बसपा और कांग्रेस बनी एक दूसरे की जरूरत! लोकसभा चुनाव ही नहीं बल्कि विधानसभा चुनावों में भी दोनों पार्टियों को चाहिए एक दूसरे का साथ
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजधानी पटना में 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक हुई, जिसमें 15 राजनीति दलों के 27 नेताओं ने हिस्सा लिया। लेकिन, इस मीटिंग में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सुप्रीमो मायावती शामिल नहीं हुई। उन्होंने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह 2024 का चुनाव अकेले लड़ेंगी। हालांकि, मायावती 2024 के बनते-बिगड़ते समीकरणों पर नजर बनाए हुए हैं। साथ ही, राजनीतिक गलियारों में भी यह चर्चा तेज है कि बसपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ सकती है। जहां इन दोनों पार्टियों को एक-दूसरे की सख्त जरूरत है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बसपा और सपा एक साथ चुनाव लड़ा थी और तब इन दोनों पार्टियों ने 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाबी पाई थी।
मध्य प्रदेश में बसपा की जरूरत!
अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले इस साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनावों में खासकर मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इन दोनों पार्टियों को एक दूसरे की सख्त जरूरत पड़ सकती है। 230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में जहां कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में 40.89 फीसदी वोट हासिल कर 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं बसपा ने भी 5 फीसदी वोट हासिल कर दो सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी। इस दौरान मायावती की पार्टी बीजेपी से दो सीटें पर मुकाबले में दूसरे नंबर पर रही थी और बेहद मामूली अंतर से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में बीजेपी 41.02 फीसदी वोट हासिल की थी। वोट परसेंटेज ज्यादा होने के बावजूद भी बीजेपी को राज्य में कांग्रेस से कम सीटें मिली थी। तब बीजेपी को 109 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था। वहीं, कांग्रेस को बहुमत के लिए केवल 2 सीटें चाहिए थी। इसके बाद पार्टी ने बसपा के दो विधायकों और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाई थी। हालांकि, इसके बाद कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने सर्मथकों के साथ पार्टी से बगावत कर बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद फिर राज्य में एक बार बीजेपी की सरकार बन गई। 2018 के चुनावी पैटर्न की बात करें तो तब कांग्रेस और बसपा ने करीब 46 फीसदी वोट हासिल किए थे। जो कि बहुत ज्यादा है।
छत्तीसगढ़ में बसपा को कांग्रेस की जरूरत!
छत्तीसगढ़ राज्य में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस राज्य में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। कांग्रेस ने यहां 2018 के चुनाव में अपने दम पर 68 सीटों पर जीत दर्ज की थी और राज्य की तीन बार से सत्तारूढ़ पार्टी रही बीजेपी को पार्टी ने विपक्ष के सीट पर बैठा दिया। इस दौरान 43 फीसदी वोट शेयर पाकर कांग्रेस राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। जबकि सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी को यहां पर केवल 33 वोट के साथ 15 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इस दौरान तीसरे नंबर पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ रही थी, जिसे 7.6 फीसदी वोट और 5 सीटें मिली थीं। साथ ही इस चुनाव में बसपा 3.9 परसेंट वोट के साथ 2 सीटे जीतने में कामयाब रही थी। हालांकि, इस समय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पूरी तरह से अस्वस्थ नजर आ रही है। पार्टी को पूरा भरोसा है कि भूपेश बघेल के नेतृत्व में पार्टी एक बार फिर राज्य की सत्ता पर काबिज होगी। कांग्रेस यहां पर किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना चाह रही है। लेकिन बसपा को यहां पर कांग्रेस के साथ की जरूरत है। बसपा जानती है कि कांग्रेस के साथ मिलने पर पार्टी दो से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। लेकिन अभी इसकी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है।
राजस्थान में किसे कितनी जरूरत?
राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं। यहां पर भी कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से 2 सीटें कम रही गई थी। तब पार्टी ने 99 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में मायावती की बसपा ने 6 सीटें जीती थी। तब पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में अशोक गहलोत की सरकार बनाई। बाद में अशोक गहलोत ने बसपा के सभी छह विधायकों को अपने पाले में कर लिया। जिसके बाद से भी मायावती कांग्रेस से नाराज चल रही है। क्योंकि मायावती ने 2018 के चुनाव के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने में मदद की थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 39.30 फीसदी वोट मिले थे। वहीं उस वक्त राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी को 38.77 फीसदी वोट के साथ 73 सीटें हासिल की थी। तब बसपा को मात्र 4 फीसदी वोट मिले, लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी सरकार का हिस्सा बनने में कामयाब रही। इस दौरान बीजेपी और कांग्रेस के वोट परसेंट को देखें तो कांग्रेस को बसपा की जरूरत है। ऐसे में कहा जा सकता है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दोनों पार्टियों को एक दूसरे की जरूरत है। साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को अगर यूपी में बसपा का साथ मिलता है तो इससे दोनों पार्टियों के समीकरण बेहतर होंगे।