विधानसभा चुनाव 2023: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में चलता है किसानों का सिक्का, बिंद्रानवागढ़ में एसटी, राजिम में साहू समुदाय का दबदबा
- छत्तीसगढ़ का प्रयाग
- पर्वतों की धरती
- अमीर इलाके में गरीब लोग
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में दो विधानसभा सीट राजिम और बिंद्रानवागढ़ आती है। आध्यात्मिक रूप से गरियाबंद अधिक महत्व रखता है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। बिंद्रानवागढ़ विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए और राजिम सीट सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित है। गिरि यानी पर्वतों से घिरे होने के कारण जिले का नाम गरियाबंद पड़ा।
राजिम विधानसभा सीट
राजिम विधानसभा सीट पर बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस को मौका मिलता है। 2003, 2013 में बीजेपी और 2008 ,2018 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। आस्था और सियासत से राजिम सीट का फैसला होता है। सीट पर सबसे अधिक मतदाता ओबीसी समाज से आते है। यहां करीब 50 फीसदी वोटर्स ओबीसी से आते है। ओबीसी में भी साहू समाज का दबदबा अधिक है। जो निर्णायक भूमिका में होते है। उसके बाद 30 फीसदी मतदाता एसटी और 10 फीसदी एससी वर्ग से आते है। इलाके में ज्यादातर लोग खेती किसानी पर निर्भर है। इसलिए किसानों के मुद्दों चुनाव में अधिक हावी होते है। उद्योगों की कमी के चलते क्षेत्र में रोजगार का अभाव है।
2003 में बीजेपी से चंदूलाल साहू
2008 में कांग्रेस से अमितेश शुक्ल
2013 में बीजेपी से संतोष उपाध्याय
2018 में कांग्रेस से अमितेश शुक्ल
बिंद्रानवागढ़ विधानसभा सीट
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बिंद्रानवागढ़ विधानसभा सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है, यहां बीजेपी 2008, 2013,2018 में तीन बार लगातार चुनाव जीत चुकी है। सीट पर आदिवासी मतदाताओं का दबदबा है। कांग्रेस 2003 में चुनाव जीती थी लेकिन उसके बाद उसके खाते में जीत नहीं आ सकी। हीरा और बहुमूल्य खनिज संपदा से भरपूर बिंद्रानवागढ़ की अमीर धरती के लोग गरीब है। संपदा से भरपूर ये इलाका कई समस्याओं से जूझ रहा है। बेसिक सुविधाओं का अभाव इलाके में देखने को मिलता है। सड़कों की खराब स्थिति, सिंचाई के लिए पानी की कमी,स्वास्थ्य और शिक्षा बदतर स्थिति में है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से परेशान शिक्षित युवा पलायन करने को मजबूर है।
2003 में कांग्रेस से ओंकार शाह
2008 में बीजेपी से डमरूधर पुजारी
2013 में बीजेपी से गोवर्धन मांझी
2018 में बीजेपी से डमरूधर पुजारी
छत्तीसगढ़ का सियासी सफर
1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।
प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गग्गी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।