श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन: योगी आदित्यनाथ के गुरु ने मंदिर आंदोलन को दी थी मजबूती, देश के सभी धर्माचार्यों को एक साथ लाने का किया था काम
- गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने दी थी मंदिर आंदोलन को तेजी
- श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के बने थे अध्यक्ष
- निकाली थी श्रीराम जानकी रथयात्रा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन बनाने का काम गोरखपुर की गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने किया था। कांग्रेस पार्टी की सरकार से डरकर अयोध्या के कोई भी संत श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का नेतृत्व करने सामने ही नहीं आना रहे थे। उनके मन में डर था कि सरकार मंदिर और मठों पर कार्रवाई कर सकती है। ऐसे में महंत अवैद्यनाथ सामने आए और कालांतर में ऐसे कार्य किए कि राम मंदिर आंदोलन में पहले के मुकाबले और अधिक तेजी व मजबूती आई। मंदिर ट्रस्ट संकल्प बुकलेट के माध्यम से जिन 21 लोगों के योगदान को जन-जन तक पहुंचा रहा
है उसमें गोरखपुर की गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ का नाम भी शामिल है। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के प्रमुख के तौर पर महंत अवैद्यनाथ ने अलग-अलग मान्यताओं वाले देश भर के साधु संतो को आंदोलन से जोड़ने के अलावा, श्रीराम जानकी रथ यात्रा के जरिए आम हिंदुओं को भी जाति से अलग होकर केवल हिंदू धर्म के आधार पर मंदिर आंदोलन से जोड़ने का काम किया।
श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति
21 जुलाई 1984 को वाल्मीकि भवन में साधु-संतों की बैठक चल रही थी। इस बैठक में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष चुनने के लिए चर्चा चल रही थी। बैठक में अशोक सिंघल चाहते थे कि कोई ऐसा नाम निकलकर सामने आए जो अयोध्या का ही कोई महंत हो। प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की सरकार होने के कारण संतो के मन में डर था, सभी यह जिम्मेदारी लेने से कतराते रहे। इस बीच महंत अवैद्यनाथ ने पूरी निडरता के साथ समिति की अध्यक्षता करने के लिए सामने आए।
महंत अवैद्यनाथ आजीवन श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष बने रहे और इस दौरान उन्होंने देश के सभी पीठों और धर्माचार्यों को एक मंच पर लाने का काम किया। मंदिर आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस दौरान उन्हें जाति से ऊपर उठकर एक हिंदू होने के नाते भगवार राम के प्रति भक्ति भाव को सर्वोच्च स्थान दिया और सभी जाति व पंथ के हिंदुओं को आंदोलन से जोड़ने का प्रयास किया, जिसमें वो सफल भी रहे।
श्रीराम जानकी रथयात्रा
बतौर अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ ने सबसे पहला प्रयोग राम जानकी रथयात्रा का किया। हालांकि, सबसे पहली बार जब यह यात्रा निकाली जानी थी तब इंदिरा गांधी की मौत हो गई थी। उस समय के लिए रथयात्रा टाल दी गई। लगभग एक साल बाद रथयात्रा निकाली गई हालांकि, यह मंदिर निर्माण के लिए नहीं बल्कि उस दौरान मंदिर पर लगे ताले को तुड़वाने के लिए निकाली गई थी। यात्रा पूरी होने से पहले ही प्रशासन ने ताला खोल दिया।