स्वास्थ्य/चिकित्सा: मंकीपॉक्स वायरस का पता लगाने के लिए भारतीय शोधकर्ताओं ने खोजा नया तरीका

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान जेएनसीएएसआर के शोधकर्ताओं ने मंकीपॉक्स वायरस के विषाणु विज्ञान (वायरोलॉजी) को समझने के लिए एक नई विधि का पता लगाया है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-22 15:07 GMT

नई दिल्ली, 22 नवंबर (आईएएनएस)। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान जेएनसीएएसआर के शोधकर्ताओं ने मंकीपॉक्स वायरस के विषाणु विज्ञान (वायरोलॉजी) को समझने के लिए एक नई विधि का पता लगाया है।

इस नए शोध से इस घातक संक्रमण का पता लगाने के टूल विकसित करने में मदद मिल सकती है। पिछले तीन साल में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) दो बार मंकीपॉक्स को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर चुका है। साल 2024 के वैश्विक प्रकोप में यह बीमारी अफ्रीका के लगभग 15 देशों और अफ्रीका से बाहर तीन देशों में फैल गई।

इस प्रकोप ने दुनिया भर में इसके फैलने को लेकर गंभीर चिंता जताई है, क्योंकि इस संक्रमण के लक्षण अभी तक अच्छी तरह से समझ में नहीं आए हैं। इसके उपचार को लेकर रणनीतियों के तेजी से विकास के साथ-साथ वायरोलॉजी की व्यापक समझ सबसे महत्वपूर्ण है।

शोधकर्ताओं ने कहा, "एमपीवी (मंकीपॉक्स वायरस) एक डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए (डीएसडीएनए) वायरस है। पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) के माध्यम से एक्स्ट्रासेल्यूलर वायरल प्रोटीन जीन का पता लगाना एमपीवी की पहचान करने के लिए एक व्यापक तकनीक है।"

वर्तमान में बीमारी का पता पीसीआर के माध्यम से लगाया जाता है, जो डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए (डीएसडीएनए) के एम्प्लीफिकेशन पर निर्भर करता है, जो इसे मापने के लिए फ्लोरोसेंट जांच का भी उपयोग करता है।

टीम ने एमपीवी जीनोम के भीतर चार स्ट्रेंड वाली असामान्य और विशिष्ट डीएनए संरचना वाले अत्यधिक संरक्षित जीक्यू की पहचान की और उसका लक्षण-निर्धारण किया। उन्होंने विशेष रूप से एक विशेष फ्लोरोसेंट छोटे-अणु जांच का उपयोग करके एक विशिष्ट जीक्यू अनुक्रम का पता लगाया, जिससे मंकीपॉक्स वायरस का सटीक तरीके से पता लगाना आसान हो गया।

उनके फ्लोरोजेनिक मॉलिक्यूलर प्रोब में एमपीवी जीक्यूएस (एमपी2) के साथ फ्लोरेसेंस आउटपुट में 250 गुना से अधिक वृद्धि दिखाई दी। वहीं भविष्य के उपचारों के लिए संभावित जीक्यू लक्ष्यों की पहचान करने के लिए मंकीपॉक्स वायरस जीनोम की अतिरिक्त मैपिंग की जा रही है।

यह शोध जीक्यू पर आधारित संभावित पहचान प्लेटफॉर्म के विकास की संभावना बढ़ाता है, और पहचाने गए जीक्यू की उनके एंटी-वायरल गुणों के लिए आगे जांच की जा सकती है।

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