मंदसौर की सियासी लड़ाई किसानों को साधना और जातियों से जुगाड़ बैठाना

  • मंदसौर जिले में चार विधानसभा सीट
  • 1 एससी व 3 सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित
  • बीजेपी का गढ़ मंदसौर

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-13 11:04 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में मंदसौर समेत मल्हारगढ़, सुवासरा,गरोठचार विधानसभा सीट है। चार सीट में तीन सीट सामान्य वर्ग और एक सीट अनुसूचित जाति के सुरक्षित है।  मंदसौर मालवा रीजन में पड़ता है। मंदसौर मध्यप्रदेश के दो जिले नीमच और रतलाम वहीं राजस्थान के चार जिले प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, कोटा, झालावाड़ से घिरा है। मंदसौर नाम मरहसौर से विकसित हुआ है। मरह और सौर या दसौर दो गांव थे। सियासी रूप से देखे तो चुनाव में मंदसौर जिले में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला नजर आता है। शिक्षा, सड़कें और स्वास्थ्य की समस्या बहुत है। बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी के चलते लोगों का पलायन यहां कि प्रमुख समस्या है।  

मंदसौर जिला वैसे तो पुरातात्विक और ऐतिहासिक विरासत में समृद्ध है, लेकिन शिवना तट पर स्थित प्रभु पशुपतिनाथ का मंदिर इसे विश्व प्रसिद्ध बनाता है। यहाँ के मंदिर की मूर्ति नेपाल मे स्थित मंदिर की मूर्ति के समानांतर है। यहाँ की सबसे आम भाषा मालवी (राजस्थानी और मिश्रित हिंदी) है | यह जिला दुनिया भर में अफीम के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। स्लेट पेंसिल उद्योग जिले का मुख्य उद्योग। 

मंदसौर विधानसभा सीट

मंदसौर सीट सामान्य है.यहां किसानों का मुद्दा जोर शोर से उठता है। किसान आंदोलन की जमीन वाले मंदसौर पर सबकी निगाह है। यहां लगातार हार झेल रही कांग्रेस पार्टी की हार का रिकॉर्ड एक चुनौती है। कांग्रेस को यहां बागियों के चलते नुकसान उठाना पड़ता है। जनसंघ के समय से मंदसौर बीजेपी का गढ़ रहा है। इस सीट पर 1952 से लेकर अभी तक कांग्रेस के दो चेहरे ही विधायक बने है। जबकि जनसंघ, जनता दल और बीजेपी ने तुलनात्मक रूप से नए नए चेहरों को मौका दिया है। मंदसौर से अभी तक किसी भी निर्दलीय ने चुनाव नहीं जीता है। पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा मंदसौर विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते थे। यहाँ 16.78% जनसंख्या अनुसूचित जाति तथा 5.36% अनुसूचित जनजाति की है, वहीं 20 से 25 हजार पाटीदार समाज के मतदाता है। प्याज और लहसुन उत्पादक किसानों के चलते मंदसौर चर्चाओं में रहता है।

2018 में बीजेपी से यशपाल सिंह सिसोदिया

2013 में बीजेपी से यशपाल सिंह सिसोदिया

2008 में बीजेपी से यशपाल सिंह सिसोदिया

2003 में बीजेपी से ओमप्रकाश पुरोहित

1998 में कांग्रेस से नवकृष्ष पाटिल

1993 में बीजेपी से कैलाश चावला

1990 में बीजेपी से कैलाश चावला

1985 में कांग्रेस से श्यामसुंदर पाटीदार

1980 में कांग्रेस से श्याम सुंदर पाटीदार

1977 में जनता पार्टी से सुंदरलाल पटवा

1972 में कांग्रेस से श्यामसुंदर पाटीदार

1967 में जनसंघ से मोहन सिंह गौतम

1962 में कांग्रेस से श्याम सुंदर पाटीदार

मल्हारगढ़ विधानसभा सीट

मल्हारगढ़ सीट अनुसूचित जाति के आरक्षित है। किसान बाहुल्य मल्हारगढ़ विधानसभा सीट में करीब पौने दौ सौ गांव आते है। मल्हारगढ़ की पिपलिया मंडी वो इलाका है जहां सरकारी गोली से 7 किसानों की मौत हुई थी। किसानों की मौत का मामला भले ही शांत हो गया हो लेकिन किसानों की समस्या जैसी थी वैसी ही बनी हुई है। यहां चुनाव में किसानों को साधना जरूरी होता है। सीट पर एससी वर्ग के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है।इसके बाद पाटीदार , राजपूत समुदाय के वोटर्स निर्णायक होते है। सीट पर एससी वोटर्स की संख्या 70 हजार से अधिक है। 30 हजार पाटीदार,

2018 में बीजेपी से जगदीश देवड़ा

2013 में बीजेपी से जगदीश देवड़ा

2008 में बीजेपी से जगदीश देवड़ा

सुवासरा विधानसभा सीट

सुवासरा सामान्य सीट है। यहां 30 फीसदी मतदाता एससी वर्ग से है। वहीं 45 फीसदी राजपूत और 20 फीसदी पाटीदार मतदाता है। सड़कें, शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधा यहां बदहाल स्थिति में है।

2020 उपचुनाव में बीजेपी से हरदीप सिंह डंग

2018 में कांग्रेस से हरदीप सिंह डंग

2013 में कांग्रेस से हरदीप सिंह डंग

2008 में बीजेपी से राधेश्याम पाटीदार

2003 में बीजेपी से जगदीश देवड़ा

1998 में कांग्रेस की पुष्पा भारतीय

1993 में बीजेपी से जगदीश देवड़ा

1990 में बीजेपी से जगदीश देवड़ा

1985 में कांग्रेस से आशाराम वर्मा

1980 में बीजेपी से चंपालाल आर्य

1977 में जेएनपी से चंपालाल आर्य

1972 में कांग्रेस से रामगोपाल भारतीय

1967 में बीजेएस से चंपालाल आर्य

1962 में जेएस से चंपालाल आर्य

गरोठ विधानसभा सीट

गरोठ में सौंधिया समाज के वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है। उसके बाद मीणा, बंजारा है। उसके बाद एससी और एसटी वोटर्स है। पोरवाल और पाटीदार समाज के वोटर्स लगभग समान है। 20 हजार के करीब पाटीदार समाज के मतदाता है। सबसे बड़ा समूह होने के बावजूद भी ओबीसी वर्ग से यहां विधायक कम बने है। बंजारा और मीणा को अवसर नहीं मिला है। सीट पर हर वर्ग का चेहरा प्रतिनिधित्व करना चाहता है, लेकिन चुनाव लड़ना दलों के निर्णय पर और जीतना समाज के मतदाताओं के समर्थन पर निर्भर करता है।

1972 कांग्रेस से कस्तूरचंद चौधरी सामान्य वर्ग

1977 में जेएनपी से रघुनंदन शर्मा सामान्य वर्ग

1980 बीजेपी से मोहनलाल सेठिया सामान्य वर्ग

1985 कांग्रेस से सुभाषकुमार सोजतिया सामान्य वर्ग

1990 बीजेपी से राधेश्याम मांदलिया सामान्य वर्ग

1993 कांग्रेस से सुभाषकुमार सोजतिया सामान्य वर्ग

1998 कांग्रेस से सुभाषकुमार सोजतिया सामान्य वर्ग

2003 बीजेपी से राजेश यादव पि. वर्ग

2008 में कांग्रेस से सुभाषकुमार सोजतिया सामान्य वर्ग

2013 में बीजेपी से राजेश यादव पि. वर्ग

2018 में बीजेपी से देवीलाल धाकड़ पि. वर्ग

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