यूपी में बसपा का साथ नहीं मिलने पर विपक्ष को होगा भारी नुकसान! लोकसभा चुनाव वोट बैंक के हिसाब से पार्टी का जलवा बरकरार, समझें समीकरण

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-27 17:55 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले विपक्षी एकजुटता की कवायद तेज है। साथ ही इसके लिए बैठकों का भी दौर जारी है। बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में एकजुटता के लिए विपक्ष की तस्वीर साफ बनी हुई है। लेकिन अभी तक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। साथ ही अभी भी विपक्ष मे यूपी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वहीं बीजेपी यहां पर लगातार तीसरी बार भारी बहुमत से जीतने का दम भर रही है। बीजेपी 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से ही इस राज्य में अपनी स्थिति मजबूत से भी बेहतर बनाए हुए हैं। पार्टी लगातार 2014 और 2019 की सफलता को दोहराने की बात कर रही है। बीजेपी इसके लिए उत्साहित भी नजर आ रही है। हालांकि बीजेपी का उत्साह भी गलत नहीं है। बीजेपी यहां पर 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 और 2019 के चुनाव में 62 सीटों पर जीत हासिल की है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन ऐसा तब रहा जब राज्य की दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां सपा और बसपा एक साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। बता दें कि, 2019 के चुनाव में बीजेपी अपने दलों के साथ मिलकर राज्य की 51.18 फीसदी वोट हासिल की। 

बसपा विपक्ष के लिए कितना महत्वपूर्ण?

लोकसभा चुनाव के लिहाज से यूपी सबसे महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है। ऐसा कहा जाता है जो दल ने यूपी में बढ़त बना लेता है, उसके लिए केंद्र की सत्ता पर काबिज होने की राहें आसान हो जाती है। ऐसे में विपक्षी एकता पर भी सवाल उठता है कि यूपी में विपक्ष बसपा को इग्नोर कैसे कर सकती है? आखिर वह क्या वजह रही जिसके चलते विपक्षी एकता मीटिंग में बसपा को नहीं बुलाया गया। बसपा वहीं पार्टी है जिसने 2019 के चुनाव में 19 फीसदी से अधिक वोट हासिल की है। तब सपा को 18 फीसदी वोट मिले थे। उस वक्त आरएलडी भी सपा और बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। इन तीनों पार्टियों को उस वक्त कुल 39 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में ध्यान देने वाली बात यह है कि जब ये तीनों दल एक साथ मिलकर भी बीजेपी से इतना पीछे है तो बसपा विपक्षी एकजुटता से अलग रहती है तो यूपी का चुनाव विपक्ष के लिए कठीन हो सकता है। साथ ही यह सब ऐसे दौर में हो रहा जब बीजेपी ने 2022 में लगातार दूसरी राज्य की सत्ता में अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है।

2014 के चुनावी समीकरण को समझें

हालांकि इस मसले को लेकर मायावती ने ट्वीट भी किया था। उन्होंने लिखा था कि बिना यूपी पर विचार किए यह कैसी विपक्षी एकता चल रही है? इसी बीच मायावती ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ेगी। ऐसे में यह भी साफ हो जाता है कि बसपा अब बेहद कम सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतराने की तैयारी करेगी। जब ऐसा होगा तो मायावती की पार्टी दलित और मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में करेगी। जिससे सपा और समीकरण खराब होगा और इससे सीधे तौर पर नुकसान विपक्षी एकता को ही होगा।

इसे समझने के लिए आप 2014 के लोकसभा चुनाव का भी उदाहरण ले सकते हैं। तब सपा, बसपा और आरएलडी ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उस वक्त इन तीनों पार्टियों को कुल 42.98 फीसदी मिले थे। जबकि बीजेपी यहां पर अकेले चुनाव लड़ी और 42.63 फीसदी वोट के साथ 71 सीटें पर जीत हासिल की थी। ऐसे में अगर सपा और बसपा अकेले चुनाव लड़ी तो इसका अंदाजा आप भी लगा सकते हैं। 

बीजेपी की रणनीति

इधर, भाजपा अगले साल होने वाले चुनाव में लाभार्थी वोट बैंक से भी बेहद ज्यादा उम्मीद लगाए बैठी है। साथ ही पार्टी को उम्मीद है कि उसके द्वारा चलाई जा रही वेलफेयर स्कीमों का लाभ उठाने वाली जनता उन्हें जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर उन्हें मतदान करेगी।

बीजेपी को आशा है कि उसके द्वारा यूपी में पीएम आवास योजना, शौचालय, हेल्थ कार्ड, उज्ज्वला योजना, टैबलेट और स्मार्टफोन्स के मुफ्त वितरण से उसे आम चुनाव फायदा मिलेगा। पार्टी के एक नेता ने दावा किया है कि यूपी में अलग-अलग स्कीमों के जरिए 11 करोड़ लोगों को सीधे तौर पर फायदा पहुंचा है। इसमें जाट और यादव भी बड़ी सख्या में शामिल हैं। बता दें कि इस समाज का वोट बीजेपी को बहुत कम मिलता है। लेकिन कुछ आंकड़ा भी बीजेपी के वेलफेयर स्कीमों के चलते उसके साथ आती है तो वह पार्टी के लिए बड़े फायदे के तौर पर साबित होगी।  

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