अंतरराष्ट्रीय: 8 फरवरी के मतदान के बाद, नए नेतृत्व के सामने आईएमएफ और चीन के साथ संतुलन बनाने की चुनौती

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की शर्तों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा हाल में लिए गए नीतिगत फैसलों के कारण पाकिस्तान में मुद्रास्फीति और गरीबी भयंकर रूप से बढ़ गई है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-05 11:10 GMT

इस्लामाबाद, 4 फरवरी (आईएएनएस)। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की शर्तों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा हाल में लिए गए नीतिगत फैसलों के कारण पाकिस्तान में मुद्रास्फीति और गरीबी भयंकर रूप से बढ़ गई है।

जब महंगाई की मार और गरीबी से त्रस्त मतदाता एक महीने से अधिक समय तक चले चुनाव अभियानों और सार्वजनिक सभाओं के दौरान चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के वादों और बड़े-बड़े दावों को सुनने के बाद 8 फरवरी को मतदान करेंगे, तो जीतने वाली पार्टी से उम्मीदें बहुत अधिक होंगी जिसके आने वाले दिनों में घोर निराशा में बदलने की आशंका भी उतनी ही अधिक होगी।

ऐसा इसलिए है क्योंकि राजनेताओं के बेहतर दिनों के बड़े-बड़े दावे नई सरकार के सामने पहले दिन से ही खड़ी आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों के सामने धराशायी हो सकते हैं।

यह निश्चित रूप से किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन के माध्यम से बनी सरकार के लिए सौभाग्य की बात नहीं होगी क्योंकि पिछले दशकों के असफल शासन और प्रबंधन के कारण पाकिस्तान का आर्थिक परिदृश्य राजनीतिक अक्षमता, दुस्साहस और गलत कदमों से आहत हुआ है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया होगी, वह भी तब जब अगली सरकार कठिन निर्णय लेने और उस लक्ष्य के लिए काम करने का फैसला करती है और तब भी जब मतदाता अच्छे दिनों के लिए और ज्यादा सहने के लिए तैयार हों।

पाकिस्तान में महंगाई की मौजूदा दर 30 फीसदी के आसपास है, जबकि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या हर गुजरते दिन के साथ लगातार बढ़ रही है। अनुमान के अनुसार, देश की कुल आबादी (24.2 करोड़) के लगभग 38.2 प्रतिशत के गरीबी रेखा से नीचे होने का अनुमान है, और बिजली, गैस, ईंधन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती दरों के साथ यह प्रतिशत बढ़ता जा रहा है।

यह एक स्थापित तथ्य है कि संरचनात्मक कमजोरियों को अतीत में सरकारों ने सबसे अधिक नजरअंदाज किया है, जिसने देश को आभासी वित्तीय मंदी की स्थिति में धकेल दिया है।

यद्यपि राजनेता इन वास्तविकताओं को जानते हैं; वे अपने मतदाताओं को आकर्षित करने और सत्ता में आने के लिए बड़े-बड़े वादे और दावे करते रहते हैं। कम बिल, सस्ता किराने का सामान और बेहतर दिनों के वादे से लेकर आम लोगों को तत्काल राहत देने तक - राजनेताओं के बयान लगातार गैर-जिम्मेदाराना और वास्तविकता से दूर होते जा रहे हैं।

यह एक और ज्ञात तथ्य है कि आईएमएफ ने सरकारी और सार्वजनिक खर्च के लिए मुफ्त सुविधाओं पर रोक लगा दी है। फिर भी, प्रमुख पार्टियाँ मुफ्त बिजली और गैस का वादा करना जारी रखती हैं, जो कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिति के बिल्कुल विपरीत है।

नई सरकार को तुरंत काम शुरू करना होगा और गहरे तथा व्यापक सुधारों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ एक और दीर्घकालिक बेलआउट पैकेज को अंतिम रूप देना होगा।

वरिष्ठ अर्थशास्त्री खलीक कियानी ने कहा, “नए शासन की कूटनीतिक और आर्थिक नीति क्षमताओं का भी लगभग तुरंत परीक्षण होगा, क्योंकि नये प्रशासन को बहुपक्षीय समर्थन के लिए आईएमएफ और पाकिस्तान सरकार के सबसे बड़े ऋणदाता देश चीन के साथ - व्यक्तिगत और सरकार के स्तर पर - संबंधों के बीच एक संतुलन कायम करना होगा।”

उन्होंने कहा कि आईएमएफ के नेतृत्व वाले ऋणदाता चीन के साथ बिजली अनुबंधों पर फिर से बातचीत करने पर जोर दे रहे हैं, जैसा कि पाकिस्तान ने अन्य स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के साथ किया है।

हालांकि किसी भी आगामी सरकार के लिए चीजें बिल्कुल भी अच्छी नहीं दिख रही हैं, लेकिन चुनाव देश में राजनीतिक अस्थिरता का समाधान करेंगे और एक निर्वाचित सरकार के माध्यम से दीर्घकालिक आधार पर आर्थिक सुधार का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

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