नरसिम्हा राव को भारत रत्न: दो बातों से खफा कांग्रेस ने दिल्ली में नहीं होने दिया था पूर्व पीएम का अंतिम संस्कार, बाबरी मस्जिद को लेकर भी थी नाराजगी

  • पूर्व पीएम नरसिम्हा राव को भारत रत्न मिलने का ऐलान
  • गांधी परिवार से रिश्तों में पड़ी थी दरार
  • अंतिम संस्कार पर लगा दी थी रोक

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-09 12:52 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  पीएम मोदी नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की है। बीते दिनों केंद सरकार की ओर से भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण अडवाणी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री को भारत रत्न मिलने का ऐलान किया गया था। कांग्रेस के दौर में पीएम रहे पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस ने जितनी तवज्जो नहीं दी उससे ज्यादा सम्मान बीजेपी ने दिया है। आखिर इसके पीछे मायने क्या हैं। ये एक अलग विषय है, लेकिन ये जान लेना जरूरी है कि कांग्रेस और पीवी नरसिम्हा राव के संबंध कैसे रहे और क्यों कांग्रेस ने दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार तक होने नहीं दिया। 

कांग्रेस का नरसिम्हा राव से किनारा

देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे नरसिम्हा राव कांग्रेस पार्टी के नेता था। उन्होंने साल 1991 से लेकर साल 1996 तक उन्हीं की सरकार का शासनकाल रहा। उन्हें खासतौर पर देश में आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाने के लिए भी याद किया जाता है। साल 1991 में जब नरसिम्हा राव को कांग्रेस से साइडलाइन किया जाने लगा था। तब उन्होंने दिल्ली से हैदराबाद में बसने की तैयारी शुरू कर दी थी। मगर, देश में राजीव गांधी की हत्या के बाद राजनीतिक अशांति उत्पन्न होने लगी थी। कांग्रेस ने इसे देखते हुए नसिम्हा राव को अचानक प्रधानमंत्री पद पर बिठा दिया था।

किताब में किया गया जिक्र

नरसिम्हा राव को लेकर देश के जाने माने जर्नलिस्ट और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने एक किताब लिखी थी। इस किताब का नाम था '1991 हाउ पीवी नरसिम्हा राव मेड हिस्ट्री'। इसमें उन्होंने लिखा, "नसरिम्हा राव देश के पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे।" कहा जाता है कि नसरिम्हा राव और गांधी परिवार के बीच संबंध इतने अच्छे नहीं थे। साल 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद से ही उनके और गांधी परिवार के संबंधों में खटास आने लगी थी।

गांधी परिवार से दरार का मुख्य कारण

इस बारे में लेखक विनय सीतापति ने अपनी एक किताब 'द हाफ लायन' में एक किस्से का उल्लेख किया है। जिसमें लिखा है, "राहुल गांधी ने तो सार्वजनिक तौर पर यह कहा कि अगर उनका परिवार वर्ष 1992 में सत्ता में होता तो शायद बाबरी मस्जिद नहीं गिरती।" माना जाता है साल 1991 से ही नरसिम्हा राव की गांधी परिवार से दूरी बढ़ना शुरू हो गई थी। दरअसल, राजीव गांधी की हत्या के मामले में त्वरित और सख्त कार्रवाई न किए जाने से उनकी गांधी परिवार से तनातनी बढ़ गई थी। इसके अलावा देश में राव का मनमोहन सिंह के साथ आर्थिक सुधारों को लागू करने का पूरा श्रेय भी उन्होंने लिया था। उनकी इस बात से सोनिया गांधी काफी ज्यादा नाराज हो गई थीं। इसके बाद से ही नरसिम्हा राव के गांधी परिवार से रिश्ते बद से बद्तर होते चले गए थे।

पार्टी में नहीं आया था एक भी कांग्रेसी

इसके बाद नरसिम्हा राव की गांधी परिवार से खराब होते रिश्तों के चलते कांग्रेसी नेताओं ने भी दूरी बनाना शुरू कर दी। साल 1996, सिंतबर में जब नरसिम्हा राव ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने एक टी पार्टी का आयोजन किया था। हालांकि, इस पार्टी में कांग्रेस के किसी भी नेता ने आने से इनकार कर दिया था। ऐसे में राव ने पार्टी को कैंसिल कर दिया था। कांग्रेस की ओर से नरसिम्हा राव का बहिष्कार करने के पीछे की वजह न केवल बाबरी मस्जिद विध्वंस बताई जाती है। बल्कि उन्हें अपने कार्यकाल में जेएमएम रिश्वत कांड, हर्षद महेता घोटाला कांड, सेंट किट्स जालसाजी जैसे घपलों में कांग्रेस की बदनामी का कसूरवार भी ठहराया गया था।

नहीं होने दिया अंतिम संस्कार

नरसिम्हा राव की गांधी परिवार से दरार का परिणाम ऐसे रहा कि उनकी मृत्यु के बाद भी नई दिल्ली में उनके अंतिम सरकार होने पर रोक लगा दी गई थी। नरसिम्हा राव का 23 दिसंबर 2004 को निधन हो गया था। इसके बाद शाम 4 बजे करीब एम्स से उनके शव को 9 मोतीलाल नेहरू रोड पर स्थित उनके आवास पर ले जाया गया। आवास पर राव के अंतिम दर्शन करने पहुंचे तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने उनके बेटे प्रभाकर राव को सलाह दी। जिसमें उन्होंने कहा कि वह अपने पिता के शव को अंतिम संस्कार करने हैदराबाद ले जाएं। हालांकि, प्रभाकर इस बात के लिए राजी नहीं हो रहे थे। इसके बाद सोनिया गांधी के करीबी गुलाब नबी आजाद ने प्रभाकर को यही नसीहत दी थी। जिसके चलते प्रभाकर को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस ने इस बात के लिए मना लिया था।

इसके बाद अंतिम संस्कार के लिए नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को हैदराबाद ले जाने की तैयारियां हो गई थीं। एयरपोर्ट पहुंचने से पहले प्रभाकर राव ने परंपरा के तहत शव को 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस कार्यालय ले जाने की मांग की थी। वह नरसिम्हा राव के शव को लेकर वहां पहुंच भी गए थे। इसके बावजूद कार्यालय के गेट को नहीं खोला गया। दफ्तर के बाहर लगभग आधे घंटे का इंतजार करने के बाद नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को एयरपोर्ट ले जाया गया। इस दौरान वहां कांग्रेस के कई नेता मौजूद थे, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं बोला था।

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