण चुना है। नए राज्यपाल को 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलन बनाने के लिए नियुक्त किया गया है।

हालांकि भाजपा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सार्वजनिक रूप से निंदा कर रही है, लेकिन तथ्य यह है कि इस पहल ने राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी पैदा कर दी है और संकेत स्पष्ट हैं कि कांग्रेस देश की विपक्षी राजनीति का नेतृत्व करने को पूरी तरह तैयार है। इसलिए अब प्रधान मंत्री का एकमात्र प्रयास यह होगा कि किसी तरह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय नेताओं को एकजुट विपक्ष के साथ जाने से रोका जाए।

इस मामले में तृणमूल कांग्रेस एक आसान लक्ष्य है क्योंकि पश्चिम बंगाल सरकार और सत्तारूढ़ दल विशेष रूप से भ्रष्टाचार के कई मुद्दों के कारण संकट से गुजर रहे हैं। वहीं सीवी आनंद बोस बाद में जगदीप धनखड़ के नक्शेकदम पर चल सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव समाप्त होने पर 2025 में राज्य विधानसभा चुनाव के कारण भाजपा का ध्यान राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से बंगाल-विशिष्ट परिप्रेक्ष्य में स्थानांतरित हो जाएगा। हालांकि एक अन्य विश्लेषक संतनु सान्याल को लगता है कि राज्यपाल के माध्यम से एक व्यावहारिक संबंध बनाए रखने की ललक अब प्रधानमंत्री के बजाय मुख्यमंत्री की ओर से अधिक है और इसका कारण राजनीतिक होने के बजाय आर्थिक अधिक है।

सान्याल ने कहा, भ्रष्टाचार से संबंधित मुद्दों के बाद पश्चिम बंगाल सरकार जिस सबसे बड़े संकट से गुजर रही है, वह पूरी तरह से नकदी-संकटग्रस्त राज्य का खजाना है। ममता बनर्जी की 2011 से लगातार लोकप्रियता के पीछे प्रमुख कारणों में से एक असंख्य खैरात-सह-कल्याणकारी योजनाएं हैं, जो उन्हें सरकार ने पेश किया है। अब यह स्पष्ट है कि इन अनुदान योजनाओं को लंबे समय तक जारी नहीं रखा जा सकता है, जब तक कि राज्य सरकार को केंद्र सरकार से मदद न मिले। चाहे वह जीएसटी का राज्य का हिस्सा हो या केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के जरिए मदद हो। यदि राज्य सरकार राज्यपाल के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखती है तो केंद्र सरकार से मदद पाना आसान हो जाएगा।

अर्थशास्त्री पी.के. मुखोपाध्याय को लगता है कि केंद्रीय फंड के लिए राज्य सरकार की हताशा इतनी अधिक नहीं होती, अगर राज्य के पास राज्य के उत्पाद शुल्क के अलावा कर राजस्व सृजन के अपने रास्ते होते। उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री अपनी राजनीतिक विचारधारा से बंधी हैं कि वे भूमि और एसईजेड नीतियों पर अपने घोषित रुख से नहीं हटेंगी। लेकिन उन्हें किसी भी कीमत पर अपनी कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखना होगा। इसलिए राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध ममता की आवश्यकता है।

(आईएएनएस)

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