भास्कर हिंदी एक्सक्लूसिव: मध्यप्रदेश में आरक्षित सीटों पर बड़ी लड़ाई, गठजोड़ कर आदिवासी और दलित समुदाय को लुभाने में जुटी बीजेपी और कांग्रेस
- आरक्षित सीटों पर केंद्रित होता जा रहा है मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव
- जानें क्यों सभी पार्टी गठजोड़ करके आदिवासी और दलित समुदाय को लुभाने में जुटी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अनुसूचित जनजाति (ST) और अनुसूचित जाति बाहुल्य समुदाय वाले राज्य मध्य प्रदेश में करीब एक माह बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सभी पार्टी राज्य में एसटी और एससी समुदाय को साधने के लिए रणनीति तैयार कर रही हैं। बीते शनिवार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) ने प्रदेश की आदिवासी और दलित वोट बैंक को एक साथ लाने के लिए गठबंधन कर लिया। जिसके बाद प्रदेश में सियासी हलचल तेज हो गई। हालांकि, प्रदेश की दो प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस भी लगातार एसटी और एससी समुदाय को साधने के लिए रणनीति तैयार कर रही हैं।
कांग्रेस जहां एक तरफ आरक्षित वर्ग को साधने के लिए जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के डॉ हीरालाल अलावा से संपर्क करने की कोशिश कर रही है। माना जा रहा है जल्द ही कांग्रेस और जयस गठबंधन कर सकती हैं। जयस का प्रभाव प्रदेश के आदिवासी समुदाय पर है। वहीं दूसरी ओर बीजेपी भी इस रेस में ज्यादा पीछे नजर नहीं है। आदिवासी वोट में बेहतर पकड़ बनाने के लिए हाल ही में बीजेपी ने तीसरी लिस्ट जारी की थी। लिस्ट में पार्टी ने अखिल भारतीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पूर्व अध्यक्ष मनोहन शाह बट्टी की पूत्री मोनिका बट्टी को छिंदवाडा जिले की अमरवाड़ा (अजजा) विधानसभा सीट से टिकट दिया है। बता दें कि, 19 सितंबर को ही मोनिका बट्टी ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था। इसके बाद पार्टी ने एक हफ्ते के भीतर ही मोनिका को अमरवाड़ा सीट से चुनाव लड़ने का मौका दे दिया है। खास बात यह है कि बीजेपी ने केवल एक प्रत्याशी के लिए तीसरी सूची जारी की थी। ऐसे में आइए समझने की कोशिश करते हैं कि मध्य प्रदेश की सियासत में इन दोनों समुदाय के वोट किसी भी पार्टी के लिए क्यों जरूरी हैं? आखिर सभी पार्टी इन दोनों समुदाय को साधने के लिए गठजोड़ की रणनीति क्यों अपनना रही है?
एमपी में एससी और एसटी का चुनावी दबदबा
मध्य प्रदेश में किसी भी पार्टी को सत्ता की चाबी पाने के लिए उसे आदिवासी और दलित समुदाय से होकर गुजरना पड़ता है। राज्य में एसटी की 21 और एससी की 16 फीसदी आबादी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी डेटा के मुताबिक, सूबे में ST के लिए 47 और SC के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। इसका मतलब प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 82 सीटें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा अनरिजर्वड की सीटों की बात करें तो 146 सीटों में से 60 पर ओबीसी विधायक हैं। राज्य में ओबीसी की आबादी करीब 50 फीसदी हैं।
पिछले चुनाव में SC और ST सीटों पर कांग्रेस ने मारी बाजी
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आरक्षित आदिवासी विधानसभा सीटों पर बीजेपी के सामने जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी। कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश की कुल 47 आरक्षित आदिवासी सीटों में से 30 जीती थीं। वहीं, बीजेपी इस दौरान मात्र 15 सीटों पर सिमट कर रह गई। इसके अलावा एससी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस बीजेपी से मात्र 3 सीटें पीछे रही थीं।