अयोध्या आंदोलन: मंदिर आंदोलन में इन चेहरों की रही थी खास भूमिका, राम मंदिर के निमंत्रण में भेजी जा रही पुस्तिका में जिक्र

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-05 06:30 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अयोध्या में नवनर्मित राम मंदिर के भव्य उद्धाटन में अब कुछ ही दिन बचे हैं। इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए देशभर में इसकी रौनक दिखाई दे रही है। 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भगवान राम अपने भव्य मंदिर में विराजेंगे। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान होंगे। अयोध्या में होने वाले आयोजन के लिए लगभग 6000 लोगों को आमंत्रित किया जा रहा है, जिसके लिए निमंत्रण पत्र भेजे जा रहे है। इसके साथ ही एक पुस्तक भी भेजी जा रही है। जिसमें राम मंदिर के उन सभी महारथियों के बारे में भी उल्लेख किया गया है, जो आंदोलन के प्रमुख स्तंभ रहे।

निमंत्रण पत्र के साथ भेजी जा रही पुस्तक में मंदिर के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि अयोध्या के राम मंदिर की जन्मभूमि का आंदोलन 7 अक्टूबर, 1984 से प्रारंभ हुआ था। यह उस समय का 77 वां संघर्ष था। इससे पहले भी मंदिर को लेकर 76 संघर्ष हो चुके थे। आंदोलन के दौरान, साल 1948 के बाद और पहले जो भी लोग इसका हिस्सा थे, आज उनकी बहुत सी विभूतियां जीवित नहीं हैं। हालांकि, आज करोड़ों लोग इस सपने को साकार होते हुए देख रहे हैं। आइए जानते हैं आंदोलन का हिस्सा रहे कुछ ऐसी ही चेहरों के बारे में जिनका राम मंदिर के लिए योगदान अविस्मरणीय है।

स्वामी शिवरामाचार्य

स्वामी शिवरामाचार्य श्रीरामजन्मभूमि ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष और ट्रस्ट के मुखिया थे। 1989 में उनके नेतृत्व में रामजन्मभूमि मंदिर का मार्ग दर्शन और शिलान्यास हुआ था।

शांतानंद ससस्वती और मध्वाचार्य विश्वेश तीर्थ

पुस्तिका में स्वामी शांतानंद ससस्वती और स्वामी मध्वाचार्य विश्वेश तीर्थ जी के बारे में रोचक बाते लिखी गई है। इस पुस्तिका में विष्णुहरि डालमिया के बारे में भी लिखा गया है। वह कारोबारी और वीएचपी के अध्यक्ष भी थे। वह न केवल राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे बल्कि कृष्ण जन्मभूमि के लिए भी योगदान दिया था। उन्होंने आसपास के क्षेत्रों में जमीन खरीदने के साथ ही उन स्थानों पर मंदिर का निर्माण भी करवाया।

स्वामी वामदेव और सत्यमित्रानंद गिरी

पुस्तिका में स्वामी वामदेव के बारे में भी उल्लेख किया गया है। वह अखिल भारतीय संत समिति के संस्थापक भी रह चुके हैं। साथ ही, स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी को भी याद किया गया है।

बालासाहेब देवरस

राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कार्यो में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे सरसंघचालक रहे बालासाहेब देवरस के बारे में भी लिखा गया है। उनका असली नाम मधुकर दत्तात्रेय देवरस था। ऐसा कहा जाता है कि नेतृत्व में आरएसएस राम मंदिर आंदोलन में शामिल हुआ था। उन्हें इस पूरे आंदोलन का मार्गदर्शक भी कहा जाता हैं।

राजेंद्र सिंह

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक रज्जू भैया के योगदान के बारे में लिखा गया है। आरएसएस के कई कार्यों में रज्जू भैया जिनका वास्तविक नाम राजेंद्र सिहं था। वह बुलंदशहर के निवासी थी। रज्जू भैया के नेतृत्व में राम मंदिर के आंदोलन काफी तेजी से बड़ने लगा था। जो अपनी परिणति की ओर तेजी से विकसित होने लगा।

राजमाता सिंधिया

पुस्तिका में राजमाता सिंधिया के योगदान के बारे में जिक्र किया गया है। राजमाता वीएचपी के स्थापना के दौर से पहले ही परिषद का अहम हिस्सा रह चकुी थी। इसके साथ ही, वह राम मंदिर आंदोलन के दौरान काफी सक्रिय रही थी। वहीं, 1967 में शुरू हुए गौरक्षा आंदोलन में भी वह शामिल थी।

देवरहा बाबा

देवरहा बाबा विश्व हिंदू परिषद का हिस्सा रह चुके थे। साल 1989 में उन्होंने प्रयाग महाकुंभ में राम जन्मभूमि आंदोलन को गति प्रदान करने का संकल्प लिया था।

महंत अभिराम दास

साल 1949 में 22 से 23 दिसंबर के बीच रात्रि के समय प्रभु श्रीराम की प्रतिमा प्रकट हुई थी। यह मूर्ति महंत अभिरामदास दी महाराज के द्वारा प्राकट्य की गई थी। उन्हें भगावान राम की इस मूर्ति का महानायक कहा जाता हैं। महंत अभिरामदास जी अयोध्या के हनुमानगढ़ी में उज्जैनिया पट्टी के नागा साधु थे। भारत की आजादी के दौरान, वह रामानंदी संप्रदाय के उन युवा साधुओं में से प्रथम व्यक्ति थे। जिन्होंने कम समय में रामजन्मभूमि को स्वतंत्र करने के प्रयास किए थें।

महंत रामचंद्र दास

राम मंदिर अंदोलन के इतिहास में रामानंदी दिगंबर अनी अखाड़े के श्रीमहंत रामचंद्रदास परमहंस महाराज का भी उल्लेखनीय योगदान है। पुस्तिका के अनुसार, उन्होंने श्रीरामजन्मभूमि पर लगे ताले को न खोलने को लेकर आत्मदाह की धमकी दी थी। जिसके बाद मंदिर में 1949 से लगा ताला 1 फरवरी, 1986 को खोला गया था।

मंदिर में भोग आरती की शुरूआत करने वाले केके नायर

सन 1949 से लेकर 1950 के दौर में केके नायर फैजाबाद के जिलाधीश थे। इस समय के दौरान ही जन्मभूमि पर रामलला की प्रतिमा प्रकट हुई थी। कहा जाता है कि उनके आदेश के बाद से ही जन्मस्थान पर भोग आरती करना शुरू किया गया था। साथ ही, यहां पर एक पुजारी को भी नियुक्त किया था

कलेक्टर को मंदिर की रिपोर्ट देने वाले ठाकुर गुरुदत्त सिंह

साल 1950 में ठाकुर गुरुदत्त सिंह फैजाबाद  सिटी के मजिस्ट्रेट थे। 10 अक्टूबर 1950 में उन्होंने तथाकथिक मस्जिद को लेकर कलेक्टर को एक रिपोर्ट दी थी। जिसमें बताया गया था कि हिंदू समाज तथाकथित मस्जिद को श्रीराम जन्मभूमि मानता है। जहां पर हिंदू राम मंदिर का निर्माण करना चाहते हैं। यह जमीन सरकारी है जिसे मंदिर निर्माण के लिए देने में कोई समस्या नहीं है।

दाऊ दयाल की घोषणा

1983 में यूपी में मुजफ्फरनगर में आयोजित हिंदू सम्मेलन में दाऊ दयाल खन्ना ने अयोध्या, मथुरा और काशी को स्वतंत्र करने की प्रस्ताव जारी किया था। जिसके बाद 1984 में दिल्ली में हुई धर्म संसद में इस प्रस्ताव को स्वीकार हुआ और आंदोलन पर निर्णय किया गया।

महंत अवैद्यनाथ ने की थी अध्यक्षता

रामजन्मभूमि मक्तियज्ञ की शुरूआत उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के गुरु रहे महंत अवैद्यनाथ की अध्यक्षता में हुई थी। श्रीराम जन्मभूमि को स्वतंत्र करने का आंदोलन उन्हीं के मार्गदर्शन में चला था। कहा जाता है कि उनके गुरु महंत दिग्विजय नाथ भी हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक थे।

ओंकार भावे

पुस्तिका में ओंकार भावे के बारे में बताया गया है। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक रह चुके हैं। इसके बाद विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) का हिस्सा भी रहे थे। इसके अलावा उन्हें श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था। उनका नाम पर्दे के पीछे रहकर आंदोलन में विशिष्ट योगदान देने वाले लोगों में गिना जाता है।

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस का भी नाम शामिल

राम मंदिर के आंदोलन की सूची में अगला नाम देवकीनंदन अग्रवाल का हैं। वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रहे चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद वह वीएचपी में शामिल हो गए थे। फिर बाद में उन्हें परिषद का उपाध्यक्ष बनाया गया। सन् 1989 में उन्होंने रामसखा बनाकर केस दायर किया था। इसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। जिसके बाद इस केस पर मंदिर निर्माण को लेकर फैसला आया था।

आचार्य गिरिराज किशोर

आचार्य गिरिराज किशोर वीएचपी के उपाध्यक्ष और महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। उन्हें भी पुस्तिका में याद किया गया था।

अशोक सिंघल

संघ परिवार में अशोक सिंघल को भीष्ण पितामाह के रूप में भी जाना जाता था। पुस्तिका में उनके बारे में भी लिखा गया है। कहा जाता है कि उनके नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन पूर्ण हुआ था। वह प्रबल तौर पर हिंदुत्व से जुड़े मामलों में दशकों तक मुखर आवाज रहे थे। इसके अलावा उन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद। उनकी सरकार को पृथ्वीराज चौहन के 800 साल बाद बनी प्रथम हिंदूवादी सराकार करार दिया था।

Tags:    

Similar News