पहले भी बन चुकी हैं एक देश-एक चुनाव को लेकर कमेटियां, जानिए किन सिफारिशों की वजह से कानून बनने में आईं मुश्किलें

  • एक देश-एक चुनाव को लेकर केंद्र सरकार ने गठित की कमेटी
  • पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे अध्यक्षता
  • संसद के विशेष सत्र में पेश हो सकता है बिल

Bhaskar Hindi
Update: 2023-09-01 13:06 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने एक देश-एक चुनाव को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने 1 सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है जो ये कमेटी कानून के सभी पहलुओं पर विचार करेगी और लोगों से उनकी राय जानेगी। सरकार ने यह कदम ऐसे वक्त उठाया है, जब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि 18 से 22 सितंबर तक चलने वाले संसद के विशेष सत्र में एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल पेश किया जा सकता है।

सबसे पहले जानते हैं 'एक देश-एक चुनाव' क्या है?

एक देश-एक चुनाव का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। वर्तमान में यह अलग-अलग समय पर होते हैं। एक देश-एक चुनाव के अंतर्गत मतदाता लोकसभा और विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही समय पर एक ही दिन दिन चरणबद्ध तरीके से मतदान करेंगे।

ऐसा नहीं है कि देश में पहले यह व्यवस्था लागू नहीं थी। आजादी के 20 साल बाद तक यानी साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे। लेकिन साल 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाएं समय से पूर्व ही भंग कर दी गईं। इसके एक साल बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

हालांकि इस परंपरा को दोबारा लागू करने की संभावना साल 1983 में चुनाव आयोग ने अपनी रिपोर्ट एनुअल रिपोर्ट में उठाई थी। इसके बाद समय-समय पर एक देश-एक चुनाव को लेकर तीन कमेटियां गठित की गईं, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश की।

विधि आयोग की रिपोर्ट- 1999

मई 1999 में न्यायमूर्ति बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में आयोग ने कहा, "हर साल और सत्र के बाहर चुनावों के चक्र को समाप्त किया जाना चाहिए। हमें उस स्थिति में वापस जाना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं। नियम यह होना चाहिए कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए पांच साल में एक बार एक चुनाव हो।"

संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट- 2015

डॉ. ई.एम. सुदर्शन की अध्यक्षता में साल 2015 में एक संसदीय स्थायी समिति का गठन किया गया। कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय के लिए बनी इस समिति ने दिसंबर 2015 को लोकसभा और विधानसभा के एक साथ कराए जाने की व्यवहारिकता पर अपनी रिपोर्ट पेश की। समिति ने सम्मिलित चुनाव कराने में आने वाली बाधाओं का जिक्र किया। समिति के मुताबिक, अलग-अलग चुनावों के संचालन में वर्तमान समय में किया जाने वाला खर्च काफी ज्यादा हो सकता है। चुनाव के समय जब आचार संहिता लागू होगी तो नीतियों के कानून लागू होने में एक प्रकार की पंगु व्यवस्था का सामना करना पड़ सकता है। समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, एक साथ चुनाव होने पर जहां जरूरी सेवाओं की डिलीवरी पर प्रभाव पड़ सकता है वहीं चुनाव के समय तैनात की जाने वाली मैनपॉवर पर भी बोझ बढ़ सकता है।

विधि आयोग का मसौदा- 2018

न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने 30 अगस्त 2018 को एक देश एक चुनाव को लेकर अपना मसौदा पेश किया। इस रिपोर्ट में एक साथ चुनाव से जुड़े कानून और संवैधानिक मुद्दों पर गौर किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया कि संविधान के मौजूदा स्ट्रक्चर के तहत एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं प्रतीत होता। हालांकि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि, संविधान, लोक प्रतिनिधित्व एक्ट 1951 और लोकसभा व विधानसभाओं की प्रक्रिया से जुड़े नियमों में आवश्यक संशोधनों के जरिए एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं। आयोग ने यह भी कहा कि यदि एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो धन की बचत होने के साथ सुरक्षा बलों और प्रशासनिक ढांचे पर बोझ कम होगा। 

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