समाज: कृषि क्षेत्र में देश को बनाया आत्मनिर्भर, एमएसपी का दिया था प्रस्ताव, कौन थे 'हरित क्रांति' के जनक

भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। भारत की धरती पर गेहूं, चावल, कपास, फल, सब्जियां और दाल सहित प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं।सिंचित फसल क्षेत्र 8.26 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है, जो दुनिया में सबसे बड़ा है। यही नहीं कृषि योग्य भूमि के मामले में भी भारत 159.7 मिलियन हेक्टेयर के साथ दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-07 07:19 GMT

नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)। भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। भारत की धरती पर गेहूं, चावल, कपास, फल, सब्जियां और दाल सहित प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं।सिंचित फसल क्षेत्र 8.26 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है, जो दुनिया में सबसे बड़ा है। यही नहीं कृषि योग्य भूमि के मामले में भी भारत 159.7 मिलियन हेक्टेयर के साथ दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है।

भारत वर्षों से कृषि क्षेत्र में सफलता की जो सीढ़ियां चढ़ रहा है, उसमें सबसे अहम योगदान दिवंगत कृषि वैज्ञानिक मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन का रहा है। उन्हें भारत में 'हरित क्रांति' के जनक की उपाधि मिली है।

दरअसल, 7 अगस्त 1925 को प्रसिद्ध भारतीय कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन का तमिलनाडु के कुंभकोणम में जन्म हुआ। 'हरित क्रांति' के जनक एम.एस. स्वामीनाथन के पिता एक डॉक्टर थे। उन्होंने बचपन से ही खेती और किसानों को बहुत करीब से देखा। उनका परिवार चावल, आम और नारियल उगाता था, जो बाद में कॉफी जैसे क्षेत्रों तक फैल गया।

उनके माता-पिता चाहते थे कि वे चिकित्सा की पढ़ाई करें। इसलिए उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्राणिविज्ञान से की। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में जब बंगाल में अकाल पड़ा तो उन्होंने देश में चावल की कमी के प्रभावों को देखा। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन को भारत में पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने के लिए समर्पित कर दिया। स्वामीनाथन ने 1949 में आलू, गेहूं, चावल और जूट के जेनेटिक्स पर रिसर्च कर अपने करियर का आगाज किया।

1960 के दशक में स्वामीनाथन ने अपने प्रयासों से भारत और पाकिस्तान को अकाल जैसी स्थिति से बचाया। उन्होंने भारतीय परिस्थितियों के लिए बीजों को अनुकूलित किया और किसानों को खेती का प्रशिक्षण भी दिया।

स्वामीनाथन के प्रयास किसानों, गरीबों और ग्रामीण समुदायों तक ही सीमित नहीं थे। उन्होंने कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को भी बढ़ावा दिया। स्वामीनाथन को टाइम मैगजीन से 20वीं सदी के बीस सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में शामिल किया गया। वे टाइम मैगजीन की इस सूची में महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के बाद शामिल होने वाले तीसरे भारतीय थे।

स्वामीनाथन को 1967 में पद्मश्री, 1972 में पद्म भूषण और 1989 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। केंद्र सरकार ने 2024 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। उन्होंने कई कृषि अनुसंधान संस्थानों का भी नेतृत्व किया, जिनमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक का पद शामिल है। स्वामीनाथन ने 1979 में कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव के रूप में भी कार्य किया।

कृषि क्षेत्र में किए गए अमूल्य योगदान के लिए स्वामीनाथन को 1961 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार और 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

स्वामीनाथन को साल 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस आयोग ने किसानों की दशा सुधारने से संबंधित एक रिपोर्ट तत्कालीन केंद्र सरकार को सौंपी, जिसे बाद में स्वामीनाथन रिपोर्ट कहा गया। इसमें भूमि सुधार, सिंचाई, उत्पादकता, खाद्य सुरक्षा, किसानों की आत्महत्या और रोजगार जैसे मुद्दों का जिक्र किया गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में किसानों को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कही थी।

बता दें कि स्वामीनाथन का 98 वर्ष की आयु में 28 सितंबर 2023 को चेन्नई में निधन हो गया।

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