बार के बिना परामर्श के बदलाव: न्याय की देवी और कोर्ट के प्रतीक चिह्न में हुए बदलाव को लेकर बार एसोसिएशन ने किया विरोध
- न्याय प्रशासन में समान हितधारक बार एसोसिएशन
- एससीबीए ने प्रस्तावित संग्रहालय का किया विरोध
- परिवर्तनों के पीछे के तर्क से अनजान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय में न्याय की देवी और कोर्ट के प्रतीक चिह्न में हुए एकतरफा बदलाव को लेकर विरोध होने लगा है। शीर्ष कोर्ट में बदले गए चिह्न पर बार एसोसिएशन ने आपत्ति व्यक्त की है। एससीबीए के अध्यक्ष कपिल सिब्बल की अध्यक्षता में कार्यकारी समिति ने विरोध किया है। समिति ने सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सर्वोच्च अदालत प्रशासन की तरफ से किए गए एकतरफा बदलाव पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। एससीबीए ने प्रस्तावित संग्रहालय का विरोध करते हुए लाइब्रेरी और कैफे की मांग भी की है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का कहना है कि हम न्याय के प्रशासन में समान हितधारक हैं। 22 अक्टूबर को अपने प्रस्ताव में बार एसोसिएशन का कहना है कि बार के बिना परामर्श के प्रतीक चिह्न को बदलना न्याय की देवी की प्रतिमा को बदलना है। बार का कहना है कि हम इन आमूलचूल बदलावों के पीछे के औचित्य से पूरी तरह अनजान है। हम इन परिवर्तनों के पीछे के तर्क से अनजान है।
आपको बता दें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में पिछले महीने की शुरुआत में न्यायपालिका के दो दिवसीय नेशनल सम्मेलन में टॉप कोर्ट के नए ध्वज और प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया था। नए ध्वज में भारत की कानूनी और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं- अशोक चक्र, सुप्रीम कोर्ट और भारत का संविधान। सुप्रीम कोर्ट का नया झंडा नीले रंग का है। प्रतीक चिन्ह पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय और 'यतो धर्मस्ततो जय:' (देवनागरी लिपि में) अंकित है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने टॉप कोर्ट परिसर में न्याय की देवी की प्रतिमा का भी अनावरण किया था जिसने मूल लेडी जस्टिस की जगह ली थी। नई प्रतिमा साड़ी पहने हुए है, आंखों पर पट्टी नहीं है। न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में भारतीय संविधान है।