संस्कृति: प्रभा अत्रे ‘जिन्होंने किराना’ घराने की खासियत को रखा बरकरार, गुरु-शिष्य परंपरा के लिए उठाया था ये कदम

फिल्म संगीत हो, शास्त्रीय संगीत या फिर लोक संगीत। इस मॉडर्न युग में हर कोई म्यूजिक सुनता है, लेकिन इसे समझने की महारत सिर्फ चुनिंदा लोगों या फिर संगीत घरानों के पास ही होती है। संगीत पर अटूट पकड़ ही उन्हें महान बनाती है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-13 02:57 GMT

नई दिल्ली, 13 सितंबर (आईएएनएस)। फिल्म संगीत हो, शास्त्रीय संगीत या फिर लोक संगीत। इस मॉडर्न युग में हर कोई म्यूजिक सुनता है, लेकिन इसे समझने की महारत सिर्फ चुनिंदा लोगों या फिर संगीत घरानों के पास ही होती है। संगीत पर अटूट पकड़ ही उन्हें महान बनाती है।

आज हम जिस महान शख्सियत की बात कर रहे हैं, वह एक महिला हैं, जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के उस दौर में अपने नाम का परचम लहराया, जब शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में पुरुषों का दबदबा था। उन्होंने न केवल संगीत को नई ऊंचाई दी बल्कि अगली पीढ़ी को इसके लिए प्रेरित भी किया।

हम बात करे रहे हैं मशहूर हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका, लेखिका, संगीतकार और शोधकर्ता प्रभा अत्रे की, जिनका नाता था भारत के प्रसिद्ध घरानों में शुमार “किराना घराने” से। वैश्विक स्तर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने में प्रभा अत्रे की अहम भूमिका रही। प्रभा अत्रे प्रतिभा की धनी थीं, उन्हें अलग-अलग तरह के संगीत में महारत हासिल थी, जिसमें ख्याल, ठुमरी, दादरा, भजन और गजल शामिल थी।

13 सितंबर, 1932 को पुणे में पैदा हुईं डॉ अत्रे ने गायकी के अलावा नृत्य भी सीखा। बचपन से ही उनका संगीत की ओर लगाव दिखने लगा। इसी दौरान उन्होंने संगीत की शिक्षा के लिए किराना घराने का रुख किया। उनकी संगीत की शिक्षा गुरु-शिष्य परंपरा में हुई। उन्होंने किराना घराने के सुरेश बाबू माने और हीराबाई बडोडेकर से शास्त्रीय संगीत सीखा।

मंच पर मधुर आवाज और नियंत्रण के साथ उन्होंने सुरों की आवाज का ऐसा जादू बिखेरा कि शायद ही कोई ऐसा संगीत प्रेमी होगा, जो उन्हें भुला पाए। उनकी खासियत ही ऐसी थी कि वह कठिन बोलों को भी सरलता से दर्शकों के दिलों तक आसानी से पहुंचा देती थीं। इसी प्रतिभा ने प्रभा अत्रे को अपने दौर की सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया।

संगीत की तमाम विधाओं जैसे- ठुमरी, दादरा, ग़जल, गीत, ख्याल, भक्ति गीतों को उसी परफेक्शन से गाना अपने-आप में ही अद्भुत टैलेंट था। इसके अलावा संगीत पर किताबें लिखने, रचना करने और संगीत की दुनिया को नए 'राग' देने में भी उन्हें महारत हासिल की। प्रभा अत्रे ही थीं, जिन्होंने अपूर्वा कल्याण, दादरा, मालकौंस, पटदीप मल्हार, तिलंग भैरवी, रवि भैरवी और मधुर कौंस जैसे कई रागों को अपनी अद्भुत कल्पना से जन्म दिया।

एक बार प्रभा अत्रे ने कहा था, "मैं अंतिम सांस तक गाना चाहती हूं, लेकिन संगीत के बाकी पहलुओं पर भी काम करना चाहती हूं। मेरा सपना शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने का है। मैं इसे सीखने में आसान बनाने और लोकप्रिय बनाने के लिये काम करना चाहती हूं।" उनके इस बयान की झलक उस समय दिखाई दी। जब उन्होंने गुरु-शिष्य की परंपरा को जिंदा रखने का प्रयास किया और इसके लिए पुणे में 'स्वरमई गुरुकुल' नाम की स्थापना की।

शास्त्रीय संगीत में योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया गया। अत्रे को पद्मश्री (1990), पद्म भूषण (2002) और 2022 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों भी दिया गया। उनके नाम एक चरण से 11 पुस्तकें जारी करने का विश्व रिकॉर्ड भी दर्ज है।

किराना घराने की नायाब धरोहर को देश-दुनिया में लोकप्रिय बनाने वाली 92 साल की दिग्गज गायिका प्रभा अत्रे का 13 जनवरी 2024 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।

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