TDP के NDA से अलग होने के बाद क्या है अमित शाह की तैयारी?
TDP के NDA से अलग होने के बाद क्या है अमित शाह की तैयारी?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग ठुकराने के बाद TDP ने NDA से अलग होने का फैसला लिया, जिससे आंध्र में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसको लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आंध्र प्रदेश इकाई के कोर समूह के साथ शनिवार को खास बैठक करने जा रहे हैं। जिसमें टीडीपी के बिना आंध्र में कैसे फतह हासिल की जायेगी, इसको लेकर गहन चिंतन किया जाएगा। पार्टी अध्यक्ष आंध्र प्रदेश में राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करेंगे और राज्य में पार्टी के विकल्पों पर रणनीति बनाएंगे। बता दें कि यहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और लोकसभा की 25 सीटें हैं। जिसको देखते हुए बीजेपी को यहां विधानसभा चुनाव जीतना बहुत जरूरी हो जाता है।
टीडीपी का हटना एक अवसर - बीजेपी
बीजेपी पहले ही कह चुकी है कि टीडीपी का गठबंधन खत्म करना एक अवसर है ताकि वह राज्य में विकास कर सके। बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा, "केंद्र के खिलाफ दुष्प्रचार के बाद टीडीपी का गठबंधन से हटना जरूरी हो गया था, आंध्रप्रदेश के लोगों को अब महसूस होने लगा है कि टीडीपी अपनी अक्षमता और प्रशासनिक निष्क्रियता को छिपाने के लिए झूठ का सहारा ले रही है। खतरे से ज्यादा टीडीपी का समय पर हट जाना आंध्र प्रदेश में बीजेपी के विकास के लिए अवसर है।’
शुक्रवार को क्या हुआ ?
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस की ओर से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया , जिसे सोमवार को सदन में लाया जा सकता है। शुक्रवार को सदन में तेलंगाना राष्ट्र समिति के सांसदों के हंगामे के बाद लोकसभा को स्थगित कर दिया गया था, जिसके बाद इस प्रस्ताव को सोमवार को सदन में पेश किया जा सकता है। वहीं टीडीपी ने भी कहा है कि वह केंद्र सरकार के खिलाफ़ 19 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। टीडीपी ने कहा, कि हम 54 सांसदों का हस्ताक्षर 19 मार्च को लाएंगे और संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश करेंगे।
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विपक्ष को मिला मौका !
वाईएसआर कांग्रेस और तेलुगू देशम पार्टी की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को विपक्ष, सरकार के खिलाफ एक मौके के तौर पर देख रहा है। इस प्रस्ताव के समर्थन में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल आंध्र की पार्टियों का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे देश में एंटी-एनडीए लहर को मजबूत किया जा सकेगा और 2019 में लोकसभा चुनाव में एनडीए को मजबूत टक्कर दी जा सकती है।
बीजेपी की बढ़ सकती है मुश्किलें
- विपक्ष को लगता है कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिए पूरे देश में मोदी सरकार विरोधी माहौल को तैयार करने में मदद मिलेगी।
- कांग्रेस, टीएमसी और लेफ्ट पार्टियां इसे विपक्षी एकता को मजबूत करने की कवायद के तौर पर ले रही हैं।
- एआईएडीएमके जैसे दलों का रुख साफ नहीं। शिवसेना के सांसद रहे सकते हैं गैरहाजिर।
- टीडीपी के अलग होने से विपक्षी दलों पर भी दबाव है कि वह इसका समर्थन करें ताकि ऐंटी-बीजेपी स्टैंड की उनकी नीति स्पष्ट हो सके। भले ही इस अविश्वास प्रस्ताव से बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को कोई खतरा न हो, लेकिन टीडीपी के अलग होने के बाद और अब शिवसेना की बयानबाजी के चलते उसके खिलाफ एक माहौल बनाने की जरूर कोशिश होगी।
इन मुद्दों पर हो सकती है चर्चा :
1. बीजेपी अध्यक्ष टीडीपी के बिना आंध्र में अकेले जीत हासिल करने के लिए रणनीति बनाएंगे।
2. आंध्र प्रदेश में राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करेंगे और राज्य में पार्टी के विकल्पों पर रणनीति बनाएंगे।
3. उत्तर प्रदेश में मिली जीत को रोल मॉडल के रुप में प्रस्तुत कर पार्टी में दम भरेंगे।
4. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर बार की तरह स्टार प्रचारक बनाकर प्रस्तुत कर सकते है और विकास , रोजगार जैसे विभिन्न मुद्दों पर लड़ाई लड़ सकते है।