नया कानून और विरोध: केरल और पश्चिम बंगाल लागू नहीं करेंगे सीएए, जानिए क्या कहता है भारत का संविधान?

  • सीएए को लेकर विपक्षी दलों का विरोध
  • सीएए पर सियासी रोटियां सेंकना शुरु
  • केरल सीएम ने सीएए को सांप्रदायिक कानून बताकर किया विरोध

Bhaskar Hindi
Update: 2024-03-12 04:22 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने  सोमवार 11 मार्च 2024 को नागरिकता संशोधन कानून का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। नोटिफिकेशन जारी होते ही सीएए कानून पूरे देशभर में लागू हो गया है। सीएए नोटिफिकेशन जारी होने से ही विरोध होना शुरु हो गया है। और राजनैतिक दलों ने सियासी रोटियां सेंकना शुरु कर दिया है। पश्चिम बंगाल और केरल के मुख्यमंत्री ने सीएए को लागू करने से मना कर दिया है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि अभी नियम देखे हैं, नियम देखने के बाद ही कुछ कहा जाएगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि अगर धर्म, जाति या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव होता है तो हम इसे मंजूर नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री ममता ने कहा कि अगर सीएए और एनआरसी के जरिए किसी की नागरिकता छीनी जाती है, तो हम चुप नहीं बैठेंगे। इसका कड़ा विरोध करेंगे। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ये बंगाल है, यहां हम सीएए को लागू नहीं होने देंगे।

वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने सीएए को सांप्रदायिक कानून का बताते हुए विरोध किया है, सीएम विजयन ने  कहा कि हमारी सरकार कई बार दोहरा चुकी है कि हम सीएए को यहां लागू नहीं होने देंगे, जो मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक मानता है। इस सांप्रदायिक कानून के विरोध में पूरा केरल एकसाथ खड़ा होगा। उन्होंने ये भी कहा कि केरल पहला राज्य था, जिसने सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास किया था। केरल सरकार ने दिसंबर 2019 में ही विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर इस कानून को रद्द करने की मांग की थी।

नागरिकता संशोधन का बिल दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था। इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलेगी। इस कानून में गैरमुस्लिमों को ही नागरिकता मिलेगी। क्योंकि तीनों ही देशों में मुस्लिम बहुसंख्यक है, और वहां गैरमुस्लिमों के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। सीएए कानून को लागू होने के साथ ही इसका विरोध होना भी शुरू हो गया है। पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने सीएए का विरोध किया है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों को नागरिकता मिलेगी। भले ही इनके पास भारत आने के वैध दस्तावेज न हों। नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए गृह मंत्रालय ने वेब पोर्टल बनाया है। 

पश्चिम बंगाल और केरल के मुख्यमंत्रियों ने सीएए कानून को अपने अपने राज्य में लागू करने से मना कर दिया है।  ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकारों को इसे लागू नहीं करने का अधिकार है। आपको बता दें भारत में एकल नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। यहां अमेरिका की तरह दोहरी नागरिकता का अधिकार नहीं है। यहां भारत देश की नागरिकता दी जाती है ना कि प्रदेशों की। वैसे भी आपको बता दें नागरिकता से संबंधित कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को है। क्योंकि भारतीय संविधान में नागरिकता को संघ सूची में रखा गया है।  हालांकि कानून के मुताबिक असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के उन आदिवासी इलाकों में सीएए के प्रावधान लागू नहीं होंगे, जिन्हें संविधान की छठी अनूसूची के तहत संरक्षित किया गया है। इसके साथ ही इनर लाइन परमिट सिस्टम वाले पूर्वोत्तर के राज्यों में भी ये लागू नहीं होगा।

निजी न्यूज चैनल के अनुसार मणिपुर पहले इनर लाइन परमिट में नहीं आता था, लेकिन बाद में इसे भी इसमें शामिल कर लिया गया। इनर लाइन परमिट एक तरह का यात्रा दस्तावेज होता है, जो एक सीमित अवधि के लिए दूसरे राज्यों के लोगों को यात्रा करने के लिए दिया जाता है। संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ, राज्य और समवर्ती सूची है। इसमें बताया गया है कि केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार में कौन-कौन से विषय आते हैं। 

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